मां दुर्गा का रहस्य जानिए...
🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 01:
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ये कहानी है एक ऐसे राक्षस की, जिसका नाम सुनते ही, देवताओ का हृदय कांप उठता था, उस राक्षस ने अपनी शक्ति से, तीनो लोको मे राज किया, यह घटना का उल्लेख, लाखो साल पहले पुराणो मे मौजूद है, हम जिस राक्षस की बात कर रहे है,
उसका नाम है महिषासुर, वह ना ही भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से पराजित हुआ, और ना ही भगवान शिव के त्रिशूल से, ये दो ऐसे अस्त्र है, जो पूरी सृष्टि को नष्ट करने की ताकत रखते है, वह आखिर एक असुर को, कैसे नही हरा पाए,
आखिर वह शक्तिशाली असुर की मृत्यु कैसे हुई, और उसका वध कैसे सम्भव हुआ, यह यात्रा यही तक सीमित नही है, इसमे आप जानेंगे की आखिर दुर्गा माता का जन्म कैसे हुआ, और उन्होने अपना वाहन, एक शेर को ही क्यो चुना,
आखिर कौन है ये महाशक्ति, जिसने सुदर्शन चक्र को धारण किया, जब सभी देवताओ ने हार मान ली, तो कैसे एक माता ने सभी को बचाया, और रक्तबीज भी एक ऐसा असुर था, जिसे बडे से बडा देवता भी नही हरा पाया, और कैसे काली मां ने उसका अंत किय,
भगवान विष्णु और भगवान शिव की, शक्ति से सभी परिचित है, यह सब कुछ करने मे समर्थ है, लेकिन फिर भी इस असुर का कुछ नही कर पाए, तो चलिए आज बात करे, माताओ की शक्ति नही, महाशक्ति के बारे मे,
कहानी की शुरुआत होती है सतयुग से, जब देवता सम्पूर्ण पृथ्वी पर राज करते थे, यही युग था, जिसमे भगवान से वरदान प्राप्त करना, असुरो के लिए सरल था, वह भगवान की घोर तपस्या करते, और उनसे वरदान प्राप्त करते, इसके बाद चारो तरफ विनाश करते,
यहा कहानी शुरू होती है, पताल के दो भाईयो से, जिसका नाम था, रम्भ और करंभ, लेकिन उनकी कोई संतान ना होने के कारण, वह अंधकार मे डूबे रहते थे, लेकिन तभी उन्हे याद आया, की अगर वो तप करे, तो उन्हे मन चाहा वरदान मिल सकता है,
दोनो भाई अलग अलग भगवान की, तपस्या करने निकल पडे, रंभ ने पहले एक बडा अग्नि का गोला तैयार किया, और अग्नि देव की तपस्या की, करंभ ने अपने शरीर को आधा पानी मे डुबोकर, वरूण देव की तपस्या की,
उनको तप करते करते कई वर्ष बीत गए, दोनो भाईयो की तपस्या मे साधना और इतनी शक्ति थी, की स्वर्ग मे बैठे देवता, उनको महसूस कर सकते थे, देवो के राजा इंद्र देव को भी, अब अभास होने लगा था, की अगर इन असुरो को वरदान मिल गया,
तो ये देवताओ के लिए खतरा बन सकते है, तभी इंद्र देव ने, तपस्या भंग करने का निर्णय लिया, और वो पहुच गए करंभ के पास, उन्होने एक मगरमच्छ का रूप लिया, और करंभ पर हमला बोल दिया,
इसके बाद करंभ की मृत्यु हो गई, लेकिन दूसरी तरफ रंभ था, जिसे तुरंत शक्ति के कारण पता चल गया, की मेरा भाई अब नही रहा, और उसे मारने वाला इंद्र है,
रंभ अपने भाई से बहुत प्रेम करता था, उसकी मृत्यु के पश्चात, उसने अपना तप तोड दिया, और एक तलवार को लेकर, अपने प्राणो को त्यागने ही जा रहा था,
🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 02:
