काशी के ब्राह्मण देवता और उनका निष्काम भागवत पाठ..
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प्राचीन समय की बात है ... कासी मे एक ब्राम्हण देवता रहते थे ... वह नित्य भागवत जी का पाठ करते थे ... उनको और कोई काम नही था ... हर दिन गंगा जी के किनारे बैठकर ... भागवत जी का पाठ करना ... समय बीतता गया और उनकी आयु भी बड रही थी ... एक दिन उनके घर मे कुछ गांव के लोग बैठे थे ... बोले भईया इनको कोई काम करा दो ... दिनभर पाठ करते रहते है ...
लेकिन ब्राह्मण देवता नित्य निष्काम भाव से पाठ करते थे ... उसके पीछे प्रभु से उनकी कोई कामना नही थी ... उनके चाचा ने एक दिन कहा ... की इनका व्याह करा दो ... करते धरते तो कुछ है नही ... पत्नी घर मे आएगी ... तो अक्ल ठिकाने लग जाएगी ... कुछ दिन बाद उनके घर वालो ने ... उस ब्राह्मण देवता का व्याह कर दिया ... पत्नी का ग्रह प्रवेश हुआ ...
और कुछ दिन बाद पत्नी को भी पता चला ... की ये कोई काम धंधा नही करते है ... पूरे दिन बस भागवत जी के पाठ मे लगे रहते है ... कई बार पत्नी ने उनसे कहा ... की कुछ काम किया करो ... नही घर कैसे चलेगा ... लेकिन ब्राह्मण देवता ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया ... और अपने पाठ मे लगे रहते ... पत्नी को भी समझ मे आ गया ... की ये कुछ नही करेंगे ...
पत्नी की परीक्षा और घर चलाने का संघर्ष...
एक बहुत खूबसूरत बात शास्त्रो मे लिखी है ... आपत्ति काल गृहणी परिक्षा ... अगर घर मे कोई आपत्ती आई है ... और अगर पत्नी ही हाथ खडे कर दे ... तो छमा कीजिए आपको ब्रह्मा भी नही बचा सकते ... घर मे आपत्ति के समय ... घर की नारी की शक्ति से घर बच जाता है ... ये शास्त्र और वेद कहते है ... एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने सोचा ... ऐसा चलता रहा ...
तो जब हमारा बंस बढेगा ... तो घर को चलाना कठिन हो जाएगा ... पत्नी ब्राह्मण देवता के पास आई और कहने लगी ... अगर आपकी आज्ञा हो तो मै कुछ करूं ... ब्राह्मण देवता ने कहा ... देवी आपको जैसा अच्छा लगे ... वह भोजन अच्छा बनाना जानती थी ... तो उसने तीन चार घरो से काम ले लिया ... और हर दिन उनके घर जाकर ... उनके यहा अच्छा खाना बनाती ...
और उससे जो पैसा मिलता ... उससे ब्राह्मण का घर चलता ... ब्राह्मण देवता ने सोचा ... अब और भी अच्छा हुआ ... अब और भी कुछ नही करना ... बस भागवत जी मे लगे रहो ... समय अनुसार उनके दो बालक भी हो गए ... घर अच्छे से चल ही रहा था ... ऐसे ही कुछ समय बाद ... कासी मे कुछ संतो का आना हुआ ... पर आसमय मे उनका आना हुआ था ...
संतों का आगमन और ब्राह्मणी की व्यथा...
एक संत ने वहा के एक व्यक्ति से पूछा ... भक्त हम पांच दस मूर्ति है ... भोजन पाने के इच्छुक है ... यहा कोई वैशनव परिवार हो तो बताए ... तभी एक राह चलते व्यक्ति ने बता दिया ... की यहा चले जाइए ... एक सेवा निष्ठ और शास्त्रो का अध्ययन करने वाले ब्राह्मण रहते है ... इनके पास चले जाइए आप ... ये प्रसाद पवा देंगे ... संत उनके घर पहुंच गए ...
उस समय ब्राह्मण देवता तो अपने पाठ मे लीन थे ... उसकी पत्नी सभी को भोजन पवा कर ... बर्तन धुलकर रखे ही थे ... उसी समय संतो का आना हुआ ... संत बोले बिटिया हम दस मूर्ति है ... अयोध्या से प्रयागराज जा रहे है ... कासी बीच मे पडा किसी ने बताया ... आपका घर वैशनव का है ... बडी जोरसे भूख लगी है ... ठाकुर जी को प्रसाद पवाओ ...
