संत महात्मा से अढ़य्या की पहली मुलाकात...
🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 01:
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यह कहानी सुनने मे बहुत मजा आने वाला है, जिसमें जीवन की सरलता और भगवान की कृपा, दोनो को देखने मे बहुत आनंद आएगा, तो चलिए शुरू करते है, एक करीब दस साल का ब्राह्मण था,
जो नदी किनारे चिंतित बैठा था, उसकी चिंता का मुख्य कारण था, अढाई किलो का खाना, वह सब करने के लिए तैयार हो जाता था, लेकिन उसे पेट भर खाना चाहिए होता था, ऐसे ही एक दिन वह जंगल से गुजर रहा था,
संयोग वस उसी समय एक संत महात्मा, उसी रास्ते से गुजर रहे थे, वह ब्राह्मण एक स्थान पर निराश बैठा था, महात्मा की जैसे ही नजर पडी, तो कहने लगे, की बेटा तुम बडे चिंतित नजर आ रहे हो, क्या बात है मुझे बताओ,
बाबा जी मेरे माता पिता नही है, मै नदी किनारे अकेला रहता हूं, तो फिर मेरे आश्रम चल ना, मुझे भी तेरे साथ रहने मे आनंद होगा, बाबा जी मै आपके साथ तो चलूं, लेकिन मेरा शरीर देख लो बाबा जी,
मतलब क्या कहना चाहता है तू, और तेरा नाम क्या है, बाबा जी, मेरा नाम अढईया है, अढईया ये कैसा नाम है, ऐसा नाम इस प्रदेश मे तो नही पाया जाता है, इसमे प्रदेश से मतलब नही है बाबा जी,
मै इस उम्र मे ढाई किलो की भाटी अकेले खाता हूं, इसके अलावा दाल, चावल, साक, सब्जी, मिठाई, ये सभी अलग से खाता हूं, इसी कारण लोग मुझे अढईया कहते है, अरे बच्चा, मेरे यहा कोठार भरे है,
तुझे जितना खाना हो उतना खाना, तुम्हे कोई मना नही करेगा, और मुझे तुम्हारा अढईया नाम भी पसंद आया, अब चलो आश्रम चलते है, इसके बाद महात्मा जी और अढईया, दोनो आश्रम की ओर प्रस्थान किया,
जाते जाते भी अढईया बोल रहा था, आप जितना काम कहोगे मै उतना करूंगा बाबा जी, लेकिन ढाई किलो भी भाटी तो चाहिए ही मुझे, फिर खुराकी बड़े तो कुछ कह नही सकता, अरे भाई तुझे जितना खाना हो, तू उतना खाना,
क्यो व्यर्थ मे परेशान हो रहा है, ये रहा हमारा आश्रम, यहा तुम आराम से रहना, और पेट भरके खाना, लेकिन एक बात सुनो, हमारे आश्रम का एक नियम है, एकादशी के दिन उपवास होता है,
मतलब बाबा जी, इस उपवास मे क्या करना होता है, उस दिन आश्रम मे चूल्हा नही जलेगा, उस दिन भूखा ही रहना होता है, वह महिने मे कितनी बार आती है, महिने मे दो बार आती है, एक पूर्णिमा की एकादशी,
और एक अमावस्या की एकादशी, तो दो दिन भूखा रहना पड़ेगा मुझे, हां वो तो रहना पड़ेगा, ना बाबा जी ये मुझसे नही होगा, मै तो जा रहा हूं, इतना कह वह जाने लगा, पर क्यो बच्चे, बाबा जी एकादशी का उपवास करना पड़े,
ये मुझे पसंद नही है, अरे पंद्रह दिन मे आती है, फल पेट भरके खा लेना, दूध ज्यादा पी लेना, नही बाबा जी भाटी तो चाहिए ही, वो भी पूरा ढाई किलो, पर आश्रम का नियम है, वो जो भी हो,
जंगल में अढ़ईया और भगवान श्रीराम की पहली दिव्य भेंट...
🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 02:
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या तो नियम सुधारो नही मुझे जाने दो, कुछ देर महात्मा ने विचार किया, और फिर बोले, ठीक है तुम खाना, लेकिन आश्रम मे चूल्हा नही जलेगा, मुझे बचपन से गरीबी ने बहुत कलाईयां सिखा दी है, मुझे रसोई बनाना आता है,
तो ठीक है, आश्रम से आटा चावल और सब्जी लेकर, दूर जंगल मे जाकर पा लेना, वैसे तू एकादशी करता, तो मुझे और आनंद होता, लेकिन तू समझता नही है, पर ठीक है, आश्रम मे रसोई मत बनाना,
हां मै आश्रम मे नही बनाऊंगा, आप रसोई की समाग्री दे देना, मै जंगल मे पा लूंगा, तब दोनो लोग आश्रम मे आए, तभी अगले दिन एकादशी का दिन था, गुरुदेव बोले कल एकादशी है, हां बाबा जी आप मुझे रसोई का समान देना,
मै बाहर जाके खाऊंगा, आप यह एकादशी का व्रत करना, पर बेटा अभी भी कह रहा हूं, आश्रम के नियम का उल्लंघन मत कर, बाबाजी तो फिर आप मुझे जाने दो, गुरुदेव ने कहा जैसी तुम्हारी इच्छा,
अगले दिन गुरुदेव ने अढईया को रसोई का सामान दिया, और अढईया सामान लेकर चलने लगा, तभी गुरुदेव ने पीछे से आवाज देकर कहा, ओर अढईया हमारे आश्रम मे यह नियम है,कि ठाकुर जी को भोग लगाकर,
भोजन पाया जाता है, तो तुम ठाकुर जी को भोग लगाना मत भूलना, ये ठाकुर जी कोन है, ठाकुर जी मतलब भगवान, ईश्वर होता है, मतलब भोग लगाने पर वह रूबरू आएंगे, तो ज्यादा सामग्री दो, अरे अढईय तुम मुर्ख हो,
तुम्हे कैसे समझाऊं भगवान नही आते , सिर्फ तुम्हे भावना प्रकट करनी है , कैसी भावना , जब रसोई तैयार हो जाए, तब थाली के सामने बैठकर दोनो हाथ जोडकर, ठाकुर जी को खाना खाने बुलाना,मेहरबानी करके इतना नियम पालन करना,
ठीक है कहके अढईय जाने लगा, और जंगल मे एक जगह रूककर, अच्छे से रसोई जमाई और खाना बनाने लगा, और खाना बनने के बाद अच्छे से थाली मे भोजन को रखा, और बैठकर अपने दोनो हाथो को जोडकर प्रार्थना करने लगा,
की गुरुदेव के ठाकुर आओ अब खाना खालो, इधर भगवान श्री राम महल मे बैठे हुए है, जैसे ही उसकी पुकार सुनी, उठकर चलने लगे, गुरुदेव के ठाकुर अब खाना खालो, भगवान श्री राम अढईय के पास आकर बैठ गए,
और भोजन गृहण करने लगे , अढईय ने आंखे खोली और बोला, की ओ भैया, आप कौन है, मैं गुरुजी का ठाकुर हूं, गुरु जी के ठाकुर बाबा जी तो कहते थे, ठाकुर जी नही आते और आप आए, बाबा जी ने मुझे ठगा है,
और आप भी ठाकुर जी, कुछ तो मर्यादा रखो, तुरंत दूसरे की बनाई रसोई पर टपक पडे, ठाकुर जी चुपचाप सारा खाना खत्म करके चले गये, इधर अढईय ने गुस्से मे सारी सामग्री इक्ट्ठा करके, बडबडाते हुए आश्रम की ओर चलने लगा, आश्रम पहुचने पर गुरूदेव ने कहा,
तूने एकादशी नही की, मुझे अच्छा नही लगा, अढईय गुस्से मे देख रहा था, तुमने खाना खाया, क्या खाऊं, बाबा जी का ठुल्लू, यह आपके ठाकुरजी मान मर्यादा या विवेक समझते है, या समझ ही नहीं आता,
🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 03:
