राधा रानी की एक अनसुनी कहानी | Hindi Story

नारद जी और ‘कृष्ण मनोहारणी’ नाम का रहस्य....

एक संत नारद जैसे स्वरूप में, केसरिया वस्त्र पहने, वीणा बजाते हुए पालने में लेटी हुई दिव्य शिशु राधा रानी को निहारते हुए — दिव्य आभा से भरा आध्यात्मिक दृश्य।"

जब कोई रिश्ता नही बचता तो श्री कृष्ण आते है पढ़ें 👉 Click Here 

बरसाने से कुछ दूरी पर स्थित रावल गांव, दोपहर का समय था, एक छोटी सी बच्ची की किलकारियां सुनाई दे रही थी, नारद जी पैदल चलते हुए उस घर की ओर गए, और जहा एक पालने मे किशोरी जी झूल रही थी, उनके पास गए, और हाथ जोडकर उनको निहारने लगे, 

इसके बाद अपने जटाओं को किशोरी जी के चरणो से स्पर्श कराने लगे, और फिर धीरे से किशोरी जी के पल्ले मे झांककर देखते है, और बडे प्रेम से बोलते है, हे कृष्ण मनोहारणी, lये नाम सुनते ही किशोरी जी पुलकित हो उठी, अभी बहुत छोटी अवस्था है उनकी, लेकिन इस नाम को सुनते ही, जैसे कई वर्षो से कान तरस गए हो, कोमल नयन खुलने लगे, और होंठों पर मधुर मुस्कान आने लगी, 

और नन्हें नन्हें हाथो को हिलाने लगी, कृष्ण मनोहारणी के शब्द का अर्थ क्या है, कृष्ण के मन का हरण करने वाली, या कृष्ण के मन मे विहार करने वाली राधा, आप सोचकर देखिए, की छह सात वर्ष के बच्चे, ठीक से आख भी नही खोल पाते, लेकिन यहा श्री कृष्ण और राधा का प्रेम, अनादि अनंत है, 

ये चारो युगो मे कब का है, ये भी नही कह सकते।किशोरी जी कि हसने की किलकारियां इतनी मधुर और मोहक थी, बाहर बैठे वृषभानु जी ने, जैसे ही अपनी लाली की किलकारियां सुनाई दी, वह तुरंत उठकर गए, और धीमे से खिडकी से अंदर देखने लगे, देवर्षि नारद जी अंदर, 

श्री कृष्ण मनोहारणी नाम से उनमाद कर रहे है, और किशोरी जी पलना मे उठकर बैठ गई है, और बैठकर खूब आनंदित हो रही है, ये देख वृषभानु जी हैरान थे, ये कैसा दृश्य है, वही बैठकर विचार करने लगे, थोडी देर बाद कीर्तन विश्राम हुआ, और श्री नारद मुनि किशोरी जी को प्रणाम करके, 

कमरे से बाहर आए, और वही बाहर तो, पहले से वृषभानु जी इंतजार कर रहे थे, आकर बोले  चिंता मत करो लाली बिल्कुल ठीक है, और कछू दिन मे लाली के नेत्र खुलने लगेंगे, इतना कह श्री नारद मुनि चले गए, और फिर वृषभानु जी और कीर्ति मईया दोनो अंदर गए, दोनो किशोरी जी को फिर देखने लगे, लाली कब हमारी नेत्र खोलेगी।

नारद जी भी आकर चले गए, तभी वृषभानु जी बोले, मुझको एक तरीका पता है, मईया बोली क्या पता है, वृषभानु जी बोले, रूको मै दिखाता हूं, वृषभानु जी ने राधा रानी को अपनी गोद मे लिया, और प्रेम से बोले, हे कृष्ण मनोहारणी।

इस नाम को सुनते ही, राधा जी फिर से हंसने लगी, और अपने हाथ पैर चलाने लगी, ये देख वृषभानु जी, और कीर्ति मईया, दोनो ही बहुत आनंदित हो गए, इसके बाद पूरे वृज मंडल मे, उत्सव मना रहे है, एक और घटना के बारे मे आपको बता दे। 

वृंदावन साहित्य मे वर्णन है, की राधा रानी के जन्म के समय, जो दाई थी, वो कोई और नही, बल्कि स्वयं माता पार्वती जी, एक दाई का रूप धारण कर आई थी, और जन्म की सारी प्रक्रिया को सफलतापूर्वक संपन्न किया था, और पूनह जन्म के बाद।

महादेव का आगमन और राधारानी के वस्त्र...