और फिर हमे प्रसाद बांट दो ... ब्राह्मणी बडी प्रसन्न हुई ... की आज हमारे घर संत पधारे है ... तुरंत वह अपने रसोई घर मे गई ... समाग्री इतनी थी नही ... जिससे सभी को प्रसाद पवया जा सके ... वह अपने कच्छ मे जल्दी से गई ..
और अपने कुछ आभूषण देखने लगी ... की कुछ लेकर आऊं और संतो को प्रसाद खिलाऊं ... लेकिन उसके पास इतना धन भी नही था ... जिससे उन सभी ब्राह्मण देवताओ को भोजन कराया जा सके ... ब्राह्मण का एक स्वाभाव होता है ... दान मिले तो लेने का अधिकारी होता है ... लेकिन मांगने का नही ... ब्राह्मण का यह स्वाभिमान होता है ....
उसकी पत्नी कभी रसोई मे जाए ... तो कभी कमरे मे जाए ... और एकांत मे बैठकर सोचे मै क्या करूं ... घर मे उसके ऐसी कोई समाग्री नही थी ... जिससे उनको भोजन करा सके ... बार बार यहा से वहा देखकर संत समझ गए ... की हम गलत समय पर आ गए है ... सभी संत अपने अपने स्थान से खडे हुए ... और बिटिया को कहा ... की बिटिया हमे प्रयागराज जाना है ...
बिलंब हो रहा है फिर कभी आते है ... अपना ही तो घर है ... तुम परेशान ना हो आराम करो ... ये सुन ब्राह्मणी ने सोचा ... की जब यह मेरे घर प्रवेश हुए थे ... तो घुसते ही क्या कहा था ... की हम बहुत भूखे है ... ठाकुर जी को प्रसाद पवाकर हमे प्रसाद दो ... और ये भूखे ही जा रहे है ... और मै कुछ नही कर पा रही ... उसके नेत्र सजल हो गए ... वह अत्यंत पीडा मे आ गई ...
आज तक उसने अपने पती से कुछ कहा नही था ... आज उनके कच्छ मे क्रोध मे प्रवेश होकर ... भारी स्वर मे कहने लगी ... तुमसे व्याह किया मैने ... आज तक जैसे चाहा वैसे रही मै ... आप कुछ नही करते ... तो घर घर जाकर प्रसाद बनाकर घर चलाती हूं मै ... मै भूखी रह जाऊं ... बच्चे भूखे रह जाए ... आप भूखे रह जाते ... तो भी इतनी पीडा मुझको नही होती ...
आज संत पधारे थे हमारे यहा ... महापुरुष आए थे ... कल्पवासी महात्मा आए थे हमारे यहा ... वो अभागा दुर्भाग्यशाली घर है ... जहा से संत भूखे चले जाते है ... निराश चले जाते है ... और आप पूरे दिन ये भागवत जी मे लगे रहते हो ... अगर ये भागवत नारायण है ... अगर ये भागवत कृष्ण है ... अगर ये भागवत साक्षात्कार भगवान है ... तो हम इनसे इतनी तो उम्मीद रख ही सकते है ...
की हमारे घर से संत भूखे ना जाए ... क्या दिया भागवत जी ने हमे ... ये सुन ब्राह्मण देव बोले ... की देवी तुम मुझे कुछ कह लो ... लेकिन तुम जानती नही हो ... ये साक्षात्कार श्री कृष्ण है ... मै क्यो बचपन से श्री कृष्ण के उन्ही श्लोक और अध्याय को पडता हूं ... मुझे श्री कृष्ण दिखते है ... उनकी लीला दिखती है ... श्यामा श्याम का नित्य विहार दिखता है भागवत जी मे ... इनके विषय पर कुछ मत कहो ...
ब्राह्मणी को और भी गुस्सा आ गया ... और उनकी पोथी को उठाकर उनकी गोदी मे फेक दिया ... और बोली सुनिए ... ये उठाइए और यहा से निकलिए ... मै अपना घर चला लूगी ... अपने बच्चो को पाल लूगी ... आप जिस समय भागवत जी का त्यागने का संकल्प कर ले ... तब यहा लौटकर आइएगा ... ब्राह्मण के नेत्र सजल हो गए ... ह्रदय से लगा लिया भागवत जी को ...
वह अपने ही घर से निकल गए ... और गंगा जी के तट पर बैठकर खूब रोए .... हे भागवत महापुराण हे साक्षात्कार शब्द मै श्री कृष्ण ... मेरी अभागा पत्नी है ... वो आपके रूप स्वारूप को अभी पहचानती नही है ... हे करूणा निधान आप कृपा करो ... मै कहूंगा तो भी वह कभी अध्ययन नही करेगी ... और कभी मुझसे कथा नही सुनेगी ... हे प्रभु एक बार आप क्रपा कीजिए ...
