कहानी का हुक........?
क्या आपने कभी सुना है, एक ऐसे जंगल के बारे मे, जहा से गुजरने वाला कोई मुसाफिर, जिंदा लौटकर कभी नही आया, क्योकि उस जंगल मे रहते थे, एक खूंखार ठग, और उसकी दो बेटियां, जिनकी खूबसूरती और चालाकी के आगे, बडे-बडे वीर भी धोखा खा जाते,
लेकिन एक दिन, किस्मत उस जंगल मे ले आई, एक राजकुमार को,राजा का बेटा, जिसे देश निकाला दिया गया था, चार लाल और थोडे से सोने के साथ, वो अकेला भटक रहा था, राजकुमार को क्या पता था, उसकी राह मे आगे इंतजार कर रहा है,
जहर मिला खाना, आग का कुआं, कटार की नोक, और मौत से भी खतरनाक एक साजिश, पर तभी साधु की दी हुई चार बाते, उसकी ढाल बन गई, हर बार मौत सामने खडी थी, और हर बार किस्मत उसे नया मोड दे रही थी, लेकिन असली खेल तो तब शुरू हुआ,
जब ठग की छोटी बेटी, राजकुमार पर दिल हार बैठी, अब सवाल ये है, क्या वो अपने परिवार से बगावत कर, राजकुमार की जान बचा पाएगी,या फिर, इस जंगल मे उसकी भी चिता जलेगी, आगे जो हुआ, उसने इस पूरी कहानी का रुख बदल दिया, देखिए पूरी कहानी Manash Khare Website Me
कहानी की शुरुआत....
यह कहानी मगध राज्य के राजा, चंद्रगुप्त की है, और वह एक गुस्सैल राजा थे, ऐसे ही एक बार उन्होने अपने ही पुत्र को, किसी दोष के कारण, उसे देश निकाला दे दिया, राजकुमार ने दुखी मन से, अपने गुजारे के लिए चार लाल, और कुछ स्वर्ण भी अपने साथ ले लिए,
और भरे हृदय से अपने पिता का महल छोड दिया, चलते-चलते वह जब, शहर से कुछ दूर पहुचा, तो उसे एक साधु का आश्रम दिखाई दिया, राजकुमार ने मन मे विचार किया, की संत महात्मा हमे सही मार्ग दर्शन देते है,
मुझे एक बार इनसे जरूर मिलना चाहिए, राजकुमार उस आश्रम की ओर जाने लगा, राजकुमार ने उस साधु को दंडवत प्रणाम करके, एक तरफ बैठ गया, जब साधु ने उसकी मायूस शक्ल, और देह पर कीमती वस्त्र देखे, तो साधु ने उससे पूछा।
बच्चा तुम कौन हो, और यहा कैसे आए, राजकुमार विनम्र भाव से बोला, महाराज मै राजा चंद्रगुप्त का पुत्र महेंद्र गुप्त हूं, मुझे मेरे पिता ने, देश निकाला दे दिया है, इसीलिए मै परदेश जा रहा हूं, रास्ते मे आपका आश्रम दिखाई दिया, तो मेरे मन मे आया।
कि आपके भी दर्शन करता चलूं, साधु ने महेंद्र गुप्त की बात सुनकर कहा, वत्स तुम नेक इंसान हो, और परदेस जा रहे हो, इसलिए मैं तुम्हे चार बाते बताता हूं, तुम उन बातो पर अमल करना, परदेश मे यह बाते तुम्हारे अवश्य ही काम आएंगी।
पहली यह, कि परदेश मे एक से भले दो होते है, दूसरी यह, कि परदेश मे दूसरे के हाथ का बना खाना मत खाना, अगर खाना भी पडे, तो पहले किसी जानवर को खिला देना, तीसरी बात यह, कि परदेश मे किसी दूसरे की बिछाई हुई, चारपाई पर मत सोना, अगर सोना भी हो,
तो पहले बिस्तर को अच्छी तरह झाड लेना, चौथी बात यह, कि यदि कही शत्रुओ के फंदे में फंस जाओ, तो जहा तक हो सके, तो नरमी और ज्ञान की बाते सुनाकर,
अपना उद्देश्य प्राप्त करना, साधु ने कहा, मेरी यह चार बाते हमेशा याद रखना, साधु की बाते सुनकर , साधु को अंतिम बार प्रणाम किया, और फिर राजकुमार परदेश चल पडा, जब चलते-चलते बहुत दिन बीत गए, तो वह एक जंगल मे पहुचा, वहा उसने देखा,
सफर मे हो लिया एक कछुआ...