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उसी समय अग्नि देव प्रकट हुए, और रंभ को ऐसा करने से रोक लिया, अग्नि देव बोले, भक्त तुम्हे क्या चाहिए, अपना वरदान मांगो, रंभ इंद्र के छल से अत्यधिक क्रोधित था, उसने एक ऐसी संतान मांगी, जो इंद्र को हरा सके, और तीनों लोकों मे राज करे,
अग्नि देव अपने वचन से, पीछे नही हट सकते थे, अग्नि देव ने वरदान दिया, जो भी प्राणी तुमसे प्रेम करेगी, उसके गर्भ से महाशक्ति शाली संतान जन्म लेगी, ऐसे ही समय बीता, पताल लोक की महिषी नामक एक महीष कुल की राक्षसी को, रंभ से प्रेम हुआ,
लेकिन यह रिश्ता समाज को स्वीकार नही था, तभी दोनों वहा से भागकर, घने जंगल के बीच मे जाकर, विवाह को सम्पन्न किया, बहुत समय बीत चुका था, इधर महिष कुल के राक्षस दोनो की तलाश करते रहते थे,
जब एक दिन पता चला की दोनों जंगल मे मौजूद है, तब महिष वंस ने विरोध मे आकर, दोनो पर हमला कर दिया, उस समय महिषी गर्भवती थी, राक्षसो की संख्या ज्यादा थी, इसलिए उन्होंने रंभ को मार डाला, लेकिन महिषी किसी तरह वहा से भागकर, यक्षो के पास पहुची,
यक्षो से अपने प्राण बचाने की गुहार लगाई, अंत मे यक्षो ने उसकी सहायता की, यक्षो ने महिष कुल के राक्षसों से युद्ध किया, और राक्षसों को पराजित किया,
फिर रंभ का शव लेकर आए, रंभ के लिए यक्षो ने एक चिता तैयार किया, लेकिन महिषी का प्रेम रंभ के प्रति इतना था, की वह स्वयं ही उस अग्नि मे कूद गई, यही से जन्म होता है,
एक ऐसे राक्षस का, जिसका सामना करने की ताकत, तीनो लोकों मे किसी के पास नही थी, वह एक महिसी से जन्मा था, इसलिए उसका नाम भी, महिषासुर पडा था, यहा तक तो ठीक था, लेकिन उसी अग्नि से एक और राक्षस ने जन्म लिया था,
जिसका नाम था रक्तबीज, जिसका अगर एक बूंद भी धरती पर गिर जाए, तो एक और असुर का जन्म हो जाता था, यही ऐसा वरदान था, जो उसे अपराजय बनाता था, जब दोनो आपस मे मिले, तो दोनों पताल जाने का सोच रहे थे,
रक्तबीज पताल की ओर प्रस्थान कर दिया था, लेकिन महिषासुर अभी भी वही खडा था, उसके मन मे तीनो लोको मे राज करने की लालसा आई, वह घने जंगल की ओर गया, और एक सिला पर बैठकर ब्रह्मा जी की तपस्या करने लगा,
उसने भी कई वर्षो तक तपस्या की, फिर ब्रह्मदेव प्रकट हुए, वत्स आंखे खोलो, हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न है, तुम जो चाहो मांग सकते हो, महिषासुर ने बिना विचार किए कहा, की मुझे अमृत्व चाहिए, फिर ब्रह्मा जी ने उसे समझाया,
की वत्स जो भी इस मृत्युलोक मे जन्म लेता है, तो उसे अपने शरीर को त्यागना ही पडता है, यह सृष्टि का नियम है, इसी कारण ब्रह्मदेव ने दूसरा वरदान मांगने का प्रस्ताव रखा, फिर कुछ समय तक महिषासुर ने विचार किया,
और फिर कहा, ब्रह्मदेव फिर मुझे ऐसा वरदान दो, जिससे कोई भी देवता या असुर मेरा वध ना कर सके, ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दिया, अब महिषासुर अपने आपको अमर समझ बैठा था,
🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 03:
पहले उसके मन मे घिनौनी हरकतों ने जन्म लिया, की स्त्रियां तुच्छ और कमजोर होती है, वह सिर्फ पुरुषों की कामवासना और सेवा के लिए होती है, वह सोच बैठा था, की कोई स्त्री मे इतना समर्थ नही, की उसका वध कर सके,