भगवान शिव कैलाश पर्वत पर खड़े, त्रिशूल और डमरू धारण किए हुए, गले में नाग और जटाओं में चंद्रमा सुशोभित, बाघम्बर पहने दिव्य रूप में।"

एक किसान और पंडित की कहानी पढ़ें 👉 Click Here 

वह अपने कैलाश को निकल गई, कैलाश पर्वत मे शंकर जी इंतजार कर रहे थे, बोले देवी, आप तो दर्शन कर आए हो, अब हमारी बारी है, हां प्रभु जरुर, आप एक बार उनके, दिव्य दर्शन को जरूर जाइए, इसके बाद भगवान शंकर जी ने एक जोगी का रूप धारण कर।

तुरंत बरसाने की गलियो से चलने लगे, और उनके कदम वृषभानु जी के घर की तरफ बढ रहे है, और जाकर वृषभानु जी के द्वार पर खडे हो गए, कुछ सखियां अंदर गई, और कीर्ति मईया से बोली, एक जोगी आया है द्वार पे। 

कीर्ति मईया बडी प्रसन्न हो गई, बोली सखी उनको खूब सारा धन और रत्न दे दो, नही मईया ऐसी गलती मत करना, कैसी गलती सखी, मईया एक साल पहले, यशोदा मईया के यहा भी कोई जोगी आया था, यशोदा मईया ने खूब सारा धन आदि उसे दिया। 

इसके बाद कन्हैया ऐसो रोयो, की फिर चुप नही हुआ, और बाद मे मईया ने जोगी को ही अंदर बुलाना पडा, और इसके बाद ये बाबा ने ऐसी फूंक मारी, की कन्हैया आज भी बढिया हंसता खेलता है, और किसी से नही डरता, मईया हमारी लाली कितनी सुकमारी है।

आप इस बाबा को बाहर से मत जाने दो, इसे एक बार अंदर बुला लो, और जोगी बाबा से लाली के बारे मे पूछ लो, कीर्ति मईया को सखी की बात उचित लगी, तुरंत वह बाहर आई, और जोगी बाबा को आदर सहित अंदर स्वागत किया, जैसे ही महादेव अंदर गए।

और किशोरी जी के दर्शन किया, वो तो मंत्रमुग्ध हो गए, तुरंत उन्होने अपना डमरू बजाया, और प्रसन्नता से किशोरी जी को निहार रहे है, किशोरी जी भी डमरू की ध्वनि सुनकर ,आनंदित हो गई, कीर्ति मईया भी बहुत खुश थी।

कीर्ति मईया जोगी बाबा से बोली, बाबा आप आए हो, हमारी लाली के बारे मे बताओ ना, मेरी लाली का व्याह कब होगा, और किससे होगा, मुझे तो अभी से चिंता हो रही है, इतनी प्यारी लाली मेरी, इसका भरतार कौन होगा, ये सुन महादेव हसने लगे। और बोले मईया तुम क्यो चिंता कर रही हो, 

पूरे विश्व का स्वामी, पूरे विश्व का पालनहार तुम्हारी लाली के चरणो का दास है, कृष्ण जिसकी अराधना करते है, परब्रह्म जिसकी अराधना करते है, उसका नाम हे राधा, ये तो जीव आत्मा पर कृपा करने के लिए, बडे प्रेम के समुद्र को प्रस्तुत करने के लिए, इनका जन्म हुआ है, इनकी चिंता मत करो,

