भगवान शिव का चिंतन और रावण के अंत का संकल्प —
अढ़य्या ब्राह्मण की मजेदार कहानी - click here
रामायण का यह अनसुना अध्याय, जिसे सुनकर रोमांच से रोंगटे खडे हो जाएंगे, स्वयं महादेव ने कैसे अपने ही भक्त, रावण के अंत का संकल्प लिया, इस रहस्य से पर्दा अब उठने वाला है, पृथ्वी पर प्रकट होने वाला यह तेज, कोई साधारण जन्म नही था, बल्कि सूर्य देव के समान दमकता ग्यारहवां रुद्र था, तो जुडे रहिए, क्योकि यह कथा बताएगी, कि कैसे भगवान का प्रिय भक्त ही, अपने विनाश का कारण बन जाता है।
कहानी की शुरुआत कैलाश पर्वत से होती है, जहा महादेव बडे चिंतित बैठे थे, उसी समय माता पार्वती का आना हुआ, स्वामी आप चिंतित नजर आ रहे है, देवी मेरा सबसे बडा भक्त हैं रावण, जो भक्ति तो मेरी बहुत करता है, लेकिन उसकी दुष्टता पर, मेरा तो मन यही कर रहा है, की मै अपना तीसरा नेत्र खोलूं, और ये जल कर भस्म हो जाए, स्वामी अपने भक्त पर इतना क्रोध, हां देवी यही विचार मुझे चिंतित कर रहा है,
एक गुरु तो हमेशा यही चाहता है, वो अपने शिष्य को दंड तो दे, लेकिन मृत्यु दंड ना दे, लेकिन ये काम ऐसे कर रहा है, और ऐसी ही आगे भी करता रहेगा, तो इसे स्वाभाविक मृत्यु दंड ही मिलना चाहिए, और मै देवी यह चाहता हूं, की इसे मृत्यु दंड मेरे ही द्वारा मिलना चाहिए, क्योंकि यह मेरे इष्ट, राम को ही परेशान करेगा, तो स्वामी इस विषय मे तो आपने पहले ही सोच लिया होगा, हा देवी मैने सोच लिया है, अब मै अपना ग्यारहवां रूप, श्री हनुमान के रूप मे जाऊंगा, यहा से मेरा एक पंथ दो कार्य हो जाएंगे,
मै रावण की मृत्यु का कारण बनूंगा, और अपने इष्ट राम की, भक्ति भी कर लूंगा, और उनसे प्रेम भी करूंगा, अब रिषियो की बैठक बुलाई गई, जिसमे महादेव ने कहा, की आप लोग मुझे बताएं, मै चाहता हूं की मेरा ही तत्व पृथ्वी पर जाए, और मैं ही श्री राम की सहायता करू, जब वह रावण का वध करें, तब रिषियो ने कहा, महाराज इस पृथ्वी की धराधाम पर, आपके तेज को, धारण करने की शक्ति किसी स्त्री मे नही है,
सभी ने बहुत देर तक विचार विमर्श किया, तब उनको पता चला, की ब्रह्मा लोक की एक अप्सरा है, जिसका नाम था कुंजस्थला, एक बार उन्होने, एक रिषी का उपहास किया था, उस उपहास के कारण, उन रिषी ने उसे श्राप दे दिया, की तुम बानरी हो जाओ, तुम्हे संतो पर बहुत हंसी आ रही है, लेकिन एक बात और आपको बता दे, बडे लोगो का श्राप वरदान के समान होता है,
और आगे चलकर कुंजसथला, माता अंजनी के रूप मे पृथ्वी पर प्रकट हुई, और उनका विवाह बानर राज केशरी जी के साथ हुआ था, यहा एक और बात सामने आती है, केशरी जी को भी श्राप लगा हुआ था, की आपको कोई संतान नही होगी, माता अंजनी, नित्य अराधना करती थी, महादेव जी का, रिषीयो ने उन्ही को चुना, बोले यही है, जो महादेव के तेज को, महादेव के बल को, महादेव के आत्म तत्व को, अपने भीतर सह सकती है, इनका जो तप है वो अद्भुत है, माता अंजनी का विवाह तो हुआ था, लेकिन विवाह के उपरांत भी वह ब्रह्मचारिणी थी ,