लेकिन यही अंधविश्वास उसकी मृत्यु का कारण बनने वाला था, अब वह शक्ति मे चूर तुरंत स्वर्ग पहुंचा, और इन्द्र के लोक पर हमला बोल दिया, सभी देवताओं ने अपनी शक्ति से हराना चाहा, लेकिन कोई भी उसके सामने टिक नही पाया,
और अंत मे, महिषासुर ने सभी को अपमानित कर, वहा का राजा बन गया, इसके अगले ही छण वह सम्पूर्ण पृथ्वी पर राज करने लगा, और पताल मे भी अपनी दहशत बना ली, अब वह तीनो लोकों का राजा बन चुका था,
और उसकी सेना भी बहुत बडी हो गई थी, सभी देवताओं को भी अपने अधीन रखा था, और जो महिषासुर कहता, सभी वही करते, हर दिन उसका आतंक एक नया रूप लेता, उसके मन मे तो यही था, की जिसे स्वयं ब्रह्मा ने वरदान दिया हो,
उसका विष्णु और शिव क्या बिगाड़ेंगे, वह समझ बैठा था, की इस संसार मे ऐसा कोई नही, जो उसे चुनौती दे सके, सभी देवता तो मान चुके थे, की इसे हरा पाना, हमसे सम्भव नही है, लेकिन सभी मे एक उम्मीद की किरण थी, की भगवान विष्णु ही अब रक्षा कर सकते थे,
सभी देवता किसी तरह विष्णु लोक पहुचे, इंद्र देव ने कांपती आवाज़ मे, महिषासुर का पूरा वृतांत सुनाया, की कैसे एक असुर ने, तीनों लोको मे राज कर लिया है, अब विष्णु जी ने कहा, की जिसे स्वयं ब्रह्मा जी ने वरदान दिया हो, वो अटल है,
इतना कह विष्णु जी सोचने लगे, अब सभी ने प्रस्थान किया कैलाश की ओर, जहा भगवान शिव जी ध्यान मे लीन थे, सभी ने कुछ समय उनके ध्यान टूटने का इंतजार किया, जब शिव जी उठे, और सभी देवताओं ने महिषासुर के आतंक के बारे मे बताया,
तो भगवान शिव क्रोधित हो उठे, और एक महायुद्ध की उत्पत्ति हुई, जहा एक तरफ सभी देवता थे, और दूसरी तरफ महिषासुर की खतरनाक राक्षस असुर, लम्बे समय तक चले युद्ध से, ना ही भगवान शिव उसे मार पाए, और ना ही भगवान विष्णु उसे मार पाए,
सभी सोच मे पडे थे, की यह कैसे सम्भव है, दो महा शक्ति शाली अस्त्र, उसका कुछ नही कर पाए, फिर ब्रह्मा जी ने सभी देवताओ को कैलाश आने को कहा, जब सभी आए तो ब्रह्मा जी ने बताया, की उसे मारने का एक ही रास्ता है,
उसे कोई स्त्री शक्ति ही मार सकती है, क्योंकि महिषासुर ये सोच रहा है, की कोई स्त्री उसे नही मार सकती, ये सुन इंद्र सहित सभी देवता सोच मे पड गए, की क्या कोई स्त्री इतने खतरनाक असुर को मार सकती है,
फिर महादेव और विष्णु जी ने, एक शक्ति को जन्म देने का निर्णय लिया, जो सभी अस्त्र शस्त्र अपने अंदर समा सके, जिसमें सभी देवताओं की सामूहिक शक्ति का संगम हो, देव सभा बुलाई गई, सभी देवता एक जगह उपस्थित हुए,
🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 04:
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अपने अस्त्र और शक्ति को साथ लेकर आए, सबसे पहले भगवान शिव ने अपनी शक्ति से एक अग्नि दी, फिर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र को दिया, जो समय को चीर सकता था, उसकी ऊर्जा उसी ज्योति मे समा गई,
इंद्र ने अपना अस्त्र, यानी इंद्रास्त दे दिया, वरुण देव ने अपना पास और पानी दे दिया, अग्नि देव ने अपनी अग्नि से उसे और तेज कर दिया, सूर्य देव ने अपना और अधिक उजाला दिया, यमराज ने अपना दंड दिया, जिसमे न्याय और कर्म की ताकत थी,
