ईश्वर की माया और वैद्यजी की करुणा – एक प्रेरणादायी कथा

वैद्यजी का नियम और ईश्वर में अटूट विश्वास...

एक वृद्ध वैद्य अपने छोटे दवाखाने में भगवान का स्मरण करते हुए, दवा बनाने से पहले प्रार्थना करते हुए।"

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एक पुरानी सी इमारत मे वैद्यजी का छोटा घर था ........। पिछले हिस्से मे रहते थे .......। और अगले हिस्से मे दवाखाना खोल रखा था .........। उनकी पत्नी की आदत थी .......। कि दवाखाना खोलने से पहले .......। उस दिन के लिए आवश्यक सामान ..........। एक चिठ्ठी मे लिख कर दे देती थी .........। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते .........। फिर वह चिठ्ठी खोलते .........।

पत्नी ने जो बाते लिखी होती ... उनके भाव देखते ... फिर उनका हिसाब करते ... फिर परमात्मा से प्रार्थना करते ... कि हे भगवान ... मै केवल तेरे ही आदेश के अनुसार ... तेरी भक्ति छोडकर यहा दुनियादारी के चक्कर मे आ बैठा हूं ... वैद्यजी कभी अपने मुंह से किसी रोगी से फीस नही मांगते थे ...

कोई देता था ... कोई नही देता था ... किन्तु एक बात निश्चित थी ... कि ज्यो ही उस दिन के ... आवश्यक सामान खरीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे ... उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नही लेते थे ... चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यो न हो ... एक दिन वैद्यजी ने दवाखाना खोला ...

गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके ... पैसे का हिसाब लगाने के लिए ... आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली ... तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए ... एक बार तो उनका मन भटक गया ... उन्हे अपनी आंखो के सामने तारे चमकते हुए नजर आए ... किन्तु शीघ्र ही उन्होने अपनी तंत्रिकाओ पर नियंत्रण पा लिया ...

आटे-दाल-चावल आदि के बाद पत्नी ने लिखा था ... बेटी का विवाह बीस तारीख को है ... कुछ देर सोचते रहे ... फिर बाकी चीजो की कीमत लिखने के बाद ... दहेज का सामान लिखा ... यह काम परमात्मा का है ... परमात्मा जाने ... एक-दो रोगी आए थे ...

उन्हे वैद्यजी दवाई दे रहे थे ... इसी दौरान एक बडी सी कार ... उनके दवाखाने के सामने आकर रुकी ... वैद्यजी ने कोई खास तवज्जो नही दी ... क्योकि कई कार वाले उनके पास आते रहते थे ... वह सूटेड-बूटेड साहब कार से बाहर निकले ... और नमस्ते करके बेंच पर बैठ गए ...

वैद्यजी ने कहा ... कि अगर आपको अपने लिए दवा लेनी है ... तो इधर स्टूल पर आएं ... ताकि आपकी नाडी देख लूं ... और अगर किसी रोगी की दवाई लेकर जाना है ... तो बीमारी की स्थिति का वर्णन करे ... वह साहब कहने लगे वैद्यजी ... आपने मुझे पहचाना नही ... मेरा नाम कृष्णलाल है ...

लेकिन आप मुझे पहचान भी कैसे सकते है ... क्योकि मै पंद्रह से सोलह साल बाद ... आपके दवाखाने पर आया हूं ... आप को पिछली मुलाकात का हाल सुनाता हूं ... फिर आपको सारी बात याद आ जाएगी ... जब मै पहली बार यहां आया था ... तो मै खुद नही आया था ... अपितु ईश्वर मुझे आप के पास ले आया था ...

क्योकि ईश्वर ने मुझ पर कृपा की थी ... और वह मेरा घर आबाद करना चाहता था ... हुआ इस तरह था ... कि मै कार से अपने पैतृक घर जा रहा था ... बिल्कुल आपके दवाखाने के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई ... ड्राईवर कार का पहिया उतार कर ... पंक्चर बनवाने चला गया ...

आपने देखा कि गर्मी मे मै कार के पास खडा था ........। तो आप मेरे पास आए .......। और दवाखाने की ओर इशारा किया ........। और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएं .......। मै कुर्सी पर आकर बैठ गया .......। ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी .......। एक छोटी-सी बच्ची भी यहां आपकी मेज के पास खडी थी ........।

और बार-बार कह रही थी .......। चलो न बाबा मुझे भूख लगी है .......। आप उससे कह रहे थे ........। कि बेटी थोडा धीरज धरो चलते है .......। मै यह सोच कर कि इतनी देर से आप के पास बैठा था .......। और मेरे ही कारण आप खाना खाने भी नही जा रहे थे ........। मुझे कोई दवाई खरीद लेनी चाहिए .........। ताकि आप मेरे बैठने का भार महसूस न करे ........

