"महर्षि विश्वामित्र की अनसुनी अमर गाथा" Part 1

कहानी के बारे मे....

दोस्तो आज से शुरू हो रही है, एक अद्भुत यात्रा, महर्षि विश्वामित्र की गाथा, एक शक्तिशाली राजा, जो बना ब्रह्मर्षि, कभी राजा विश्वारथ, जिन्होने धरती पर राज किया, फिर एक घटना ने उनके भीतर आग जलाई, 

और फिर अपने राज वैभव, सभी को त्याग दिया, और की एक घोर तपस्या, देवताओ से संघर्ष, इंद्र का विरोध, अप्सराओ की परीक्षा, यह वही रिषि है, जिन्होने त्रिशंकु के लिए स्वर्ग रच दिया, इन्ही ने भगवान राम और लक्ष्मण को अस्त्र-विद्या सिखाई, 

ताडका का वध भी इन्ही ने कराया था, और रामायण मे अपनी अमर छाप छोडी, विश्वामित्र की गाथा है, राजसत्ता से रिषित्व तक का संघर्ष, शक्ति, क्रोध और तपस्या से, दिव्यता तक की यात्रा, आगे के एपिसोड मे हम इन सभी को देखेंगे,तो चलिए शुरू करते है, महान रिषी विश्वामित्र की अमर कहानी,

कहानी शुरू...

🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 01:

स्वर्ण पृष्ठभूमि पर अंकित महर्षि विश्वामित्र, वैदिक ग्रंथ शैली में श्लोक और अलंकरणों के साथ।

राम जी की अनसुनी कहानी - click here 

समय था त्रेतायुग का, जब कान्यकुब्ज नगरी पर महर्षि गाधि का राज्य था, उनकी पत्नी सत्यवती, महान तपस्विनी थी, ईश्वर की कृपा से उन्हे एक तेजस्वी पुत्र हुआ, 

उसका नाम रखा गया विश्वारथ, जन्म के समय ही उस बालक के चारो ओर, एक दिव्य आभा फैल गई, ये बात तुरंत दासियो ने राजा गाधि को बताया, राजा को थोडी हैरानी हुई, और तुरंत रानी के कक्ष मे गए, और अपने पुत्र को देखा, 

तो वास्तव मे उसके आस पास, एक दिव्य आभा दिखाई दी, तुरंत रिषि-मुनियो को बुलाया गया, जैसे ही मुनियो ने देखा, कि यह बालक साधारण नही है, इसमे अपार शक्ति और तेज है, राजकुल मे जन्म होने के कारण, वह राजकुमार बना, 

मुनियो के मुख से अपने बालक की प्रसंशा सुन, महर्षि गाधि बहुत खुश हो गए, आगे चलकर कान्यकुब्ज के, राज गुरूओ से शिक्षा प्रदान की, और जब वह युवावस्था मे पहुचे, तो उस समय महार्षी गाधि, अपनी आयु उपरांत मे थे, 

एक दिन अपनी पत्नी से बोले, की देवी, अब मेरी आयु के अनुसार, मुझे राजगद्दी छोडना चाहिए, और पुत्र को राजगद्दी मे बैठाना चाहिए, हां स्वामी आपका विचार सही है, अब पुत्र राज्य संचालन के योग्य है, अगले ही दिन महार्षी गाधि ने, 

अपने राजगुरुओ से एक शुभ दिन तय किया, और उस दिन कान्यकुब्ज राज्य मे खुशी का माहौल था, पूरे महल को सजाया गया, और भव्य तैयारीयां की गई, इधर महार्षी गाधि अपने राजसिंहासन पर बैठे थे, और अपनी पत्नी से बोले देवी, 

आर्यपुत्र को शीघ्र लाओ, शुभ मुहूर्त का समय हो गया है, तब रानी सत्यवती विश्वारथ के कक्ष मे गई, उस समय विश्वारथ तैयार हो रहे थे, पुत्र शुभ मुहूर्त का समय हो गया है, शीघ्र चलो, इसके बाद आर्यपुत्र विश्वारथ को सभा मे लाया गया,  

और सभी राजगुरुओ ने मंत्रो का उच्चारण किया, इसके बाद महिर्षी गाधी अपने राजसिंहासन से उठे, और सिंघासन को अंतिम बार प्रणाम किया, और फिर अपने पुत्र को राजा के कुछ कर्तव्य बताए, 

और सिंघासन का महत्व समझाया, फिर विश्वरथ को सिंघासन पर बैठाया, और राजा का मुकुट विराजमान किया गया, उस रात्रि विश्वरथ जब अपने महल मे टहल रहे थे, ( अगले भाग का इंतजार )

इस कहानी को वीडियो की सहायता से देखें 👉 Watch Video 

यहा आपको हर रोज एक कहानी पढने को मिलेगी, जो जीवन की एक सीख के साथ आपको एक अच्छी प्रेरणा भी देगी, और एक अच्छे मार्ग मे चलने का मार्ग देगी, हम भगवान की अद्भुत लीला लेकर आते है, हमे फोलो जरूर कर लेना, धन्यवाद 🙏 


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