दो कन्याओ के शिलपिल्ले भगवान | Hindi Story

एक पारंपरिक भारतीय चित्रण जिसमें राजा की बेटी गांव पहुंचकर जमींदार की साधारण बेटी को गले लगा रही है; दोनों के बीच सच्ची मित्रता और भक्ति का भाव दिखाया गया है, पीछे गांव का घर और प्राकृतिक माहौल दिखाई देता है।

एक दबंग जाटनी की कहानी पढ़ें - click here 

क्या साधारण पत्थर मे भगवान हो सकते है, जो स्वयं घर से बाहर निकलकर आए, या नदी से बाहर निकलकर आए, हां यह सच है, भक्तमाल की एक अनसुनी कहानी, दो कन्याओ की अद्भुत भक्ति, जिससे ठाकुर जी स्वयं रीझ गए, 

कहानी की शुरुआत एक साधारण गांव से होती है, जहा एक जमींदार की छोटी लडकी थी, और उस गांव से कुछ दूरी पर एक राज्य था, जहा एक राजा की बेटी रहती थी, अक्सर जमींदार को राज्य मे किसी काम से जाना पडता था, 

तो कभी कभार वह, अपनी बेटी को भी ले जाता था, की वो भी इतने खूबसूरत महल को देखे, लडकी को भी महल की खूबसूरती और सुंदरता, अच्छी लगती थी, जब भी अपने पापा के साथ जाती, तो जमींदार तो अपने कार्य से जाता, 

लेकिन उसकी बेटी पूरे महल मे खेलती, ऐसे ही एक दिन, राजा की बेटी ने उसे देख लिया, जो एक गिरे हुए गमले को, सही सलामत उठाकर रख रही थी, और जहा वह गमला गिरा था, वहा कुछ कचडा भी हो गया था, 

तो उसे साफ कर रही थी, राजा की बेटी को उसका स्वभाव पसंद आया, वह उसके पास गई, और बोली तुम मेरी सखी बनोगी, वह साधारण लडकी पहले तो हिचकिचा गई, की राजा की बेटी, मुझे सखी बनने को कह रही है, 

वह कुछ कह पाती, इतने मे उसके पिताजी ने आवाज दी, बिटिया कहा हो, चलो आज जल्दी चलना है, उसने राजा की बेटी को बिना जवाब दिए, चली गई, अब जमींदार का राज्य मे कोई काम ना पडता था, ऐसे ही कुछ दिन बीत गए, 

इधर राजा की बेटी, हर रोज उसका इंतजार करती, की वो कब आएगी, क्योंकि उसे एक सरल स्वभाव वाली लडकी पसंद थी, और यहा वह जमींदार की भी लडकी सोचा करती, की मुझे कब महल मे जाने का मौका मिलेगा, 

मै उसकी सखी बनना चाहती हूं, उस दिन बेचारी को कुछ जवाब नही दिया, तो बुरा मान गई होगी, ऐसी वो खोए रहती थी, एक दिन राजा की बेटी से रहा ना गया, वह स्वयं गांव आ गई, और उस जमींदार के घर पहुंची, 

जमींदार ने जैसे देखा, वह हैरान रह गए, की राजा की बेटी यहा, बिना किसी सैनिक या सेविकाओं के साथ, तुरंत उसके पास गया, राजकुमार आप यहा, हां मुझे अपनी सखी से मिलना है, सखी वो भी तुम्हारी, 

राजकुमारी जी यहा आपकी कौन सखी है, इतने मे ही पीछे से जमींदार की बेटी निकली, तुरंत राजा की बेटी ने उसे गले लगा लिया, और बोली बाबा, ये है मेरी सखी, जमींदार एक पल के लिए स्तब्ध रह गया, 

की कहा महलो की राजकुमारी, और कहा एक गांव की लडकी, इसके बाद दोनों बाते करने लगी, की उस दिन मैने तुमसे कहा था, तुमने बिना कुछ जवाब दिए चली आई थी, सखी मुझे माफ कर दो, जब तुमने सखी का प्रस्ताव मेरे सामने रखा, 

मुझे यकीन नही हो रहा था, और मै कुछ कह पाती, तभी पिताजी ने आवाज दी, तो मै चली आई थी, दोनो ने एक दूसरे को माफ किया, और एक गहरी मित्रता की शुरुआत हुई, अब तो वह जमींदार की बेटी, बिना किसी से पूछे महल मे, कही भी आ जा सकती थी, 

अगले भाग का इंतजार करे, जल्दी ही आएगा---


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