कि एक चील एक कछुए के बच्चे को लेकर, उडी जा रही है, संयोग वश वो बच्चा, उस चील के पंजे से निकल कर गिर गया, महेंद्र गुप्त ने कछुए के तडपते हुए बच्चे को देखा, तो उसे बडी दया आई, उसने मन मे सोचा, कि इस बच्चे को पालना चाहिए, इस बच्चे को पालने से दो बाते होगी,
पहली तो यह, कि इस बच्चे के प्राण बच जाएंगे, और दूसरी यह, कि साधु द्वारा कही गई, पहली बात भी पूरी हो जाएगी, कि सफर मे एक से भले दो होते है, और इससे बाते करते हुए, दिन भी आसानी से बीतेगा, यह सब सोचकर महेंद्र गुप्त ने, उस बच्चे को अपने साथ ले लिया,
अब सफर मे उसके साथ, वह कछुए का बच्चा भी हो लिया, कुछ दिन के सफर के बाद, राजकुमार को अच्छा सा स्थान दिखाई पडा, उस स्थान पर पहुचकर, उसने कुछ भोजन ग्रहण किया, और पानी पिया, और फिर कछुए के बच्चे से बोला, तुम यहा बैठे रहना, मै जरा थोडी देर सो लूं, यह कहकर महेंद्र गुप्त, एक पेड के नीचे सो गया।
ऊपर एक सांप और एक कौवा रहते थे, उन दोनो का यह दस्तूर था, कि जब कोई मुसाफिर उस पेड के नीचे ठहरता, तो सांप उसे डस लेता, और कौवा उसकी आंखे निकाल लेता, उस नाग ने जब सोते हुए, मुसाफिर को देखा।
तो पेड के नीचे उतरा, और तुरंत राजकुमार को डस लिया, सांप के डसते ही, तुरंत राजकुमार के प्राण पखेरू उड गए, कुछ देर मे जब कछुए की नजर, महेंद्र गुप्त पर पडी, तो वह उसे मरा देखकर, बहुत घबराया, और महेंद्र गुप्त के ऊपर बैठकर रोने लगा।
तभी कौए भी पेड से नीचे उतरा, और ज्यो ही उसने महेंद्र गुप्त की आंखे निकालनी चाही, त्यो ही कछुए ने झपट कर, कौए की गर्दन को मुंह से पकड लिया, कौए ने बहुत जोर लगाया।
मगर कछुए ने उसे नही छोडा, तब कौए ने सांप को पुकारा, कौवे की आवाज सुनकर सांप आ गया, उसने बडे जोर से कछुए की पीठ पर डंक मारा, परंतु कछुए ने अपना मुंह भीतर कर लिया।
वह उस कछुए से प्रार्थना करने लगा, कि तुम मेरे मित्र को छोड दो, यह सुनकर कछुआ बोला, नही तूने मेरे मित्र को डसा है, अब मै भी तेरे मित्र की जान लूंगा, तू मेरे मित्र को छोड दे, तो मै तेरे मित्र को जीवित कर दूंगा।
यह कहकर सांप ने कांटी हुई जगह पर, मुंह रखकर महेंद्र गुप्त के शरीर से, सारा विष खींच लिया, और बोला, अब तो मेरे मित्र को छोड दे, कछुए ने जब राजकुमार को देखा, कि उसे थोडा होश आ रहा है, और उसका जहर उतर रहा है, तो उसने कौवे को छोड दिया,
राजकुमार को कछुए ने सांप और कौवे का हाल सुनाया...
जब महेंद्र गुप्त को होश आया, तब कछुए ने, उस सांप के डसने का सारा हाल सुनाया, कछुए की बात सुनकर, तुरंत महेंद्र गुप्त के मन मे, साधु की बताई पहली बात खटकी, सोचा साधु की एक बात तो काम आई, कि एक से भले दो होते है, मन ही मन उसने साधु को धन्यवाद दिया, और फिर दोनो आगे बढ चले,
चलते-चलते कुछ दिनो के बाद, जब वे समुद्र के किनारे जा पहुचे, तब कछुए के बच्चे ने कहा, मित्र मेरा देश आ गया है, यदि तुम कहो, तो मै अपने माता-पिता से मिलाऊं, उनसे बिछडे बहुत दिन हो गए है।
वे बहुत दुखी होंगे, महेंद्र गुप्त ने उसे जाने की आज्ञा दे दी, और स्वयं रात को, वही समुद्र के किनारे उस जंगल मे ठहर गया, जिस जंगल मे राजकुमार ठहरा हुआ था, उसी जंगल मे वहा से कुछ दूर पर ही,
एक ठग का परिवार रहता था, ठग के दो लडकियां और चार बेटे थे, उसकी बडी बेटी ज्योतिष विद्या जानती थी, जब भी कोई राहगीर या कोई यात्री, उस जंगल से गुजरता, और उसके पास कुछ कीमती चीजे होती।
तो ठग की बडी बेटी, अपनी विद्या से जान लेती थी, आज फिर से उसे बहुत दिनो बाद, खजाने की महक आई, उसने अपने पिता से कहा,ऐसा प्रतीत होता है, कि इस जंगल मे एक पथिक आया हुआ है।
उस पथिक के पास चार लाल है, यदि तुम लोग उस पथिक को यहा ले आओ, तो उससे लाल लेना मेरा काम है, यदि वे लाल हमको मिल जाएं, तो हम जन्म भर के लिए निहाल हो जाएंगे।
परंतु उस पथिक को मारना मत, उसे जीवित ही पकड लाओ, ठग अपने बेटो के साथ, तुरंत उसकी तलाश मे निकल पडा, वे थोडी ही दूर चले होंगे, कि उन्होने देखा, एक आदमी एक पेड के नीचे सो रहा है।
इसके आगे क्या हुआ, राजकुमार के साथ ठागो ने क्या किया, और एक प्यार का जन्म कैसे हुआ इन सभी को हम अगले भाग मे कवर करेंगे जल्दी ही आएगा अगला भाग ------
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