"राम जी की‌ एक अनसुनी कहानी" Part 1

🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 01:

श्री राम का अयोध्या आना...

जिसमें भगवान श्री राम माता सीता को आलिंगन कर रहे हैं, उनके साथ लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और भक्त हनुमान सहित अन्य वानर खड़े हैं, पृष्ठभूमि में अयोध्या का भव्य दृश्य दिखाई दे रहा है।"

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यह भगवान श्री राम के, अयोध्या वापस आने के बाद, एक मजेदार कथा है, जिसे आप पूरा सुने वगैर रह नही पाओगे, इसमे बहुत मजा आने वाला है, तो चलिए अब शुरू करते है, जब राम जी रावण का वध करके वापस आए, 

तो अयोध्या मे खूब जश्न मनाया गया था, तभी राजा जनक जी ने एक पत्र लिखा, हे प्रभु श्री राम जी, चौदह वर्ष बाद आप वन से आए हो, आप मे तो जनकपुर के प्राण है ही, परंतु हमारी जो लाली है, वह तो हमारी प्राण है, समस्त जनकपुर वासी आप दोनो युगलो को, 

कुछ दिन के लिए जनकपुर बुला रहे है, कि आप कुछ दिन यहा आराम करने आओ, और हां, आप अकेले नही आना, आप अपने तीनो भईयाओ को, और तीनो लाली को, और अपनी समस्त सेना, हनुमान जामवंत सभी को लेकर आओ...

हमे कुछ दिन सेवा करने का अवसर प्रदान करें, इतना लिखा, फिर अपने एक दूत से अयोध्या पहुचाया, उस समय श्री राम जी सभा मे बैठे थे, जैसे ही राजा जनक का पत्र आया, श्री राम जी बोले, प्रीय हनुमान, इस पत्र को पढकर सुनाओ...

क्या लिखकर भेजा है, हमारे ससुर जी ने, फिर हनुमान जी ने पत्र पढ़कर सुनाया, हे प्रभु श्री राम, आपको और पूरी सेना को, और तीनो मईया को, और तीनो भईयाओ को, महाराज जनक जी अपने यहा बुला रहे है, बोले आकर कुछ दिन आराम करो यहा...

ये सुनकर सभी बन्दर उछलने लगे, सभी आपस में बाते करने लगे, जय हो राजा जनक की, अब हम सब जाएंगे, बढिया आराम करेंगे, और खूब अपने शरीर की सेवा कराएंगे, बहुत युद्ध करके आए है, रावण की सेना से, बढिया माल पुआ खाने को मिलेगा...

राम जी की बरात मे तो हम नही जा पाए, लेकिन बरात की चर्चा हमने सुनी थी, सारे बानर बहुत खुश हो गए, बानरो की उत्सुकता देखकर राम जी बोले, शांत हो जाओ सभी, अब हमारा निर्णय यह है, की जनकपुर हमारी ससुराल है...

और कही भी नाक कट जाए चलता है, लेकिन ससुराल मे नाक ऊंची रहनी चाहिए, इन सभी बातो को ध्यान मे रखते हुए...हमने सोचा है, की हम जाएंगे, भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न सभी जाएंगे, चारो बहुएं जाएंगी, कुछ वरिष्ठ लोग जैसे...

जामवंत जी, हनुमान जी, और अंगद जी जाएंगे, बाकी सभी बानरो से निवेदन है, की आप सभी यही सरयू नदी के तट पर रहो, यही खेलो, आप लोग नही चलो, ये सुन वानर सभी उदास हो गए, बोले क्यो हम क्यो नही चले, आप लोगो का स्वभाव ऐसा ही है...

किसी से भी छीनकर खा जाते हो, कही पर भी मल मूत्र त्याग देते हो, कही भी उछल कूद करते हो, डाले तोड देते हो, वन उजाड देते हो, जनकपुर हमारी ससुराल है, अगर हमारे सामने किसी ने कह दिया, की देखो वो वन वानरो ने उजाड दिया...

बोलेंगे वानर किसके है, सभी कहेंगे राम जी के, हमे तो फिर बहुत बुरा लगेगा, लेकिन आप लोगो का यही स्वाभाव है, और यहा अयोध्या मे कितना भी करो, यहा तो अपने ही लोग है...

सुधार भी देंगे, वो ससुराल है, वहा संकोच हो जाएगा, बानर सभी नीचे मुह करके बैठ गए, राम जी तो अपनी घोषणा करके चले गए...

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