प्रेमानंद महाराज की किशोरी जी की लीला – Hindi Kahani

🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 03:

                                  भाग 03 

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किशोरी जी अपनी सखियों के साथ चल रही है,

फिर अपनी सखियो के साथ किशोरी जी आई वृंदावन, महाराज जी तो अपनी झाड़ू लगाने मे मस्त थे, बाबा ने जैसे ही, सामने से किशोरी जी को आते देखा, ए बाबा, ये देख ले, मेरी बहू का वैसा ही नूपुर है, अब जल्दी से वो नूपुर दो।

बाबा ने कहा, मूझे दूर से दिखाई नही दे रहा, तनिक पास लेकर आओ, मै हाथ से स्पर्श कर लूं, ललिता बोली, बाबा तोह सरम नही आ रही, अपनी बहू को स्पर्श कराएं, बोले चरणो मे क्या दिक्कत है, ले आओ, किशोरी जी आगे बड गई।

फिर बाबा ने, किशोरी जी के चरणो को स्पर्श कर लिया, उनको पहचानने मे तनिक भी देर नही लगी, उन्होने पहले उनको दूसरे पैर मे नूपुर पहनाया, और श्री जी के चरणो मे लिपट गए, हे किशोरी जी, हे श्यामा जू, अब कृपा करो, मै सब जानता हूं, ना ये कोई बूढी मईया है।

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प्रेमानंद महाराज और किशोरी जी की लीला चित्र

और ना आप इनकी बहू हो, आप साक्षात्कार किशोरी जी हो, और ये ललिता विशाखा जी है, अब मुझपर कृपा करो, फिर किशोरी जी ने अपने उसी नूपुर से, महात्मा के माथे पर एक चिन्ह बना दिया, और बोली बाबा, अब जीवन भर ये छाप, आपके मस्तिष्क पर रहेगी।

उन महात्मा को गौर से देखेंगे, तो हल्की किशोरी जी के, नूपुर की छाप दिखाई देती है, इसके बाद बाबा ने, किशोरी जी को आखिरी बार निहारा, और इसके बाद किशोरी जी, अपने निकुंज को चली गई, जब बाबा लौटकर अपने आश्रम को आए।

उनके गुरूदेव ने उनके माथे पर चिन्ह देखा, तो तुरंत बोले, ये तुमने अपने गुरू का दिया चिन्ह बदल दिया, हमने जो तिलक दिया, वो क्यो नही लगाते, ये क्या लगाए हो, बाबा ने हाथ जोडकर कहा, गुरूदेव ये कोई साधारण चिन्ह नही है, ये तो हमारी किशोरी जी ने कृपा करके।

गुरुदेव कुछ बोल रहे है,

अपने नूपुर का चिन्ह दे दिया है, हा तू बहुत बडा भक्त है ना, जो किशोरी जी तुझे आकर दर्शन देंगी, वहा उनकी बात, कोई मान ही नही रहा था, बोले जाओ इसे मिटाकर आओ, और मैने जो चिन्ह दिया है, वो लगाकर आओ, बाबा के हाथ कांप रहे थे, की मै इसको कैसे मिटाऊं।

लेकिन गुरू की आग्या सर्वो प्रथम, बाबा तुरंत गए यमुना जी, लेकिन सुबह से साम हो गई, वह चिन्ह मिटा नही, साम को जब लौटकर बाबा आए, तो गुरुदेव फिर बोले, मैने तुम्हे टोका था ना, ये चिन्ह मिटाकर आओ, तुम अभी भी नही मिटा रहे हो, गुरुदेव मैने प्रयास बहुत किया। 

लेकिन ये मिट नही रहा है, तब भी उनके गुरूदेव माने नही, अब गुरूदेव को क्रोध आने लगा, की हमारे द्वारा दिया चिन्ह, अस्वीकार करके, ये अपने मन का चिन्ह लगाए घूम रहा है, गुरूदेव ने अपने आश्रम के सभी लोगो को बैठाया, और बोले इसे यहा से निकालो।

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प्रेमानंद महाराज जी चिन्ह को मिटा रहे है,

जब हममे श्रध्दा नही, हमारे स्वरूप मे श्रध्दा नही, हमारे तिलक मे श्रध्दा नही, तो क्यो रहता है यहा पर, भावुक होकर बाबा जी बोले, मै सत्य बोल रहा हूं, ये चिन्ह किशोरी जी ने दिया है, मैने खूब प्रयास किया, नही आप भी देख लो, ये नही मिट रहा है, अच्छा अब हमसे, अपनी सेवा करने को बोल रहे हो।

किसी ने बाबा की बात पर विश्वास नही किया, तभी बाबा ने आंखे बंद कर, किशोरी जी को याद किया, की हे श्यामा जू, मै ये प्रमाण नही कराना चाहता, की आप मुझे मिली हो, लेकिन मेरे गुरु के चित्त पर, मेरे प्रति, अविश्वास आ रहा है, इसके लिए आप कोई लीला करो।

इसके आगे की कहानी का इंतजार करना, जल्दी की आएगी, और इसके पहले के दो भाग देखना है, तो यहा Click here 

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