वायुदेव ने अपनी तेज रफ्तार और गति दी, सभी देवताओं ने अपनी अपनी शक्ति दी, वह दीपक गोल होने लगा, और उसका रंग बदलने लगा, बादल गरजने लगे, समुद्र की लहरें उठने लगी, धरती मे कम्पन महसूस होने लगा, अब समय हो गया था,
उसका तेज देख सभी हैरान थे, फिर एक स्त्री प्रकट हुई, जिसे देख सब चौंक गए, मुख मे महादेव का तेज, और आखो मे सूर्य का तेज, हाथो मे विष्णु का बल, और सभी देवताओ की शक्ति का संगम, वो एक महाशक्ति थी,
जिसका नाम था, मां दुर्गा, उनकी दस भुजाएं थी, और सभी भुजाओ मे देवताओं के, घातक अस्त्रों को धारण किया था, वह सिंह पर सवार थी, जो गर्जना कर रहा था, यह नजारा देख सभी देवता विस्मृत होने लगे, और जय जगदम्बा का नारा लगाने लगे,
सभी मे उम्मीद की किरण जाग गई, की अब महिषासुर का अंत निश्चित है, फिर माता ने सभी से कहा, की आप सभी अपना भय त्याग दो, जिसने स्त्री को तुच्छ समझा है, वही स्त्री अब उसका अंत करेगी, यहा एक भागता हुआ दूत,
महिषासुर के पास पहुंचा, और कहने लगा, की महाराज देवता एक स्त्री को भेज रहे है, आपसे युद्ध करने को, दूत ने ये भी बताया, की वह कोई साधारण स्त्री नही है, उसकी देह मे मानो पूरा ब्रह्मांड समाया हो, तब भी महिषासुर अपनी हंसी को रोक नही पाया,
और अपने जस्न मे डूबा था, की देवता एक स्त्री को भेज रहे है, कल ही मां दुर्गा सिंह मे बैठकर आगे बड रही थी, यहा से महिषासुर भी युद्ध के लिए आगे बढ़ा, सभी राक्षस अपने खतरनाक हथियार लिए खडे थे, सिंह की दहाड़ बडी भयानक थी,
मानो युद्ध कोई साधारण नही होने वाला है, महिषासुर का सबसे शक्तिशाली योद्धा त्रिनेत्र, जो सभी सेना का सेना पति था, पहले सभी सेना ने चारो तरफ से मां दुर्गा पर हमला बोल दिया, लेकिन मां ने सुदर्शन चक्र से सभी को, मृत्यु के घाट उतार दिया,
जो बच भी गए थे, उन्हे त्रिशूल से नष्ट कर दिया, और अपनी दिव्य तलवार से, त्रिनेत्र को भी मृत्यु दे दी, दूर खडे देवता, ये सब कुछ देखकर, पहली बार राहत की सांस ली, महिषासुर अपने सैनिकों को परास्त देख, अब युद्ध भूमि मे उतरा,
विशाल और कठोर शरीर, हाथ मे अग्नि का गोला लिए, मां दुर्गा से विवाह का प्रस्ताव रखा, और तीनो लोकों की रानी बनाने को कहा, तुम्हे अपने मे बहुत अहंकार है,
की स्त्री तुच्छ होती है, आज एक स्त्री ही तुम्हारा वध करेगी, यह सुन महिषासुर बहुत क्रोधित हो उठा, और मां के ऊपर अपने गधा से, एक घातक वार किया,
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लेकिन मां ने तुरंत ढाल से रोक लिया, और तुरंत तलवार से वार किया, जिससे महिषासुर पीछे हुआ, अब महिषासुर ने अपना रूप बदल लिया, और एक बडे भयानक भैंसे का रूप ले लिया, और मां के ऊपर अपने सींगो से हमला कर दिया,
अगले ही क्षण मां ने तलवार से, उसकी सींग काट दिया, फिर उसने रूप बदला, और एक हाथी का रूप धारण कर, फिर से मां पर हमला किया, मां ने सुदर्शन चक्र से उसकी सूंघ को काट दिया, फिर उसने एक सिंह का रूप लेकर, देवी पर हमला किया,
मां ने बज्र से उसपर घातक हमला किया, जिससे वो नीचे गिर पडा, फिर उठकर वह अपने असली रूप मे आ गया, इस तरह वह बार बार रूप बदलकर, देवी पर वार करता रहा, लेकिन देवी उसके प्रत्येक रूप पर, विजय प्राप्त करती रही,
यह युद्ध इतना भयानक और कठिन रहा, की एक दिन दो दिन नही, पूरे नौ दिनो तक युद्ध चला, हर दिन महिषासुर एक नया रूप लेता, हर दिन मां उसे अपने रूप और शक्ति से हरा देती, यही से ही हम आज भी मा दुर्गा को,
नौ दिनो तक, उनके अलग अलग अवतारो की पूजा करते है, आपको माता के नौ रूप को भी बताते है, पहले दिन मां ने शैलपुत्री की तरह धैर्य दिखाया, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी की तरह तप की उर्जा जगाई, तीसरे दिन चंद्रघंटा रूप मे, भय को भगाया,
चौथे दिन कोसमांडा की तरह सृष्टि की उर्जा दी, पांचवें दिन स्कंदमाता बनकर संरक्षण दिया, छठवें दिन कात्यायनी बनकर पराक्रम किया, सातवे दिन कालरात्रि बनकर , अंधकार का नास किया, आठवें दिन महागौरी बनकर अरूण प्रकट की,
और नौवें दिन, सिध्दीदात्री रूप मे, देवताओं को विजय दिलाई, यह हमे सिखाती है, की जीवन मे हर दिन, हर परिस्थिति मे शक्ति बदलकर काम आती है, अब अंतिम दिन आ चुका था, इस बार अपनी पूरी शक्ति और बल से, महिषासुर एक विशाल भैसा बना,
और पूरी ताकत से दौडा, उसकी दौड से पृथ्वी पर कम्पन महसूस हो रहा था, सभी देवता देख भयभीत हो गए, लेकिन मां दुर्गा अटल रूप मे खडी थी, और इस बार अपनी शक्ति और क्रोध से, त्रिसूल से उसपर हमला किया, यह हमला इतना खतरनाक था,
की महिषासुर की छाती को भेद दिया, अब महिषासुर तडपने लगा, तुरंत हाथ जोडकर मां से क्षमा मांगने लगा, देवी मुझे क्षमा कर दो, मेरी भूल थी, जो मै समझ बैठा था, की स्त्री कमजोर होती है, मां दुर्गा ने कहा मृत्यु तो तेरी निश्चित है,
लेकिन जब भी दुर्गा मां की पूजा होगी, तो महिषासुर को भी याद किया जाएगा, इतना कहकर मां ने, त्रिसूल से महिषासुर के शिर को, धड से अलग कर दिया, और इस तरह से महिषासुर का अंत हुआ, जब महिषासुर का अंत हुआ,
तो तीनो लोकों से जय दुर्गा, जय भवानी का नारा गूंजने लगा, देवताओ ने फूलो की वर्षा की, रिषी मुनियो ने मंत्रो का उच्चारण किया, और समस्त लोको मे खुशी मनाई गई, स्वर्ग की गद्दी इंद्र को वापस मिली, और सम्पूर्ण पृथ्वी पर शांति आई,
🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 06:
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अब आपको लग रहा होगा, की यह युद्ध यही समाप्त हो गया, लेकिन युद्ध भूमि मे अभी भी, एक राक्षस छुपा बैठा था, जिसका नाम था रक्तबीज, उसकी काली आंखे, और भयंकर शरीर, लेकिन इससे भी ज्यादा भयानक था,
रक्तबीज का वरदान, ब्रह्मा जी ने वरदान दिया था, यदि उसके शरीर से एक बूंद भी गिर जाए, तो उतने ही रक्तबीज और पैदा हो जाएंगे, अब कल्पना कीजिए, की आप जितना उसके शरीर से रक्त बहाएंगे, तो उतना ही युद्ध, आपके लिए मुश्किल हो जाएगा,
यह एक ऐसा राक्षस था, जिसे ना तो किसी की सहायता की जरूरत थी, और ना ही किसी सेना की, अब रक्तबीज युद्ध भूमि मे आया, दूसरी तरफ सभी देवता, अपने आजादी का जस्न मना रहे थे, जैसे ही उसे सभी ने देखा, तो एक जगह एकत्रित हो गए,
सभी ने उसपर वार किया, सबसे पहले इंद्र ने अपने बज्र से हमला किया, जो बिजली की तरह फट गया, अब अग्नि देव ने अपने धनुष से तीर छोडा, रक्तबीज घायल हो गया, और उसका रक्त जमीन मे गिर गया, तुरंत उतने ही रक्तबीज और पैदा हो गए,
देवता जितनी बार उसपर हमला करते, तो उतने रक्तबीज और पैदा हो जाते, देवताओ को समझते देर ना लगी, की ये महिषासुर से भी खतरनाक है, सभी देवता तुरंत मां दुर्गा की शरण मे गए, और सारा वृत्तांत सुनाया, मां ने अपनी दिव्य शक्ति से सब देखा,
और सोचने लगी, की यहा साधारण ताकत से काम नही चलेगा, जरूरत थी एक ऐसे रूप की, जो नियंत्रण और विनाश दोनो मे लाजवाब हो, मां ने अपनी शक्ति को बढाया, उनके नेत्रो से आग की लपटे निकलने लगी, उनका शरीर विशाल हो गया,
और तभी उनका अचानक एक रूप सामने आया, जो था मां काली का, ये देख सभी देव अचंभित रह गए, उनका पूरा शरीर काला था, और उनकी आंखे लाल थी, और भुजाओ मे अस्त्र शस्त्र थे, उनके हाथ मे एक कटोरा था,
जिसमे रक्त था, उनकी जीभ क्रोध से बाहर आ रही थी, अब काली मां युद्ध भूमि मे उतरी, सारे राक्षस डरकर पीछे हटे, लेकिन रक्तबीज अभी भी हंस रहा था, क्योकि उसे लग रहा था, की उसे कोई परास्त नही कर सकता,
अब रक्तबीज मां की ओर बडा, और फिर मां ने खडग से वार किया, जैसे ही रक्तबीज का खून जमीन मे गिरने लगा, तो देवी ने रक्त को कटोरे मे भर लिया, और उसे पी लिया, एक बूंद भी रक्त जमीन मे गिरने नही दिया, हर बार एक घातक प्रहार करती,
और जैसे ही उसका रक्त निकलता, तो उसे पी लेती, माता की युद्ध भूमि मे गति बहुत तेज थी, वह प्रकाश की गति से सभी पर वार करती थी, और सैकडो रक्तबीज को एक साथ मारकर, उन सभी का खून पी जाती, उनका नृत्य राक्षसो को, और अधिक भ्रमित कर रहा था,
जैसे ये सब करने मे, उन्हे बहुत मजा आ रहा हो, अब रक्तबीज का अंत हो चुका था, लेकिन माता क्रोध अब बेकाबू हो रहा था, वह भूल गई, की उन्हे केवल रक्तबीज का संघार करना था, अब वह पूरी पृथ्वी को नष्ट करने लगी,
सभी देवता समझ गए, की अगर देवी को नही रोका गया, तो प्रलय हो सकता है, सभी भगवान शिव के पास गए, और उन्हे सब बताया, भगवान शिव तुरंत युद्ध भूमि मे उतर गए,
🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 07:
क्योकि उन्हे पता था, की उनका क्रोध और कोई नही सह सकता, वह एक जगह बैठ गए, बेकाबू नृत्य मे मां काली थी, जैसे ही उनकी तरफ दौडी, तो उनका पैर भगवान शिव की छाती पर रख गया, जैसे ही उनका पैर अपने पति पर लगा,
उन्हे एक झटका सा लगा, उनका गुस्से भरा रूप रुक गया, उन्हे लगा की वो मर्यादा से आगे बढ गई, इस बात से मां काली को सरमिंदगी हुई, उसी शर्मिंदगी मे उनकी जीभ बाहर निकल आई, यही वो दृश्य है, जिसे हम आज मां काली मे देखते है,
शिव जी नीचे लेटे है, और मां काली उनके ऊपर खडी है, इस युद्ध के बाद सारा संसार जान गया था, की एक स्त्री शक्ति विहीन नही होती, दो ऐसे खतरनाक राक्षस, जिन्हे देवता भी नही हरा पाए, उन्हे एक स्त्री शक्ति ने हराया था,
इन्ही युद्ध से पूरे संसार को एक स्त्री के, क्रोध शक्ति और बुद्धि का अनुभव हो गया था, हमारी यह कथा यही समाप्त होती है, मां दुर्गा को अच्छे से जान पाना, और सभी बातो को गहराई से देखना, क्या आपको इस वीडियो मे कुछ सीखने को मिला,
तो आप सभी से मेरी एक ही अभिलाषा है, की आप अपने दोस्तो को वीडियो जरूर शेयर करे, जिससे सभी को इन बातो के बारे मे पता चले, ऐसी कथाएं सनातन धर्म की प्रतिष्ठा है, जिन्हे सभी को जानना चाहिए, अब हमे आग्या दीजिए, जय माता की,