कीर्ति मईया बोला, बाबा मोए तो तेरी बात पल्ले ना पड रही, पता नही क्या कह रहे हो, खूब सुंदर सुंदर पद गए महादेव ने, बाद मे मईया बोली बाबा कछु मांग लो, 

इतनी दूर से आए हो, महादेव बोले मईया अगर आद देना ही चाहती है, तो मुझे एक वस्तु दे दो, हां आप कहिए हम जरूर देंगे, हमे लाली के कोई वस्त्र दे दो, कोई भी उनका उतरन दे दो, बोली बाबा आप कुछ और सोन चांदी रत्न इत्यादि लो, इतकी उतरन को क्या करोगे, 

आप तो उसे पहन भी नही पाओगे, मईय इसके उतरन को मै नही पहनूंगा, वो तो मेरी जटाएं पहनेंगी, तभी मईया ने कहा ठीक है बाबा, हम आपको देते है, कीर्ति मईया जाकर अपनी लाली एक एक वस्त्र को लिया, और आकर महादेव को दे दिया, 

महादेव ने उसे लिया, और तुरंत अपनी जटाओं मे बांध लिया,‌ इसके बाद महादेव श्री राधे श्री राधे नाम लेते हुए, अपने गन्तव्य को प्रस्थान किया, यहा कीर्ति मईया अपनी लाली को लाड़ प्यार कर रही है, इसी तरह जब श्री कृष्ण जी को यशोदा मईया गोद मे लिए थी, 

तब यशोदा मईया बोली, लाला बोलो मईया, कृष्ण जी चुप थे, बाबा भी बोले मेरो लाला बोलो बाबा, तब भी श्री कृष्ण जी चुप रहे, बलराम जी बोल रहे है, बोलो भईया, लेकिन ठाकुर जी नही बोले, तभी बाहर ही एक गईया निकल रही थी, 

ठाकुर जी ने उंगली कर बोले, गईया, यशोदा मईया मुस्कुराई की मेरो लाला बोला है, लाला एक बार फिर से बोलो, इसके बाद ठाकुर जी ने बोला मईया, ये सुन सभी खुश हो गए, कहते सबसे पहले ठाकुर जी ने, अपने मुख से गाय शब्द को निकाला था, 

राधा-कृष्ण के प्रथम उच्चारित शब्द...

पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में सजी एक खुशहाल भारतीय माँ अपने नन्हे बच्चे को गोद में लेकर मुस्कुराते हुए — मातृत्व और प्रेम से भरा दृश्य।"

गुरुदेव ने जब रसिक की ली परीक्षा पढ़ें 👉 Click Here 

और राधा रानी के मुख से, सबसे पहले जो शब्द निकला था, वो था गोपाल, एक बात और आपको बता दे, जैसे ठाकुर जी को मक्खन बहुत प्रीय है, वैसे ही किशोरी जी को दही बहुत प्रीय है, अब धीरे धीरे समय बीतता गया, अब किशोरी जी थोडी बडी हो गई, 

ऐसे ही एक रात्रि का समय था, कीर्ति मईया के बगल से किशोरी जी लेटी हुई थी, कुछ समय बाद किशोरी जी, रात्रि मे उठकर बैठ गई, और रोने लगी, किशोरी जी से सभी इतना प्रेम करते थे।

की उनके मुख से रूदन का शब्द निकलते ही, पूरा महल इकठ्ठा हो जाता था, की किशोरी जी रोने ना पाए, जैसे ही किशोरी जी के रोने की आवाज सुनाई दी, तो कीर्ति मईया तुरंत उठकर बैठ गई, वृषभानु जी उठकर बैठ गए। लाली क्या हो गया, तू काहे को रो रही है, कुछ देर बहलाने फुसलाने के बाद, किशोरी जी बोली मईया,

 मुझे गाढो दही खाना है, लाली अभी भोर भी नही हुई है, अभी रात्रि है, थोडी देर पहले तुमने प्रसाद पाया, अभी तुरंत आपको भूख लग आई, और रात्रि मे दही नही खाते लाली, गला बैठ जाता है, किशोरी जी जिद कर रही है, नही मईया मुझे अभी खाना है, 