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एक तो एकादशी नही की, और ठाकुर जी को क्यो अपवाद कह रहा है, तो क्या करूं, आपके कहे अनुसार, मैने हाथ जोड के बुलाया, गुरुदेव के ठाकुर जी पधारो, तो उसने कुछ नही आकर सीधा खाने लगा,
मेरी बात पूरी हो, उससे पहले सब निपटा गया, भुक्कड कही का, भगवान थोडी ना तेरे पास आएंगे, एक तो खाना भी खा लिया, और झूठ भी बोल रहा है, मै झूठ नही बोलता बाबा जी,
ऐसी ही समय बीता, जब इसी प्रकार अगली एकादशी को गुरुदेव ने कहा, कल एकादशी है, हां बाबा जी, मैने कैलेंडर देख लिया है, कल मै ढाई किलो आटा नही लूंगा, पांच किलो लूंगा, क्योकि आपका ठाकुर आता है,
ढाई किलो का खाना उनका, और ढाई किलो का मेरा, तुझे जितना लेना हो उतना ले जाना, गुरुदेव ने सोचा या तो खुराक बढा होगा, या मित्र होंगे, ठाकुर जी को अपवाद क्यो कर रहा है, अढईया ने सामग्री लिया,
और जंगल की ओर चल दिया, जंगल मे रसोई जमाकर भोजन बनाया, और अच्छे से थाली मे रखकर, अपने दोनो हाथो को जोडकर बोला, की गुरुदेव के ठाकुर आप खाना खा लो, यहा राम जी सुनकर चलने लगे,
तभी माता जानकी जी बोली, अकेले-अकेले कहा जा रहे हो स्वामी, मेरा एक भक्त मुझे भोजन के लिए बुला रहा है, तो फिर मुझे भी साथ ले चलिए, पर जानकी वहा पर दो लोगो के लिए भोजन की व्यवस्था नही है,
कोई बात नही, जितना भी होगा, हम आधा आधा बांट लेंगे, चलो लेकिन ध्यान रहे, वो लडका कुछ भी बोले, उनकी तरफ ध्यान मत देना, गुरुदेव के ठाकुर अब खाना खा लो, राम जी माता जानकी के साथ आकर बैठ गए,
ठाकुर यह बहन कौन है, वो मुझे बहन कहता है, जानकी चुप रहो, पहले भोजन पा लो, ठाकुर यह है कौन, ये मेरी पत्नी है, तो आप शादीशुदा है, पहले बोला होता, अकल है कि नही, राम जी माता जानकी से बोले खाओ खाओ,
अढईया इसी तरह बडबडाता रहा, और राम जी और माता जानकी, भोजन करते रहे, और भोजन करके चले गए, अढईया सामग्री को लिया, और गुस्से मे आश्रम की ओर चल दिया, और जाकर गुस्से मे बोला,
एकादशी की ऐसी की तैसी, आज क्या हुआ, मुझे ज्यादा बुलाओ नही, इसका परिणाम अच्छा नही होगा, पर हुआ क्या, आपको मुझे बताना तो चाहिए, ठाकुर तो आया था, लेकिन वो शादीशुदा है,
शादीशुदा है, मतलब, दोनो पति पत्नी आए थे, निर्लज्ज और चुपचाप हंसते थे, मै इतना गुस्सा करूं, और उनको कोई लेना देना ही नही, दोनो खा के चले गए, वो बहन अपने घर मे रसोई नही बनाती होगी क्या,
बकवास कर रहा है, तुझे क्या हो रहा है, ठाकुर तेरे पास थोडी ना आएंगे, फिर वहा किसी तरह सब ठीक हुआ, अगली एकादशी के दिन अढईया ने कहा, आज मै पांच किलो आटा नही लूंगा, साढ़े सात किलो आटा लूंगा,
दो लोग वो और एक मै, तुझे जितना ले जाना हो, उतना राशन ले जाना, मै कब मना कर रहा हूं, पर तू झूठा नाटक मत कर, नाटक नही कर रहा गुरुजी, मै झूठ बोलता ही नही हूं, आप ही खेल खेलते हो,
दो एकादशी से भूखा मार डाला मुझे, अढईय ने आश्रम से राशन लिया, और जंगल मे जाकर रसोई जमाने लगा, और प्रेम पूर्वक भोजन तैयार किया,