श्रीकृष्ण का बाल रूप दर्शन और निष्काम भाव का चमत्कार...
तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसी ने कल्पना नही की ... एक दस साल का छोटा बालक ... पैरो मे कढूला पहने ... और एक सुंदर धोती और गले मे दो हार पहने ... और सिर पर एक स्वाफा बांध करके ... सावले सलोने ठाकुर जी प्रकट हो गए कासी मे ... इधर ब्राह्मण देवता गंगा किनारे बैठकर रो रहे है
और ठाकुर जी एक सिर पर डलिया रखकर ... उनके घर की ओर चल पडे ... उनके दरवाजे पर खडे होकर ... उनके घर का दरवाजा खटखटाया ... ब्राह्मणी ने आकर दरवाजा खोला ... सामने ठाकुर जी खडे ... वो क्या जाने ये कौन है ... उसे लगा ये कोई माता का सुंदर सा बालक है ... उसने पूछा कौन हो तुम ... तुम्हारे माता पिता कहा है ...
और इतनी भारी डलिया लिए कहा घूम रहे हो ... डलिया को एक कपडे से ढक रखा था ... ठाकुर जी ने अपने एक हाथ से इशारा किया ... अच्छा गूंगे हो ... ठाकुर जी ने इशारा किया हां ... तो फिर यहा क्यो आए हो ... ठाकुर जी फिर इशारा किया ... कुछ लिखने को दो तो हम बताए ... ब्राह्मणी पेन कापी लेने गई ...
ठाकुर जी ने डलिया को रखा ... और वही बैठकर एक सुंदर सी लेखनी लिखने लगे ... और अच्छे से मोडकर ब्राह्मणी को दे दिया ... और पीछे मुडकर चले गए ... ब्राह्मणी ने उस पर्चे को खोलने लगी ... इतने मे ठाकुर जी अंतर ध्यान हो गए .. ब्राह्मणी इधर उधर देखने लगी ... पर वह बालक कही नही दिखा ... जब ब्राह्मणी ने उस पर्चे को पढा ...
मइया हमारे कद को देखकर छोटा मत समझो ... हम बडे है ... और हम बहुत धनवान परिवार से आते है ... बहुत वर्षो से तुम्हारे पतिदेव हमारे कुल के लिए पाठ कर रहे भागवत जी का ... पर आज तक उन्होने वेतन नही लीया अपना ... आज तक एक रूपया भी हमसे मांगा नही ... पर आज मुझे पता चला ...
उनके परिवार को अवश्कता है ... इसलिए संपूर्ण जीवन का जितना भी वेतन होता था ... वो हम देने के लिए आए है ... वो घर आएं तो उनको दे देना ... ये पढकर पत्नी को बडी हैरानी हुई ... जैसे ही उसने डलिया से कपडा हटाकर देखा ... विविध प्रकार की मणियां हीरे सोने चांदी रत्नो से लबालब भरी डलिया ... पत्नी मन ही मन सोचने लगी ... मैने भी बेवजह डाटा ...
बिन बताए पाठ कर रहे थे यहा पर ... मुझे लगता था ये सब बेवजह कर रहे है ... कुछ मिलता नही इनको ... फिर भी लगे रहते है ... पर ये तो बडे गोपनीय है ... मुझे बिन बताए किसी परिवार के लिए कर रहे थे ... अपने बेटा को बुलाया बोले सुनो ... अपने पिताजी को खोजो कहा है ... ढूंढ के लाओ उन्हे ... पिताजी बैठे थे गंगा किनारे ... बच्चा उनके पास जाकर बोला ...
पिताजी जल्दी चलो मइया बुला रही है घर पे ... साम हो गई ब्राह्मण देव बडे उदास हताश ... शीने से भागवत को लगाकर चल रहे थे ... जैसे ही घर पहुचे ... आज घर का स्वारूप ही बदल गया था ... घर मे चारो तरफ दिए जल रहे है ... जब पत्नी ने दरवाजा खोला ... पत्नी भी सुंदर वस्त्र धारण किए है ... बच्चे भी अच्छे अच्छे कपडे पहने है ...
जैसे ही उसने पति को देखा ... उसने तुरंत उनकी आरती की ... और उसके चेहरे पर एक अलग खुशी थी ... पती देव ने सोचा ... व्याह के बाद पहली बार इतना स्वागत हुआ है ... ऐसा क्या हो गया ... जो इतना पूज रही है ...
