जब विश्वारथ पहुंचे वसिष्ठ जी के आश्रम...
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एक ऋषि ने राम हनुमान जी के बीच युद्ध - click here
तो मन मे विचार किया, की मुझे अपने इस राज्य की सीमा को, और अधिक बढाया जाए, अगले ही दिन जब वह सभा मे पहुचे, तो अपने मंत्री से पडोसी राज्य मे, युद्ध का ऐलान कर दिया, ये सुन सभा मे मौजूद सभी हैरान हो गए,
क्योकि महार्षी गाधि के शासन काल मे, कभी युद्ध नही किया, तभी मंत्री ने एक बार विश्वारथ को, अपने लिए निर्णय पर विचार करने को कहा, लेकिन विश्वारथ ने अपने निर्णय पर, कोई विचार नही किया, और युद्ध का आदेश जारी कर दिया,
तभी उस समय वहा पधारे रिषी गौतम, उन्होने विश्वारथ को युद्ध ना करने का उपदेश दिया, लेकिन अहंकार से धुत, विश्वारथ ने मना कर दिया, और रिषी को कुछ अशब्द भी कहे, अगले दिन आस पास के सभी गांवो से, सैनिक योग्य सभी लोगो को,
जबरजस्ती पकडकर राज्य मे लाया गया, और बल पूर्वक सभी को सैनिक बनाया, और फिर विश्वारथ ने, पास के ही राज्य पर आक्रमण बोल दिया, सभी तरफ हाहाकार मचा था, अचानक किए युद्ध मे खून से भूमि रंग गई,
और मासूम निर्दोष सहित, सभी को मृत्यु दंड दिया गया, वहा से ही कुछ दूरी पर, महार्षी वसिष्ठ का आश्रम था, इधर युद्ध करते-करते संध्या हो गई थी, तो विश्वारथ ने वही पडाव डाल लिया था, जब वसिष्ठ के पुत्र ने आश्रम के निकट,
एक बडी सेना का पडाव देखा, तो तुरंत अपनी मां के पास जाकर बताया, की मां कान्यकुब्ज के राजा विश्वारथ ने, पास ही पडाव डाला है, माता अरूंधती ने तुरंत अपने पुत्र से कहा, की पुत्र आप शीघ्र उनके पास जाओ,
और अपने पिता की ओर से, आश्रम मे आमंत्रित करो, इसके बाद जब शक्ति विश्वारथ के पास गया, और अपने पिता की ओर से आमंत्रित किया, विश्वारथ ने भी स्वीकार कर कहा, की रिषी पुत्र हम प्रातह काल अवश्य आऐंगे,
इधर सुबह का समय हो गया था, विश्वारथ के स्वागत के लिए, वसिष्ठ जी के शिष्य सभी खडे थे, समय अनुसार विश्वारथ अपने मंत्री सहित, कुछ लोगो के साथ आश्रम आए, खूब अच्छे से उनका स्वागत किया, जैसे ही विश्वारथ आश्रम मे प्रवेश किया,
वहा का वातावरण और सुंदरता देख, बहुत अच्छा लगा, प्यारे प्यारे पंछी बैठे दाने चुन रहे थे, एक तोता तो भगवन नाम का स्मरण करता दिखा, सभी चीजे व्यवस्थित थी, पूरा आश्रम मानो खूशी से झूम रहा हो, उस समय महार्षी वसिष्ठ जी यग्य मे बैठे थे,
जब वसिष्ठ जी आए, तो राजन को प्रणाम किया, विजय यात्रा सफल रही राजन, विश्वारथ बोले, हमारे शब्द कोष मे, असफलता जैसे शब्द ही नही है रिषीवर, जैसे कृषक खेत काटता है, हमने राजाओ के ध्वज काटे, और असंख्य दास दासियां,
अपने राज्य लेकर जा रहे है, आपके दर्शन पाकर हम धन्य हुए रिषीवर, इसके बाद विश्वारथ ने, जैसे ही जाने की आग्या मांगी, इधर वसिष्ठ जी की पत्नी आई, और बोली, ये तो भोजन का समय है राजन,
हमारा अतिथि सत्कार स्वीकार कीजिए, किसी नरेश को आमंत्रित करना , इतना सुलभ नही है माता श्री, राजन आप इसकी चिंता मत करो, हम उसे सुलभ कर लेंगे,
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