श्री राम अभिषेक के दिन...
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ये कहानी है जब राम जी का, राज्य अभिषेक हो रहा था, पूरे अयोध्या मे भव्य तैयारीयां हुई, और पूरे महल को फूलो से सजाया गया था, अभिषेक के दिन, बहुत संत महात्मा आए थे, इधर राम जी अपने तीनो भाईयो को काम बता दिया था,
भरत जी से कहा, सभा मे जितने भी लोग आए, सभी को आदर पूर्वक आसन देना है, शत्रुघ्न जी से कहा गया, सभी अतिथियो के चरणो को धोना है, और लक्ष्मण जी से कहा, की सभी को माला पहनाकर, और तिलक करके दक्षिणा देना है,
ये तीनो काम तीनो भाईयो को बांट दिया, तभी वहा पधारे भृगु रिषी, भयंकर क्रोधी स्वभाव के, जब वह महल मे प्रवेश किए, तो पहले भरत जी ने उनको आसन दिया, प्रभु यहा पधारिए, यहा से राम जी के, राज्य अभिषेक का दर्शन करिएगा,
रिषिवर ने आसन ग्रहण किया, और इतने मे आए श्री नारद मुनि, भरत जी ने उन्हे भी बगल से आसन दिया, सभी के चरणो को शत्रुघ्न जी ने धोया, इसके बाद, लक्ष्मण जी पाए गए सेवा अनुसार, सभी को तिलक कर रहे थे,
सभी को माला पहना रहे थे, और दक्षिणा दे रहे थे, ऐसा करते हुए वह, जैसे भृगु रिषी के पास आए, तो भृगु रिषी ध्यानस्थ होकर बैठे थे, लक्ष्मण जी ने जैसे ही देखा, तो सोच मे पड गए, की तिलक करूं या नही, भृगु महात्मा है ये तो,
भगवान की छाती पर लात मार देते है, इनका क्रोध तो बहुत विशाल है, बगल मे बैठे नारद मुनि से पूछा, मुनिवर तिलक करूं की नही, नारद जी तुरंत बोले बिल्कुल नही, तुमको तो मारेंगे ही, हमको और ध्वस्त कर देंगे, मुनिवर फिर क्या करूं,
बोले सबका तिलक कर दो, इनको रहने दो, मुनिवर कैसी बात कर रहे हो, मुझे रहना है अयोध्या मे, अरे भाई मेरे कहने का मतलब, आप अभी सभी का तिलक करो, इनका जैसे ही ध्यान खुलेगा, तो मै तुमको इशारा कर दूंगा,
तो इनका भी आकर तिलक कर देना, मुनिवर देख लेना, आपकी जिम्मेदारी पर छोडकर जा रहा हूं, हां परेशान मत हो, मै सब सम्भाल लूंगा, इसके बाद लक्ष्मण जी सभी का तिलक करते हुए, आगे निकल गए, जैसे ही थोडे दूर पहुचे,
तो नारद जी ने महात्मा के, जोर से कोहनी मारी, बोले उठो सब जगह ध्यान लगाते रहते हो, भृगु जी का जैसे ही ध्यान खुला, बोले क्या बात है, क्यो परेशान कर रहे हो, महात्मा मै आपको परेशान नही कर रहा हूं, मै तो आपको बता रहा हूं,
की आपकी कितनी गरिमा है, कितनी वैल्यू है यहा, रिषीवर बोले क्यो, महात्मा जी सबका तिलक हो रहा है, सब को बढिया माला पहनाई जा रही है, सभी को दक्षिणा दी जा रही है, तुमको किसी ने नही दिया, भृगु रिषी ने देखा, तो ना माला है ना तिलक है,
अगल बगल मे बैठे सभी के तिलक है माला है, तुरंत ताम्ब्रवरण लाल पड गए महाराज, तुरंत अपने स्थान से खडे हो गए, और बोले हे रघुनंदन राम, इन संतो को क्या अपमान के लिए तुमने बुलाया है, राम जी तुरंत, हाथ जोडकर महात्मा जी के पास आए,
महात्मा आप क्यो क्रोधित हो रहे है, क्या हो गया, किसने अपमान कर दिया, आप मुझे बताइए, रिषी क्रोध मे बोले, मुझे ये बताओ की तुम्हारे यहा आने वाले लोगो का, क्या अपमान होना चाहिए,
( अगले भाग का इंतजार करें )
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