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भोजन तैयार हो जाने के बाद, उसने अच्छे से थाली मे सजाया, और अपने दोनो हाथो को जोडकर प्रार्थना करने लगा, गुरुदेव के ठाकुर अब खाना खा लो, इधर महल मे भगवान राम और माता जानकी जी, चलने को तैयार होने लगे,
तभी लक्ष्मण जी ने कहा, आप दोनो अकेले-अकेले कहां जा रहे है, श्री राम जी बोले कहीं नही, एक लडके के यहा भंडारे मे जा रहे है, मैने रात दिन आपकी सेवा की है, और भंडारा खाने अकेले जाओगे,
लक्ष्मण तेरा स्वभाव बहुत गर्म है, और वो लडका कुछ भी बोले, पर तुम उसे कुछ भी नही बोलोगे, नहीं बोलूंगा भईया , अब तीनो राम लक्ष्मण और माता जानकी चलने लगे, और जंगल मे जाकर अढईय के सामने बैठ गए,
गुरुदेव के ठाकुर अब खाना खा लो, जब अढईय ने आंखे खोली और बोला, की ओ भैया, यह दूसरा भैया कौन है, वो मेरा छोटा भाई है, आप मुझे बताएंगे कि आपके घर मे संख्या कितनी है, मुझे राशन का तो पता चले,
तभी लक्ष्मण जी बोले, भैया ये इतना गुस्सा कर रहा है, लक्ष्मण चुप रहो, भोजन मे ध्यान दो, और तीनो ने चुपचाप होकर प्रेम पूर्वक खाना खा रहे है, और खाना खाकर चले गए, अढईय गुस्से मे बडबडाता रहा,
तीनो के चले जाने के बाद, उसने अपनी सामग्री को लिया, और गुस्से मे बडबडाते हुए, आश्रम की ओर चलने लगा, आश्रम पहुंचने पर गुरुदेव ने कहा, आज तो ठीक से खाना खाया ना, मुझे गुस्सा मत दिलाओ बाबा जी,
आज मेरा दिमाग बहुत खराब है, और वह आश्रम के अंदर चला गया, पता नही इस बच्चे की क्या समस्या है, अगली एकादशी मे अढईय ने कहा, आज मैं दस किलो आटा लूंगा, दस नहीं बीस किलो राशन ले जा,
लेकिन तू झूठ बोल के ठाकुर को अपवाद मत कर, आप मेरी बात कभी नही मानोगे, मै झूठ नही बोलता, और अढईय ने सामग्री को लेकर चलने लगा, और जंगल मे जाकर भोजन तैयार किया,
और थाली मे लगाकर, आंखे बंद करके प्रार्थना करने लगा, गुरुदेव के ठाकुर अब खाना खा लो, इधर जब श्री राम लक्ष्मण और माता जानकी चलने लगे, तभी हनुमान जी बोले आज मै भी आपके साथ आऊंगा प्रभु,
चलो हनुमान वहा कुछ बोलना नही, चुपचाप भोजन पा लेना, ठीक है प्रभु, और सभी लोग चलने लगे, जंगल मे आकर के अढईय के सामने बैठ गए, गुरुदेव के ठाकुर अब खाना खा लो,
अढईय ने आंखें खोली, और बोला ठाकुर ये दूसरे भैया कौन है, वो मेरा सेवक है, खा लो खा लो भीखमंगो खा लो, अढईय बडबडाता रहा, हनुमान जी बोले प्रभु, यह कैसी बात कर रहा है,
राम जी ने कहा चुपचाप खाने पर ध्यान दो, और सभी ने खाना खाया और चले गए, इधर सभी के जाने के बाद, अढईय ने गुस्से मे, अपनी सारी सामग्री को एकत्रित किया, और आश्रम की ओर चलने लगा,
अगली एकादशी मे गुरुदेव ने कहा, कल एकादशी है बालक, हां मैंने कैलेंडर पहले ही देख लिया, आज मै साढ़े बारह किलो आटा ले जाऊंगा, कुछ भी हो जाए, आज उन लोगो को छोडूंगा नही, अढईय ने सामग्री लिया और जंगल मे चला गया,
( अगला भाग का इंतजार करें )