ठाकुर जी ने उंगली कर बोले, गईया, यशोदा मईया मुस्कुराई की मेरो लाला बोला है, लाला एक बार फिर से बोलो, इसके बाद ठाकुर जी ने बोला मईया, ये सुन सभी खुश हो गए, कहते सबसे पहले ठाकुर जी ने, अपने मुख से गाय शब्द को निकाला था, 

राधा रनी छोटी सी एक महल के गलियारे मे बैठकर दही खा रही है,

एक वैद्य जी की सत्य घटना पढ़ें 👉 Click Here 

और राधा रानी के मुख से, सबसे पहले जो शब्द निकला था, वो था गोपाल, एक बात और आपको बता दे, जैसे ठाकुर जी को मक्खन बहुत प्रीय है, वैसे ही किशोरी जी को दही बहुत प्रीय है, अब धीरे धीरे समय बीतता गया, अब किशोरी जी थोडी बडी हो गई, 

ऐसे ही एक रात्रि का समय था, कीर्ति मईया के बगल से किशोरी जी लेटी हुई थी, कुछ समय बाद किशोरी जी, रात्रि मे उठकर बैठ गई, और रोने लगी, किशोरी जी से सभी इतना प्रेम करते थे।

की उनके मुख से रूदन का शब्द निकलते ही, पूरा महल इकठ्ठा हो जाता था, की किशोरी जी रोने ना पाए, जैसे ही किशोरी जी के रोने की आवाज सुनाई दी, तो कीर्ति मईया तुरंत उठकर बैठ गई, वृषभानु जी उठकर बैठ गए। लाली क्या हो गया, तू काहे को रो रही है, कुछ देर बहलाने फुसलाने के बाद, किशोरी जी बोली मईया, मईया मुझे गाढो दही खाना है, 

लाली अभी भोर भी नही हुई है, अभी रात्रि है, थोडी देर पहले तुमने प्रसाद पाया, अभी तुरंत आपको भूख लग आई, 

और रात्रि मे दही नही खाते लाली, गला बैठ जाता है,किशोरी जी जिद कर रही है, नही मईया मुझे अभी खाना है, अरे लाली तुम्हे इतनी जिद क्यो कर रही है, मईया सुबह सुबह श्री दामा जी जाग जाएंगे, और सबरो दही खा जाएंगे, मेरे काजे बचेगा नही, 

कीर्ति मईया मुस्कुराने लगी, बोली लाली तुम बिल्कुल चिंता मत करो, हम कल दामा को दही नही देंगे, तुम्हे ही गाढो दही देंगे, तुम्हे अपनी मईया पर भरोसा है ना, 

ठीक है मईया, इसके बाद सभी प्रेम पूर्वक रात्रि व्यतीत करते है, और जब अगले दिन का समय हुआ, तो श्री दामा जी तो हर रोज ही दही खाते थे, बोले मईया, आज वहा मटकी नही मिल रही है, आपने कहा रख दिया है, मुझे दही खाना है, 

बोली आज दही लाली के खाने के बाद ही मिलेगा, कल लाली को हमने वचन दिया है, ऐसी छोटी छोटी बहुत ही सुन्दर लीलाएं, किशोरी जी और ठाकुर जी ने किया है, इनके इस रस का आनंद, एक भगवत प्रेमी बडे भाव से लेता है, यही वो पल होता है, 

जहां से ह्रदय को परम सुख प्राप्त होता है, ये कहानी यहीं विश्राम होती है, आगे भी हम राधे कृष्ण की, अनेक लीलाओ के दर्शन कराएंगे, तब तक के लिए, आप सभी से जय श्री राधे।

इस कहानी को वीडियो की सहायता से देखें 👉 Watch Video 

इस कथा से स्पष्ट है कि राधा-कृष्ण का प्रेम अनादि और अनंत है। उनकी बाल्य लीलाएं आज भी भक्तों को भक्ति और आनंद के सागर में डुबो देती हैं।


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने