धन्ना जाट की एक अनसुनी कहानी | भक्ति कथा | hindi story

एक बालक भक्ति का बीज...


"गांव के साधारण घर के बाहर गुरुदेव एक छोटे बालक को समझा रहे हैं, बालक रूआंसा होकर हाथ जोड़कर ठाकुर जी मांगने की जिद कर रहा है

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हमारी कहानी की शुरुआत, इस छोटे साधारण घर से होती है, जहा एक आठ साल का बालक था, जिसका नाम था धन्ना जाट, इनका स्वभाव बचपन से ही सरल था, ऐसे ही एक दिन, इनके यहा एक संत महात्मा पधारे। 


वह संत अपने साथ, हमेशा सालिग्राम को लिए रहते थे, संत महात्मा जो भी नियम धारण करते है, उसे वह सुचारू पूर्वक करते है, ऐसे ही जब अगले दिन का समय हुआ, तो महात्मा जी ने स्नान किया, और पवित्र वस्त्र को पहनकर।


वह अपनी पूजा मे बैठ गए, तभी वह धन्ना जी आकर, उनके पास बैठ गए, अब महात्मा जी अपने शालिग्राम को, दूध, दही, घी, पंचामृत, शहद, और जल से स्नान कराते थे, और इत्र आदि लगाकर, एक छोटी तुलसी की माला को पहनाकर, उन्हे पधरा कर बैठा दिया।


ये देख धन्ना जी को बडा आनंद आया, वो अंदर से बहुत खुश हो गए, अब तो उनका रोज का नियम बन गया, जैसी ही महाराज जी पूजा मे बैठते, तो वही पास ही धन्ना जी जाकर बैठ जाते, और उनकी सेवा देख अत्यंत प्रसन्न होते।


हर रोज अपनी मां से रात मे कहते, मां ये सुबह कब होगी, मईया बोली तुम्हे सुबह क्या करना है, मईया मै बाबा के पास जाऊंगा, और उनकी पूजा देखूंगा, मईया बोली, बेटा अभी सो जाओ, सुबह होने मे अभी समय है, धन्ना जी बिल्कुल महाराज के समय पर ही उठ जाते।


बाकी सभी घर के सोते रहते थे, और बैठकर उनकी पूजा का आनंद लेते, धीरे धीरे उनकी प्रीति बढने लगी, लेकिन जब एक दिन, महात्मा के जाने का समय हुआ, धन्ना जी बिखरने लगे, कहा जा रहे हो आप, बेटा हो गई सेवा हमारी, अब हम जा रहे है।


फिर आएंगे कुछ साल बाद, धन्ना जी बोले, आप चले जाओ, इन्हे यही छोड जाओ, ये ठाकुर जी यही रहे आएं, मै इनकी सेवा करूंगा, बेटा तुम छोटे बालक हो, तुमसे सेवा बनेगी नही, तुम जिद मत करो, धन्ना जी रोने लगे, नही मै सेवा करूंगा।


मुझे तो यही चाहिए, माता पिता परेशान, और महात्मा अलग परेशान, सोचे की क्या करे, वह इतना रोने लगे, की पूरे मोहल्ले वाले इकठ्ठा हो गए, बोले क्या हो गया, एक व्यक्ति बोला, महात्मा जी जा रहे है, धन्ना जी उनके ठाकुर जी मांग रहा है, 


अब वहा किसी मे हिम्मत भी नही, की महात्मा से कह दे की दे जाओ, इधर धन्ना का रोना बंद नही हो रहा है, महाराज जी सोचे क्या करे, बडी विडम्बना है, ठाकुर जी रक्षा करो, महात्मा जी ने कहा, रूको मै विचार करता हूं, इतना कह महात्मा जी बाहर गए।


महात्मा जी की चतुराई एक पत्थर दिया...


"गांव के साधारण घर के अंदर महात्मा जी अपने हाथ में काला अंडाकार शालिग्राम पत्थर लिए हुए हैं और खुशी से भरे छोटे बालक धन्ना जाट को दे रहे हैं,

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और एक गोल गोल, काला सा दिखने वाला पत्थर लिया, उसमे उन्होने जल्दी से घी लगाकर, ईत्र चंदन आदि लगाकर, और फिर अंदर जाकर, अपने ठाकुर जी को नीचे, एक छोटे से आसन मे 

विराजमान कर दिया।


और बडे सिंघासन मे वो पत्थर लाकर रख दिया, फिर धन्ना के पास आए, बोले देख तेरे ठाकुर जी आ गए, धन्ना जी जैसे अंदर गए, लेकिन धन्ना जी की दृष्टि तो, उन्ही के ठाकुर जी पर थी, हमे तो यही चाहिए, फिर महात्मा जी ने अपनी चतुराई दिखाई।


बोले बेटा देखो, ऊपर सिंघासन पर बडे ठाकुर जी बैठे है, और नीचे छोटे ठाकुर जी बैठे है, जो बडे वाले है, वह है राजा ठाकुर, और जो ये छोटे वाले है, ये है सिपाही ठाकुर, अब तुम बताओ, मुझे तो राजा ठाकुर जी अच्छे लग रहे है, मै तो उन्हे ले जाऊंगा।


लेकिन याद रखना, जब जब मै आऊंगा, तो मेरे ठाकुर जी ऊपर बैठेंगे, और तेरे वाले नीचे बैठेंगे, क्योकि तुम सिपाही ठाकुर जी मांग रहे हो, और मेरे ठाकुर जी राजा है, अब धन्ना जी छोटे बालक, जब महात्मा जी ने उस भाव से समझाया, तो बोले नही मै तो राजा ठाकुर लूंगा।


आप ले जाओ सिपाही ठाकुर जी को, फिर महात्मा जी ने, अपने निज ठाकुर जी को लिया, घर वालो ने भी कहा, जय हो महात्मा जी, बडी आपने बुद्धि युक्ति लगाई, सब को लगा, धन्ना का कंटक छूट गया, लेकिन यहा से तो भक्ति प्रारंभ हुई थी धन्ना जी की। 


सभी जानते थे वह एक सामान्य पत्थर है, उसे क्या पूजेगा, कुछ दिन बाद मान जायेगा, अब अगले दिन का समय हुआ, धन्ना की मईया खाना बना रही थी, धन्ना जी उनके पास गए, बोले मईया, ठाकुर जी के सेवा की समाग्री मगाओ ना।


मईया बोली दोपहर को मंगा दूंगी, धन्ना जी फिर दोपहर को याद दिलाने लगे, फिर मईया बोली, बेटा साम मे मंगा दूगी, धन्ना जी फिर साम मे कहने लगे, बेटा आज नही हो पाया, कल मंगा दूगी, ऐसे करते करते मईया रोज टाल देती।


ऐसे ही एक दिन धन्ना जी बैठ गए, ना खाना खाएं, ना पानी पिए, ना अपनी मईया से बोलते, मईया बोली, बेटा क्यो जिद कर रहे हो, नही मईया आप पूजा की समाग्री मंगाओ, पहले पूजा की समाग्री मंगाओ, रोज रोज सुनकर मईय भी क्रोध भाव से बोली।


तेरे ठाकुर जी, और तू इनका सेवक, समाग्री मै क्यो लाऊं, अपने आप कर व्यवस्था, धन्ना जी को बात दिल पर लग गई, उन्होने शालिग्राम को लिया, और चल पडे, और अपने बगीचे मे उन्हें रखा, फिर अच्छे अच्छे फूल तोड़े, 


और बैठकर माला बनाया। जब उनकी माला तैयार हुई, तो याद आया की तिलक लगाना है, उनके पास तो कुछ था नही, तभी पास ही एक फूटी हुई ईंट दिखाई दी, उसे लिया, और एक पत्थर में घिसने लगें।


फिर उसी के तिलक को श्री ठाकुर जी को लगाया। और फिर बैठकर उन्हें निहार रहे हैं, और वही खूब खुशी में नाचते, हर समय उन्हें अपने पास ही रखते, रात को सोते, तो उन्हें भी अपने सात सुलाते थे। उनके माता पिता यही सोचते।


की लोगों के बच्चे खिलौने से खेलते हैं, लेकिन हमारे धन्ना जी पत्थर को ही भगवान समझकर, दिनभर इसी से खेलते रहते हैं, अरे तुम परेशान ना हो, थोडा बडा हो जाएगा, तो समझने लगेगा, लेकिन किसी को क्या पता था, की धन्ना जी के हृदय में, भक्ति का ऐसा बीज बो दिया हैं।


जब मईया उसे खाना देती, तो उस थाली को वह लेकर, अपने कुटिया में चले जाते, उनके पास भोजन के लिए कुछ नहीं था, इसलिए वह खाने की थाली, पहले श्री ठाकुर जी को खिलाते, और फिर खुद भोजन ग्रहण करते।


ऐसे ही उन्हें भोजन की थाली रख देते, और एक पर्दा लगा देते, हाथ जोड़कर वहीं बैठकर सोचते, की भगवान खाना खा रहे हैं। 


थोडी देर मे पर्दा हटाकर देखते, थाली वैसे ही रखी थी, फिर बैठ जाते की भगवान खा रहे है। जब बहुत देर हो गई, तो धन्ना जी बोले, ठाकुर जी आप रोज भोजन अधूरा छोड देते हो। मै अगर भोजन अधूरा छोड़ देता हूं। तो मेरी मईया बहुत मारती है।


लेकिन महात्मा जी मुझे बताकर नही गए है, की वो मैं आपके साथ कर सकता हूं, की नही। इधर ठाकुर जी उनकी भक्ति भाव से रीझने लगे, ऐसे ही एक दिन धन्ना जी, हठ करके बैठ गए, की यदि आपने भोजन नही पाया, तो मै भी नहीं पाऊंगा। धन्ना जी थोडी देर बाद देखते, तो थाली यथावत रखी थी, तो धन्ना जी वही लेट गए। बोले ठीक है, आज मैं भी भूखा सोऊंगा, 


धन्ना की जिद और ठाकुर जी प्रकट...


