मैनावती अंडे से जन्मी कहानी पढ़ें - click here
आज की कहानी बहुत शानदार होने वाली है, इसमें आप देखेंगे की, एक जाट की बेटी ने कैसे, राजा के बेटे का घमंड चूर-चूर किया, और आप जानेगें, कैसे कभी-कभी एक साधारण बोली गई बात,
एक राजघराने की नींव तक हिला देती है।
ये कहानी है एक जाटनी के आत्मसम्मान, और राजकुमार के घमंड की, जहाँ मिट्टी की बेटी ने, शाही अभिमान को रौंद डाला। कहानी की शुरुआत होती है, एक जाटनी अपने खेत में गोबर पाथ रही थी, अर्थात गोबर के उपले बना रही थी,
और साथ-साथ मुंह से तिल चबा रही थी। तभी वहां से राजा का बिगड़ा हुआ, नौजवान लड़का गुजर रहा था। जब उसकी नजर उपले बनाती हुई, उस नौजवान सुंदरी पर पड़ी , तो उसने सोचा क्यों ना, इसके साथ थोड़ी ठिठौली की जाए।
इस सोच के साथ वह अपने घोड़े को उसके थोड़ा करीब लेकर गया, और उस जाटनी से बोला, तिल थापनी गोबर चाबणी, ई गांव को के नाव, अर्थात तिल बनाने वाली, और गोबर चबाने वाली, इस गांव का नाम क्या है?
जाट की लड़की भी बड़ी तेजतर्रार थी। उसने भी कुंवर को उसी ढंग से उत्तर दिया। सेल चढ़िया घोड़ा फर्क कावड़िया न, ताव गांव को नाव ई टेली, अर्थात राजकुमार पर चढ़े हुए घोड़े, इस गांव का नाम टेली है।
जाटनी की हाजिर जवाबी, और उसके नेहले पर दहले वाले जवाब को सुन, राजकुमार के तन बदन में आग लग गई। वो ठहरा राजा का लड़का, और वह मामूली से जमींदार की लड़की, गुस्से से लाल पीला होता हुआ, राजकुंवर जाटनी से बोला,
तेरी यह मजाल, तू राजा के लड़के को उल्टा जवाब दे। मैं तेरे साथ ऐसी कहानी करूंगा, कि तू सदा याद रखेगी, कि तेरा पाला किससे पड़ा था। मैं तुझसे विवाह करूंगा, और चौथे फेरे में ही तुझे छोड़ दूंगा। ना तो तू ब्याही रहेगी और ना कुंवारी।
इतनी बात कह कुंवर वहां से जाने लगा। अब जाटनी उसे ऐसे कैसे जाने देती? उसने कहा, रुक राजा की घमंडी औलाद। अब मेरी भी बात सुनता जा। तू बड़ा राजकुमार बना फिरता है ना।
अगर तेरे ही सगे बेटे से, तेरा काला मुंह करवाकर, तुझे सात जूते मरवाकर, तेरे इस घमंड को चूर-चूर ना किया, तो मैं भी असल जाट की औलाद नहीं। जाटनी की बात सुन कुंवर चुपचाप, बिना कुछ बोले वहां से चला गया।
राजकुमार ने राजमहल लौट कर, खाना पीना छोड़ दिया, और अनशन करने लगा। राजकुमार अपने कमरे में चुपचाप, क्रोधित होकर सोचता रहता, और किसी से कुछ बातचीत नहीं करता, इकलौते बेटे के अचानक, बदले इस व्यवहार से राजा और रानी बहुत परेशान हुए।
उन्हें समझ नहीं आ रहा था, कि क्यों राजकुमार ने अचानक खाना पीना छोड़ दिया। जब भी वे उससे इन सब की वजह जानना चाहते, तो वह हर बार बात को टाल देता। राजा इसी सोच में परेशान और चिंतित बैठे हुए थे । तब रानी ने राजा से कहा महाराज नया खून है।
