जब कोई साथ न दे, भगवान साथ देते हैं...
अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ... महल की सीढियो पर बैठी थी ... उसी समय द्रौपदी आती है ... धीरे से उसके सिर पर हाथ फेरा और बोली ... पुत्री याद रखना ... भविष्य मे चाहे जितनी भी बडी विपत्ति आ जाए ... कभी किसी रिश्तेदार की शरण मे मत जाना ... सीधे भगवान की शरण मे जाना ... उत्तरा हैरान होकर माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली ...
आप ऐसा क्यो कह रही है माता ... द्रौपदी बोली क्योकि मैने वो सब सहा है ... जो कोई सोच भी नही सकता ... जब मेरे पांचो पति कौरवो के साथ जुआ खेल रहे थे ... तो अपना सर्वस्व हारने के बाद ... मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए ... फिर कौरव पुत्रो ने भरी सभा मे ... मेरा बहुत अपमान किया ... मै रोई, चिल्लाई, गिडगिड़ाई ...
मैने सहायता के लिए अपने पतियो को पुकारा ... मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे ... पितामह भीष्म ... द्रोणाचार्य ... धृतराष्ट्र ... सभी को मदद के लिए पुकारती रही ... मगर किसी ने भी मेरी तरफ नही देखा ... वह सभी आंखे झुकाए आंसू बहाते रहे ... मगर किसी ने कुछ नही किया ... किसी ने भी मेरी आंखो मे झांकने की हिम्मत नही की ... सबने अपनी निगाहे झुका ली ...
और जब हर रिश्ता मुझसे मुंह मोड चुका था ... मैने भगवान को पुकारा ... और जानती हो क्या हुआ पुत्री ... श्री कृष्ण साक्षात आए ... और मेरा मान रख लिया ... द्रौपदी की आंखो से आंसू बह रहे है ... और बोली ... जब मेरी अस्मिता भरी सभा मे रौदी जा रही थी ... तब मैने आंखे बंद की ... और बस एक नाम पुकारा ... श्री कृष्णा ...
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आपके सिवाय मेरा और कोई भी नही है ... तब श्रीकृष्ण तुरंत आए ... और मेरी रक्षा की ... जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी ... तो द्वारिका मे श्री कृष्ण बहुत विचलित होते है ... क्योकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पडा था ... रुक्मिणी जी उनके पास आती है ... नाथ आप इतने उदास क्यो है ... श्रीकृष्ण भारी स्वर मे कहते है ... मेरी सबसे बडी भक्त ... मेरी प्रिय सखी ... द्रौपदी ...
भक्त की पुकार भगवान का आमंत्रण है...
आज भरी सभा मे अपमानित हो रही है ... और मै कुछ कर नही पा रहा ... रुक्मिणी व्यथित होकर बोली ... तो आप जाए प्रभु ... और उसकी रक्षा करे ... श्रीकृष्ण बोले ... कैसे जाऊं देवी ... जब तक वह मुझे पुकारेगी नही ... मै नियम से बंधा हूं ... भक्त की पुकार ही तो भगवान का आमंत्रण होता है ... क्या तुम्हे याद है ... जब राजसूय यज्ञ मे मैने शिशुपाल का वध किया था ...
मेरी उंगली कट गई थी ... उस समय मेरी सभी पत्नियां वही थी ... कोई वैद्य को बुलाने भागी ... तो कोई औषधि लेने चली गई ... लेकिन वही खडी मेरी वो सखी ... द्रौपदी ने बिना कुछ सोचे ... अपनी साडी का पल्लू फाडा ... और मेरी उंगली पर बांध दिया ... आज उसका रिण चुकाने का समय है .... बस वो पुकारे ... और मै उसके पास दौडा चला जाऊंगा ...
द्रौपदी चीख उठती है ... हे द्वारकाधीश ... हे केशव ... हे माधव ... मुझे बचाइए ... सभा चौक जाती है ... चीर बढता जाता है ... बढता जाता है ... द्रौपदी का आंचल अब अंतहीन हो चुका है ... कौरव थक जाते है, पूरी सभा स्तब्ध है ...
और द्रौपदी की आंखो मे अब डर नही ... एक आस्था है .... जब कोई नही आता ... तब भगवान आते है ... जब हर द्वार बंद हो जाते है ... तब सिर्फ एक द्वार खुलता है ... श्रीकृष्ण का द्वार ... चैनल को सब्सक्राइब करके ... कमेंट मे जय श्री कृष्ण जरूर लिखे ... धन्यवाद ...
