जब राजा विश्वरथ नंदनी लेने आया...
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एक ऋषि ने कराई, राम हनुमान जी मे लड़ाई- click here
नंदनी हमारे आश्रम की जान है, वो यहा से कही नही जाएगी, रिसीवर राजन के आदेश का पालन ना करना, आपको बहुत हानी पहुचा सकता है, हमे स्वीकार है मंत्री जी, लेकिन नंदनी यही ही रहेगी, जब मंत्री ने विश्वारथ को सभी बात बताई,
तो उनके क्रोध की सीमा ना रही, बोले उस रिषी का इतना दुस्साहस, मेरे आदेश का पालन नही किया, मंत्री तुरंत अपनी सेना लेकर उस आश्रम मे जाओ, हमे हर सम्भवतह वो गाए आश्रम मे चाहिए, मंत्री अपनी विशाल सेना के साथ आश्रम पहुच गए,
संयोग वस उस समय रिषी वसिष्ठ आश्रम मे नही थे, मंत्री ने अहंकार स्वर मे, रिषी पत्नी अरूंधती से बोला, माता हमे नंदनी को महल ले जाने दो, नही हम बल पूर्वक ले जाएंगे, माता ने तुरंत नंदनी के सामने हाथ जोडकर बोली,
मां मै विवस हूं आपकी रक्षा करने मे, कृपा करके इस आश्रम की लाज बचाओ, इसके बाद नंदनी ने किया वो चमत्कार, सभी सैनिक देख हक्के बक्के रह गए, माता ने अपने शक्ति से, हजारो सैनिको को जन्म दे दिया, और फिर हुआ भयंकर युद्ध,
जिसने विश्वारथ की सेना को परास्त कर दिया, इसके बाद कुछ बचे सैनिको को भागना बडा, विश्वारथ ने जैसे ही सुना, की हमारी सेना एक रिषी के आश्रम से हार गई, उसके क्रोध की सीमा ना रही, उसने अपनी सेना को लेकर, फिर आश्रम मे पहुचा,
इधर अरूंधती रिषी वसिष्ठ को, सारी बात बता ही रही थी, की सैनिक के आने की आहट, फिर से सुनाई देने लगी, ब्रह्म रिषी बाहर आओ, राजन आप क्रोध क्यो कर रहे है, आप भूल गए हो, आप हमारी सीमा के सानिध्य मे रह रहे हो,
इसलिए यहा सभी पर मेरा अधिकार है, और आपने मेरे आदेश का पालन नही किया, राजा को इतना क्रोध सोभा नही देता है, रिसी हमसे ग्यान की बाते मत करो, हमे नंदनी दे रहे हो, या फिय इस आश्रम को ही मिटा दिया जाए,
आपमे क्षमता हो तो जरूर प्रयास करे राजन, विश्वारथ ने जैसे ही उस गाए की तरफ बडे, गाए ने अपनी शक्ति दिखाना शुरू किया, वह गाए एक विशाल रूप धारण कर लिया, विश्वारथ ये देख भौंचक्का रह गया, और अगले ही पल वह अपने साधारण रूप मे आ गई,
ये सब देख विश्वारथ को यकीन नही हुआ, फिर वसिष्ठ जी बोले, राजन आप इसे बाहुबल से तो नही ले जा सकते, आप मे इतना तप और शक्ति नही है, की आप इसे छू भी सके, इसके लिए बहुत कठिन तपस्या करनी पडती है,
रिषी की ये बात, विश्वारथ के दिल मे घात की तरह लगी, की आज मै एक गाए ले जाने मे असमर्थ हूं, तब भी क्रोध मे बोला, रिषी आज मै इसे छोडकर जा रहा हूं, लेकिन मै ये साबित करके दिखाऊंगा, की मै भी तपस्या कर सकता हूं,
और मै भी शक्ति प्राप्त कर सकता हूं, तुरंत राज्य आकर अपने पुत्र को, सिंघासन का उत्तराधिकारी बना दिया, और स्वयं वन मे निकल गए, और एक जगह बैठकर घोर तपस्या की, उनकी तपस्या मे वो ताकत थी, की पूरा स्वर्ग हिल गया,