साधारण घर के अंदर छोटा बालक हाथ जोड़कर हल्की मुस्कान के साथ बैठा है और सामने बाल रूप भगवान कृष्ण दाल, चावल, सब्ज़ी और रोटी से भरी थाली में भोजन कर रहे हैं,

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तभी थोडी देर में धन्ना जी को आवाज सुनाई दी, जैसे कोई खा रहा है, उसके खाने की आवाज आ रही है। जैसे ही धन्ना जी ने पर्दा हटाकर देखा, तो श्याम सुंदर छोटे बालक के रूप मे,


 प्रेम से भोजन कर रहे है। उनको देख धन्ना जी मोहित हो गए, की छोटे से प्यारे से प्रभु, सामने भोजन पा रहे है, प्रभु आप तो बडे प्यारे हो, आप स्वयं आ गए। 


ऐसे ही धीरे धीरे ठाकुर जी, धन्ना जी के सखा बनने लगे, अब कुछ समय बीता, तो धन्ना जी थोडे बडे हो गए। जब भी वह गईया चराने जाता, तो अपने शालिग्राम ठाकुर जी को, अपने साथ ले लेता, और रास्ते भर उनसे बात करता। 


जब वह जंगल के समीप जाता, देखता आस पास कोई नहीं हैं, तो अपने ठाकुर जी को रखता, और उनसे बोलता। की प्रभु यहा कोई नही! अब प्रकट हो जाओ, भक्त की पुकार ठाकुर जी प्रकट हो जाते।


और जो भी दोपहर का भोजन, धन्ना जी लेकर आता। तो पहले ठाकुर जी को खिलाता, और फिर स्वयं पाता, ऐसे ही एक दिन ठाकुर जी बोले।धन्ना तुम मेरी बहुत सेवा करते हो, मै चाहता हूं की मै भी तुम्हारी सेवा करूं! 


धन्ना जी बोले, भगवान ये उचित नही है, आप एक ईश्वर तत्व हो, आपकी हम सेवा करे अच्छा लगता है,पर आप हमारी सेवा क

रो, ये कहा की शोभा है,नही धन्ना हम सेवा करेंगे, 


तुम बताओ हमे क्या करना हैं, जब ठाकुर जी मान ही नही रहे थे, तो धन्ना जी बोले, फिर आप हमारी गईया चराओ, ठाकुर जी हल्की स्माइल के साथ बोले, ये तो हमारा जन्म जन्म का काम है। 


ये तो हम बडी निपुणता से करेंगे, अब तो ये स्थिति हो गई, की धन्ना जी हर रोज, जंगल मे गईया लेकर‌ जाता। और अपने शालिग्राम को बाहर रखता, तो ठाकुर जी प्रकट हो जाते, और फिर धन्ना की पूरी गईया ठाकुर जी चराते।


और धन्ना जी आराम से, घर आकर कुछ और कार्य करता, साम का समय होता, तो धन्ना जी फिर जाते, और ठाकुर जी को अपने साथ लेता, और गईया लेकर आ जाता, ये करते करते बहुत दिन बीत गए, 

 एक दिन वही महात्मा आए...

साधारण घर के अंदर महात्मा जी प्रवेश कर रहे हैं, सामने बालक हाथ जोड़कर बैठे हैं और पीछे दरवाजे पर गांव के कुछ लोग खड़े होकर यह दृश्य देख रहे हैं,

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कुछ समय बाद वहीं महात्मा आ गए, जो धन्ना जी को पत्थर देकर गए थे, जैसे ही घर में प्रवेश किया, तो धन्ना जी उस समय खाट में लेटे थे। बोले और बताओ धन्ना, सब ठीक ठाक है, अरे गुरूजी आप, जय हो प्रणाम गुरु जी, खुश रहो बेटा, और बताओ, वो कहा है तुम्हारे राजा भगवान।


गुरूदेव, भगवान तो गईया चराने गए है अभी, ये समय गईया चराने का है ना, तो वह रोज चराने जाते हैं। महात्मा हस कर बोले, कुछ भी बोलता रहता है, ये बालक ही है, अभी छोटा ही है, पास उसके माता पिता खडे थे, बोले पता नही क्या सोच है इसकी।


