"राम जी की‌ एक अनसुनी कहानी" Part 3

जब जनकपुर में वानरों की सेना...

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जनकपुर की सभा में जामवंत जी और हनुमान जी सहित वानर सेना प्रसाद रूपी आम और भोजन ग्रहण करते हुए, सामने राजा जनक, सीता माता और प्रभु श्रीराम आनंदपूर्वक देख रहे हैं।

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सभी के मुखिया थे जामवंत, बिल्कुल जामवंत को देखकर चलते, अगर जामवंत जी इधर देखे, तो सभी बानर इधर देखने लगते, जैसे ही जनकपुर की धरा मे प्रवेश किया, दूर से ही समझ आने लगा, की प्रभु श्री राम आ रहे है, 

सारी तैयारियां तो पहले से ही थी, आते ही बालकनी मे खडी सभी मईयाएं, राम जी की बलैयां लेने लगी, हमारे दमाद जी आए है, जैसे ही पूरे जनकपुर मे वानरो ने प्रवेश किया, वानरो को देख उनकी ऐसी प्रसंशा, सभी बानर एक जैसे दिखे, 

जनकपुर की नारियां, आरती की थाल लेकर, सभी की आरती कर रही है, लेकिन बानर एक बार भी उनकी तरफ नही देखें, सभी जानते थे, जामवंत जी सीधे जा रहे है, हमे भी सीधे चलना है, श्री राम जानकी सहित सभी का स्वागत हुआ, 

सभी को बैठाया गया, जनक जी सभी को देख आनंदित हो गए, बोले प्रभु पूरे जनकपुर मे चर्चा है, आपके वानरो की ऐसी सेना है, यही वानर ही है, जो रावण की सेना को मार सकते है, इतने शिष्टाचार इतने गम्भीर, देखो इतनी बडी सभा मे करोडो बानर बैठे है, 

दूर बैठे जामवंत जी सिर हिलाए, तो सभी सिर हिलाए, सभी बहुत दूर से चलकर आए हो, सभी के भोजन प्रसादी की व्यवस्था है, आप सभी आसन ग्रहण करे, सभी बानर चौकी मे बैठ गए, पहली बार बानर, चौकी मे बैठकर खा रहे है, 

सभी के लिए सोने की थाली, चांदी की कटोरी, सभी मन से बहुत खुश थे, लेकिन बानर थाली मे नही देख रहे है, सभी जामवंत को देख रहे है, पूरी थाली मे सभी प्रसाद रखा है, फलो की एक थाली अलग रखी गई थी, दूर खडे सभी लोग देखे, 

बानरो के आगे कितने स्वदिष्ट भोजन रखे है, लेकिन बानर है की, थाली मे ही नही देख रहे है, सभी आपस मे बतिया रहे थे, इसके बाद जामवंत ने जल लिया, और थाली मे फेरकर बोले, अन्य पूर्ण सदा पूर्ण, सभी बानरो ने वैसा ही किया, 

जामवंत जी थाली के आगे हाथ जोडे, सभी बानरो ने हाथ जोड लिया, सभी कुछ राजा जनक देखे, बोले राम जी मान गए, क्या अद्भुत सेना है, राम जी भी हल्की मुस्कान किए, और धीरे धीरे भोजन पा रहे है, सोचे लाज बची रहे जितनी देर है, सभी प्रसाद पा रहे है, 

एक महल के अंदर का सीन है, जहा चौकी मे बैठकर जामवंत जी खाना खा रहे है,

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जैसे जामवंत खा रहे है, वैसे ही वानर खा रहे है, जितनी दाल जामवंत जी डालते, उतनी ही दाल सभी वानर डालते, सभी देख कर आनंद ले रहे थे, थोडी देर बाद, जामवंत जी की नजर पडी आम पर, जामवंत जी ने जैसे ही आम उठाया,

सभी बानरो ने आम उठा लिया, अब जामवंत जी ने आम को थोडा दबाया, देखना चाहा कितना पका आम है, उनके जोर लगाते ही, आम की गुठली निकलकर उछल गई, अब सभी बंदर आम दबाए पडे है, पूरी जोर लगाकर दबा रहे है, आम की गुठली उछलनी चाहिए, 

क्योकि जामवंत जी की गुठली उछली है, जब सभी ने अपना अपना जोर लगाया, तो सभी की गुठली उछली, इधर जामवंत जी सोचे, इन हाथो से मेघनाथ नही निकल पाया, इन हाथो से रावण नही निकल पाया, एक छोटी सी गुठली निकलकर भाग गई, 

अब जामवंत जैसे ही उठे गुठली उठाने को, बानरो ने सोचा, हमे भी ऐसे ही उठानी है, सभी एक दूसरे को झपट्टा मारे, कही कडी उछाल रहे है, कही टेबल के नीचे से गुठली ढूंढ रहे है, ब्रेंच इधर उधर कर रहे है, जनकपुर की जो सभा, स्वर्ण मंडित थी, चांदी से मंडित थी, 

आज इन बानरो के कारण, खीर सब्जी पूडी से मंडित हो गई, कडी सब्जी उझाल उझाल कर, पूरी सभा का लेपन कर दिया, ये सब देख राम जी नीचे मुंह किए बैठ गए, सभी बानरो को खुली छूट मिल गई, एक दूसरे की थाली से ले लेकर भागे, 

दो चार बानर तो, जनक जी की थाली से लेकर भाग गए, जनक जी ये सब देखते ही रह गए, फिर जनक जी ने राम जी की ओर देखा, जनक जी समझ गए, की ये पूरी तैयारी थी, सीधे सीधे चलना है, सीधे सीधे खाना है,

नही बानर अपना स्वभाव कैसे छोडे, जनक जी ने राम जी को देखा, और जाकर उन्हे गले लगाया, बोले हम बिल्कुल अप्रसन्न नही है, हमे बहुत अच्छा लगा, की आज जनकपुर मे इतने दिनो बाद, ऐसा आनंद हुआ है, इतना सुन राम जी को भी थोडी शांति मिली, 

उन्होने तिरछी नजर से जामवंत जी को देखा, जो अभी भी हाथ मे आम की गुठली लिए खडे थे, गुठली फेंककर हाथ जोड लिया, राम जी ने हल्की स्माइल की, तो जामवंत जी समझ गए, की आज बच गए, और विचार किया, अब आगे ऐसा कभी नही करूंगा, 

जिसकी सेना वही सम्हाले, इतनी विशाल सेना को, उनके अलावा और कोई नही सम्भाल सकता, ये एक मजेदार कहानी आपको कैसी लगी, पढ़ने मे आनंद आया की नही, अगर कहानी अच्छी लगी हो, 

तो प्रेम से प्रभु श्री राम की जय, जरूर लिखते जाना, और आप अपना तर्क भी कमेंट मे साझा कर सकते हो, मुझे पढकर बहुत खुशी होगी, और आगे किसकी कहानी पढ़ोगे, उसे भी बताते जाना, कहानी पढ़ने के लिए, आप सभी का धन्यवाद, 

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