अभी-अभी जवानी में पैर रखा है। क्या पता कुछ ऐसा हो गया हो , जिसे वह अपने मां-बाप के साथ नहीं बतलाना चाहता हो। राजा बोला तो फिर क्या करें अब? रानी बोली महाराज आप उसके जिगरी दोस्त को बुलवा लो, और उसे राजकुमार के पास भेजो।
उसके आगे राजकुमार जरूर अपने मन की बात कहेगा। राजा को रानी की बात उचित लगी। अगले दिन राजा ने राजकुमार के खास दोस्त को बुलवाया, दोस्त के आने पर उसे अपने बेटे की हालत से अवगत करवाते हुए , उसके पास भेजा।
रावण ने की गुस्ताखी रघु महाराज हुए नाराज - click here
राजकुमार के जिगरी ने, जब उसके पास जाकर, उसकी इस व्यथा का कारण पूछा, तो अंदर ही अंदर घुल रहे राजकुमार ने , उसके आगे सब उगल दिया। जाट की लड़की के साथ हुई पूरी घटना, राजकुमार अपने जिगरी दोस्त के सामने कह सुनाता है, और कहता है ,
उस मामूली सी जमींदार की लड़की को, मैं चुनौती तो दे आया, कि मैं उसे बीच विवाह, चौथे फेरे में छोड़ दूंगा, पर मेरी अब यह चुनौती पूरी कैसे होगी, अपने राजकुमार मित्र की बात सुन, उसका जिगरी हंसता हुआ बोला,
अरे मेरे यार, इतनी छोटी सी बात के लिए, तुम खाना छोड़कर अनशन पर बैठे हो, तुम चिंता मत करो , मैं तुम्हारे पिता यानी महाराज से अभी बात करता हूं। इतना कहकर वह राजा के पास जाता है,
और उन्हें आधी अधूरी बात, बताते हुए कहता है कि, महाराज आपके सुपुत्र का हृदय, राज्य की एक जाट जमींदार की लड़की पर आसक्त हो गया है। बस उसी के चक्कर में वह अनशन पर है। अपने बेटे के दोस्त की बात सुन।
राजा बोला, अरे बस इतनी सी बात। मैं अभी उस जमींदार के घर, राजकुमार का रिश्ता पहुंचा देता हूं। राजा अगले दिन ही अपने एक पुरोहित के हाथों, जाट के घर अपने लड़के का रिश्ता भेज देता है। पुरोहित तुरंत आदेशानुसार, जाट के घर राजा के लड़के का विवाह प्रस्ताव लेकर पहुंच जाता है।
राजा के लडके का रिश्ता आया देख, एक बार के लिए जाट सकपका गया, कहा वह राजा का लडका, और कहा हम साधारण से जमींदार, वह गहरी सोच मे पड जाता है, उसका दिल इस रिश्ते के लिए गवाही नही दे रहा था, पर भला राजा के आदेश को, टालने की उसके अंदर क्षमता कहा, अंततह वह विवाह के लिए अपनी सहमति जता देता है,
जाट की लडकी यानी जाटनी को, जब पता चला, तो वह बिना अपने पिता को कुछ बताए, मन ही मन सतर्क हो जाती है, उसे पता था, राजा का लडका कुछ गडबड जरूर करेगा, निश्चित तिथि पर राजकुमार, बारात लेकर जाट के घर पहुंच गया, पंडित ने मंत्र आदि पढते हुए, लडकी को बुलाया, और विधि विधान के साथ, उन दोनो का विवाह कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया,
रस्म अनुसार जब उन दोनो के फेरे हुए, तो तीन फेरे पूरे होने तक तो राजकुमार ने कोई हरकत नही की, पर ज्यो ही चौथा फेरा शुरू हुआ, वो धड मार कर एकदम गिर पडा, अब उसके मित्र आदि तो पहले से ही, सारी योजना से भली-भांति परिचित थे, उन्होने आनन-फानन मे हल्ला मचाते हुए, राजकुमार को उठाया, और बोले राजकुमार को मिर्गी का दौरा आया है,
ठीक होने पर इसे वापस ले आएंगे, इतना कहते हुए उन्होने राजकुमार को पालकी मे लिटा दिया, और शादी के बीच ही उसे ले गए, इधर जाटनी भी पहले से ही सतर्क थी, उसे राजकुमार के मंसूबो का अच्छे से पता था, चौथे फेरे के दौरान, जब राजकुमार बहाना करते हुए नीचे गिरा, और यह सारा झमेला हुआ, उसी दौरान उसने चुपके से, राजकुमार की कटार निकाल ली थी,
उनके जाने के बाद, जाट की बेटी ने, राजकुमार की कटार से बाकी बचे हुए फेरे ले लिए, इस प्रकार विवाह संपन्न हो गया, अब बदले की बारी उसकी थी, जाट की लडकी को धोखे से विवाह के बीच मे छोड, राजकुमार राजमहल लौट आता है, वक्त बीता, पर कुंवर अब उसे लाने के लिए, क्यो जाने वाला था भला, उसे तो बस अपनी कही हुई बात पूरी करनी थी,
रामायण की एक अनसुनी कहानी - click here
जाट की भी इतनी हिम्मत नही पडी, कि वह राजा के सामने जाकर, अपनी बेटी के साथ हुए, इस अन्याय की गुहार लगाए, जाट की बेटी दिन प्रतिदिन, गहरी चिंता मे सूखने लगी, अंदर ही अंदर उसे यह बात कचोटती रहती, कि राजा का लडका तो, उसे बीच विवाह छोडकर अपनी कही बात पूरी कर गया, अब वह अपनी बात को कैसे पूरा करेगी,
आखिरकार जाटनी ने भी एक योजना बनाई, अपनी योजना को अंजाम देने के लिए, वह अपने पिता के पास जाती है, और उनसे कहती है, पिताजी कुछ दिन से मेरा मन उखडा उखडा सा रहता है, अगर आप इजाजत दे, तो मै मानसिक शांति के लिए तीर्थ जाना चाहती हूं, जाट ने भी सोचा ठीक है, तीर्थ आदि घूमने से उसकी बेटी, अपने साथ हुए उस हादसे को, भूल जाएगी,
उसने खुशी-खुशी अपनी बेटी को, तीर्थ जाने की इजाजत दे दी, और जाते हुए उसे राह खर्च के लिए, बहुत सारा धन आदि भी दे दिया, जाट की बेटी तीर्थ के लिए घर से निकल पडती है, पर उसे कौन सा सच में तीर्थ जाना था, उसे तो राजा के लडके से बदला लेना था, अंततह वह अपनी बनाई योजना अनुसार, उसी नगर मे जाकर रहने लगी, जहा का राजा उस राजकुमार का पिता था,
अपने पिता के दिए धन आदि से, जाटनी ने नगर के अंदर एक ठीक-ठाक घर ले लिया, और वह अपना रूप बदलकर, गुजरी का रूप धारण कर, राजा की नगरी मे रहने लगी, और कुछ बढिया नस्ल की गाय ले ली, योजना के तहत वह अपनी गायो को हरे चारे के साथ-साथ, बहुत से सूखे मेवे खिलाती, मेवे चराने से गाय का दूध अति उत्तम होता चला गया,
गुजरी बनी जाटनी ने, अपने गायो के उस प्योर दूध से, दही जमानी शुरू कर दी, और शाम के समय वह पूरी तरह बन ठन कर, नगर के चौक मे, अपने दही बेचने के लिए जाने लगी, जो कोई भी उस गुजरी से दही खरीदने आता, और जब दही के दाम पूछता, तो गुजरी दही का भाव सौ रूपए बताती, उस समय सौ रुपए बहुत अधिक होते थे,
और उससे गिनें चुनें लोग ही दही खरीदते,एक दिन राजकुमार का दोस्त, जब चौराहे से गुजरा तो उसने भी, गुजरी बनी जाटनी से दही का भाव पूछा। सौ रुपए बताने पर उसने सोचा, अवश्य ही कोई खास प्रकार की दही होगी। इसलिए इसका मूल्य इतना अधिक है। उसने गुजरी से वह दही खरीद ली, और राजमहल जाकर वह दही उसने राजकुमार को दे दी।
राजकुमार ने जब दही का स्वाद चखा, तो उसकी तबीयत फड़क उठी। एक राजकुमार होते हुए भी, उसने ऐसी स्वादिष्ट दही कभी नहीं खाई थी। दही के स्वाद से अभिभूत हो गया । जब उसने अपने मित्र से, उस अत्यधिक स्वादिष्ट दही का राज पूछा तो, उसके दोस्त ने उसके आगे की पूरी बात कह सुनाई।
राजकुमार ने सोचा, जिसकी दही इतनी स्वादिष्ट इतनी उत्तम है, वह स्वयं कैसी होगी? ऐसा सोचकर वह अगले दिन, खुद गुजरी के पास जाने का विचार करता है। गुजरी आम दिनों की ही तरह, नगर के चौराहे में खड़ी अपनी दही बेच रही थी। तभी राजकुमार उस गुजरी के पास आता है, और उससे दही देने को कहता है।
वो यह बिल्कुल भी नहीं पहचान सका, कि यह गुजरी और कोई नहीं, बल्कि वही जाटनी है, जिसे उसने विवाह के बीच में ही छोड़ दिया था। राजा का लड़का गुजरी के रूप सौंदर्य पर आसक्त हो जाता है। गुजरी यानी जाटनी की तो शुरू से ही यह योजना थी, कि वह किसी प्रकार, राजा के लड़के को अपने जाल में फांस सके।
अब राजकुमार हर रोज गुजरी के पास दही के बहाने आने लगा। एक दिन गुजरी ने उसे अपने डेरे में आमंत्रित किया। दोनों का प्यार प्रवाण चढ़ा, और वह एकांत में बने गुजरी के डेरे में मिलने लगे। इस प्रकार गुजरी यानी जाटनी गर्भधारण कर लेती है। अगली बार जब राजकुमार उसके पास आया, तो वह राजकुमार से अपने घर जाने की इजाजत लेते हुए कहती है,
अब मुझे मेरे घर जाना पड़ेगा। मुझे बहुत दिन हो गए, घर वाले चिंता में होंगे। राजकुमार गुजरी को रोकने की बहुत चेष्टा करता है। पर वह नहीं मानती। अंततः गुजरी राजकुमार को जल्दी ही दोबारा मिलने का आश्वासन देती है। उसकी बात से सहमत हो। राजकुमार उसे निशानी के तौर पर, अपनी अंगूठी निकाल कर देते हुए कहता है,
अबकी बार जब तुम हमारे राज्य में आओ, तो तुम्हें कहीं बाहर ठहरने की आवश्यकता नहीं। तुम पहरेदारों को मेरी यह अंगूठी दिखाकर, सीधी राजमहल चली आना। राजकुमार की अंगूठी ले। जाटनी फिर से अपने गांव अपने पिता के पास लौट जाती है। तय समय पर जाटनी ने एक बड़े ही स्वस्थ, और तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र के जन्म पर उसने अपने पिता को भी अपनी सारी योजना बता दी।
समय अपनी गति के साथ बीतने लगा। जाटनी अपने पुत्र का खानपान का विशेष ध्यान देती, जिससे वह दिन दुगनी, और रात चौगुनी गति से बढ़ने लगा। जाटनी से पैदा हुआ वह तेजस्वी लड़का, अपनी उम्र के सभी लड़कों से होशियार और बलवान था। खेल-खेल में वह अपने साथ खेलने वाले, दूसरे लड़कों को पीट दिया करता था।
ऐसे ही एक दिन जब वह खेल रहा था, तो उसने एक ब्राह्मण के लड़के को घोड़ा बनाया, और खुद उस पर सवार हो गया। घोड़े बने उस लड़के को, जाटनी के लड़के ने बुरी तरह से पीट दिया। रोते-चिल्लाते ब्राह्मण का लड़का जब अपने घर जाकर, अपनी मां को सारा माजरा बताता है, तो उसकी मां जल भुन उठती है।
अत्यंत क्रोधित होते हुए, वो जाट के घर जाती है, और जाटनी पर बिफर पड़ती है। कहीं की ना जाने किसका लड़का लाई है। गांव के सभी लड़कों की नाक में दम किया हुआ है। मन आया उसको पीट दिया। मन आया उसे मार दिया। कहीं का। गुस्से से भरी ब्रह्माणी, जब यह बातें जाटनी को कह रही थी, तब जाटनी का बेटा भी सारी बातें सुन लेता है।
उसके तन बदन में आग लग जाती है। ब्रह्मणी के जाने के बाद, वह गुस्से से लाल पीला होता हुआ, अपनी मां के पास गया, और बोला या तो मुझे मेरे पिता का नाम बताओ, अन्यथा मैं तुझे मार डालूंगा। मैं भूल जाऊंगा कि तुम मेरी मां हो। अपने बेटे के मुख से यह बात सुन। उसकी मां की आंखें स्वत ही नम हो जाती है। वह कहती है,
"मैं तुझे तेरे पिता का नाम अवश्य बतला दूंगी।" पर मेरी एक शर्त है। शर्त है कि तू अपने बाप का काला मुंह करके, उसे सात जूते मारेगा। अपनी मां की बात सुन लड़का, हैरान होते हुए बोला पर क्यों? तब जाटनी अपने बेटे के आगे पूरी बात खोल देती है, कि कैसे घमंड में चूर उसके राजकुमार पिता ने, अपनी बात पूरी करने के लिए ,
उसे धोखे से बीच विवाह ही छोड़ दिया था। और कैसे तब वह उसके पिता का घमंड तोड़ने के लिए, गुजरी का वेश धारण कर, उससे फिर से मिली। मां की पूरी बात सुन लड़का सन्न रह गया। मुझे माफ कर देना मां। मैंने उस ब्राह्मणी की बात सुन। आपको गलत समझा। मैं आपसे वादा करता हूं कि, मैं आपके कहे वचनों को झूठा नहीं होने दूंगा। मैं अपने उस अहंकारी पिता का मुंह काला करके,
उसे सात नहीं बल्कि 14 जूते मारूंगा। सात आपके नाम के, और सात मेरे नाम के। अपनी मां से यह वायदा कर जाटनी का बेटा, अपने पिता के नगर की तरफ चल पड़ता है। दूसरी तरफ राजकुमार ने अपने पिता के निधन उपरांत, राज काज खुद संभाल लिया था। अब वह राजकुमार नहीं, बल्कि संपूर्ण राज्य का राजा था। जाटनी का लड़का जब अपने पिता के नगर में पहुंचा, तो उसे भी पता चल गया, कि उसका पिता ही अब वहां का राजा है।
लड़के ने अपने मन में दृढ़ निश्चय किया, कि बेशक उसका पिता राजा हो, पर वह अपना वादा पूरा कर, उसे सबक जरूर सिखाएगा। पूरे नगर को अच्छे से घूम फिर कर देखने के बाद, जाटनी का लड़का नगर की एक बूढ़ी मालिन के घर ठहर जाता है। मालिन ने पहले तो उसे टरकाना चाहा पर जब लड़के ने उसे, एक सोने का टका दिया तो उसने खुशी-खुशी उसे अपने यहां ठहरा लिया।
आगे की कहानी का इंतजार करें, जल्दी ही प्रस्तुत करेंगे आपके सामने, धन्यवाद