पती देव बोले देवी एक डांट से ऐसा क्या हो गया ... ये पूरे घर मे दिए ... बच्चे नए नए वस्त्र और तुम नयी साडी मे ... ऐसा क्या हो गया है ... पत्नी बोली आज तुम्हारी चोरी पकडी गई है ना ... वही से मिला है ये सब कुछ ... ब्राह्मण देवता बोले मेरी कौन सी चोरी ... चलो मै दिखाती हूं ... पत्नी ने उन्हे घर के अंदर ले गई ... कमरे के बिस्तर पर ही सभी स्वर्ण आभूषण पडे थे ...
देवी इतना सब ये कहा से आया ... पत्नी बोली ज्यादा चतुर मत बनिए ... आपका गूंगा मालिक आया था ... ब्राह्मण देवता बोले मेरा गूंगा मालिक कौन ... वही जो छोटा सा जिसने सुंदर वस्त्र धारण किए ... अच्छे से सजा हुआ ... देवी नाम नही पूछा उनका ... उसने इसारा किया की मै गूंगा हूं ...
तो तुमको कैसे पता की वो मेरा मालिक है ... पत्नी बोली की वो लिखके देकर गया है ... कहा है दिखाओ मुझे ... जैसे ही पत्नी ने पर्चा दिया ... अक्षर सभी अंतर्ध्यान हो चुके थे ... देवी यहा तो कुछ नही लिखा है ... पत्नी ने भी देखा तो उसमे कुछ नही लिखा था ...
दोनो एक दूसरे को देखे की आखिर हुआ क्या ... तुम सच बताओ वो दिखते कैसे थे ... बोली सांवला सा चेहरा कमल नयन ... पूरा बदन खुशबू से महक रहा ... और छोटा और प्यारा था ... बहुत देर तक तो मै उसके रूप का ही चिंतन करती रही ... ब्राह्मण देव ज्यो ज्यो रूप का वर्णन सुने ...
त्यो त्यो उसके नेत्रो से आंसू गिरते जाए ... उन्होने तुरंत भागवत गीता को खोला .. और दसम स्कंध के वेणु गीत के श्लोक को उद्धृत करना प्रारंभ किया ... और पत्नी से कहा ... की मै एक श्लोक की व्याख्या करूंगा ... बताना ऐसा ही रूप था क्या ...
ब्राह्मण ने भागवदगीता का एक श्लोक गाया...
बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः ... कर्णिकारंबिभ्रद् वासः ... कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् ... रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन गोपवृन्दैः ... वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः ...
उन्होने एक ही कान मे कुंडल पहना था ... और एक ही कान मे कन्नेर का पुष्प लगा था ... ब्राह्मणी बोली हां हां एक कान मे कन्नेर का पुष्प था ... गले मे दो स्वर्ण की माला ... और एक वैजन्ती माला थी ... हा उनके गले मे वैजन्ती माला थी ... पीताम्बरी ऐसी चमक थी ... मानो सूर्य को भी लज्जा हो जाए ... हा बिल्कुल ऐसी ही थी ... उनके नेत्रो को देख लगता था ...
की मानो हम इनके नेत्रो मे कही खो ना जाए ... बोली हां ऐसा ही रूप था ... ब्राह्मण देव चरणो मे गिर गए ... देवी वो कोई और नही ... साक्षात्कार योगेश्वर श्री कृष्ण आए थे ... साक्षात्कार वृंदावन चंद्र श्री ठाकुर जी आए थे ... और वो तुमसे कहके गए ... की मैने बाल्य काल से उनके घर के लिए पाठ किया ... क्योकि मैने पाठ निष्काम भाव से किया ... मैने कोई कामना नही रखी ...
निष्काम भाव की सेवा ही ठाकुर जी को सर्वत्र प्रीय होती है ... मेरे जीवन भर के पाठ का वो स्वयं मूल्य देने आए थे ... जो जैसी मजदूरी करता है ... भगवान उसे वैसी ही मजदूरी देते है ... बस यही वो क्षण था ... ब्राह्मण देव की पत्नी ने पूरा जीवन भगवान को सौंप दिया ... और उनकी सरण मे चली गयी ...
भागवत कोई ग्रंथ नही है ... कोई किताब नही है ... कोई पोथी नही है ... और ना ही कोई अतिस युक्ति है ... हमे पुराण से ऊंचा कोई शब्द नही मिला ... भागवत कथा भगवान श्री कृष्ण है ... आपको शायद श्री कृष्ण की मूर्ति मे वो भाव ना दिखे ... लेकिन भागवत जी मे आपको भाव दिख जाएगा ...
क्योकि उसमे हर शब्द श्री कृष्ण ही है ... यह कथा आपको प्रीय लगी हो ... तो एक बार सच्चे मन से भागवत महापुराण की जय जरूर लिखना ... और ऐसी ही भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं पढ़ने के लिए .... Website को Follow करना ना भूले ... धन्यवाद ...