रोज गईयो को कही छोड आता है. पता नही कहा, और साम को ले आता है, अरे गुरूजी ये लोग मानते ही नही है, तभी गुरूदेव बोले, वो शिला कहा है, जो हमने तुमको दी थी, उन्ही की तो कह रहा हूं, वो गईया चराने गए है।


गुरूदेव सोचे, ये क्या क्या बोल रहा है, गुरूजी आप बैठो, मै एक एक बात आपको बताता हूं, फिर वह गुरूदेव को, सभी बात बताने लगा। की कैसे मेरे साथ रहते है, कैसे खाना खाते है, और कैसे साथ मे सोते है।


और कैसे उसकी पीठ मे बैठकर घूमते है, जब उसकी सभी बाते गुरुदेव ने सुनी, तो मन मे विचार किया।


की इतनी बडी बडी बाते, झूठ मे तो नही बोल सकता, बोला गुरुजी मुझे पता है, माता पिता की तरह, आप भी मुझपर भरोसा नही कर रहे हो। आप मेरे साथ चलो, मैं आपको दिखाता हूं। 


तभी गुरूदेव बोले ठीक है चलो, फिर दोनो वन में गए, तब वहा देखा, सभी गईया आराम से चर रही थी। क्यों, कहा है तेरे ठाकुर जी, अरे देखो वो धौरी गईया के पास में है, उसके पीछे पीछे चल रहे है, गुरुजी बोले, हमे तो नही दिख रहे है, 


धन्ना जी दौडकर ठाकुर जी के पास गए, और बोले, भगवान मेरे गुरुदेव आए है। उनको दिख जाओ, भगवान बोले हम तुम्हारे सखा है, तुमको बस दिखेंगे, सबको थोडी दिखेंगे, 


अरे भईया ऐसो मत करो, भगवान बोले क्यों, आपको और हमे मिलवाने वाले गुरूजी ही है, गुरूजी नही देकर जाते, तो आप मुझे कैसे मिलते, ठाकुर जी मंद मंद मुस्काने लगे, और पुनह धन्ना जी को गले लगाया, 


बाल रूप कृष्ण को देखा..


"हरी-भरी वनपथ पर खड़े बाल रूप भगवान कृष्ण, नीली दिव्य आभा वाली त्वचा, सिर पर केसरिया पगड़ी और मोरपंख, गले में मोतियों व फूलों की माला और पीली धोती पहने, मुस्कुराते हुए, illustration art शैली में।"

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इसके बाद नील मणी नील माधव प्रकट हो गए, वो जैसे ही‌ प्रकट हो गए, दूर खडे गुरूजी का रोम रोम बिलखने लगा, वह रोने लगे, तुरंत आकर धन्ना के चरणो को प्रणाम किया, बोले हम सच्चे शालिग्राम से प्रकट नही कर पाए, 


तूने सामान्य पत्थर से प्रकट कर दिया, हम अष्ट याम से प्रकट नही कर पाए, तूने ईंट को घिस घिस कर, उन्हें तिलक लगाकर प्रकट कर दिया, हम ठाकुर जी से प्रार्थना करते रहते है, की त्रिभंग लली से, सीधे लली भी बन जाओ,


आप पूरे दिन ऐसे ही खडे रहते हो, हाथो मे दर्द हो जाता होगा, और तू यहा ठाकुर जी से गईया चरा रहा है, धन्य है धन्ना तेरी भक्ति, ये ठाकुर जी की सरल भक्ति का प्रमाण है, की ठाकुर जी को ऐसे भाव प्रीय लगते है, आप नियम कितने करते हो, 


आप साधना कितने करते हो,, कितने वृत करते हो, ये सभी बाते विषेश नही है, आप ठाकुर जी से सामने, कुछ क्षण जो व्यतीत करते हो, वो किस भाव से करते हो,


वह बहुत महात्व पूर्ण है, इतना सत्संग करने के बाद, और इतना ग्यान होने के बाद भी, अगर आप सरल नही बन पाए, तो वह क्या भक्ति है आपकी, कभी ठाकुर जी को, मन और हृदय से अभास करिए, वो क्या चाहते है, 


हमारी कहानी यही समाप्त होती है, अगर आपको ठाकुर जी की लीला पसंद आई हो, तो आपसे एक ही अभिलाषा है, की इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाए, आप सभी को जय श्री राधे कृष्णा, धन्यवाद। 


इस बेवसाइट मे भगवान और कुछ अनसुनी कहानी हर रोज पोस्ट की जाती है, अगर भगवानी लीलाओ को पढ़ना पसंद करते है, तो हमे फोलो जरूर करो, आपको हर दिन नया सीखने को मिलेगा, धन्यवाद 🙏 


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