मैने कहा वैद्यजी ........। मै पिछले पांच से छह साल से इंग्लैंड मे रहकर कारोबार कर रहा हूं ........। 

इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी .......। लेकिन अब तक बच्चे के सुख से वंचित हूं ......। यहा भी इलाज कराया और वहा इंग्लैंड मे भी .......। लेकिन किस्मत ने निराशा के सिवा .......। और कुछ नही दिया .......।

आपने कहा था मेरे भाई .......। भगवान से निराश न हो ........। याद रखो कि उसके कोष मे किसी चीज की कोई कमी नही है ........। यह किसी वैद्य या डॉक्टर के हाथ मे नही होता .........। और न ही किसी दवा मे होता है ........। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है ........। मुझे याद है आप बाते करते जा रहे थे .........।

और साथ-साथ पुडिया भी बनाते जा रहे थे .........। सभी दवा आपने दो भागो मे विभाजित कर ........। दो अलग-अलग लिफाफो मे डाली थी .......। और फिर मुझसे पूछकर ........। आप ने एक लिफाफे पर मेरा ..........। और दूसरे पर मेरी पत्नी का नाम लिखकर .........। दवा उपयोग करने का तरीका बताया था ..........।

मैने तब बेदिली से वह दवाई ले ली थी ........। क्योकि मै सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था ........। लेकिन जब दवा लेने के बाद मैने पैसे पूछे .......। तो आपने कहा था - बस ठीक है ........। मैने फिर कहा .......। तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है .......। मैने कहा मुझे आपकी बात समझ नही आई .........।

इसी दौरान वहां एक और आदमी आया ........। उसने हमारी चर्चा सुनकर मुझे बताया .........। कि खाता बंद होने का मतलब यह है ........। कि आज के घरेलू खर्च के लिए ......। जितनी राशि वैद्यजी ने भगवान से मांगी थी ........। वह ईश्वर ने उन्हे दे दी है .........। अधिक पैसे वे नही ले सकते ........

मै कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में लज्जित भी...... कि मेरे विचार कितने निम्न थे...... और यह सरलचित्त वैद्य कितना महान है...... मैने जब घर जा कर पत्नी को औषधि दिखाई...... और सारी बात बताई...... तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नही कोई देवता है...... 

कृष्णलाल का संघर्ष और औलाद का सुख...

सूटेड-बूटेड कृष्णलाल वैद्यजी से दवा लेते हुए, संतान सुख की आशा में प्रार्थना करते हुए।"

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और उसकी दी हुई दवा ही...... हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी......आज मेरे घर मे दो फूल खिले हुए है... हम दोनो पति-पत्नी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते है... इतने बरसो बाद आज भारत आया हूं... और कार केवल यही रोकी है... वैद्यजी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड मे सेटल हो चुका है... 

केवल मेरी एक विधवा बहन... अपनी बेटी के साथ भारत मे रहती है... हमारी भान्जी की शादी... इस महीने की इक्कीस तारीख को होनी है... न जाने क्यो जब-जब मै... अपनी भान्जी के भात के लिए कोई सामान खरीदता था... तो मेरी आंखो के सामने आपकी वह छोटी-सी बेटी भी आ जाती थी... और हर सामान मै दोहरा खरीद लेता था... 

मै आपके विचारो को जानता था.... कि संभवत... आप वह सामान न ले... किन्तु मुझे लगता था... कि मेरी अपनी सगी भान्जी के साथ... जो चेहरा मुझे बार-बार दिख रहा है... वह भी मेरी भान्जी ही है... मुझे लगता था... कि ईश्वर ने इस भान्जी के विवाह मे भी... मुझे भात भरने की जिम्मेदारी दी है... वैद्यजी की आंखे आश्चर्य से खुली की खुली रह गई... 

और बहुत धीमी आवाज मे बोले... कृष्णलाल जी... आप जो कुछ कह रहे है... मुझे समझ नही आ रहा... कि ईश्वर की यह क्या माया है... आप मेरी श्रीमती के हाथ की लिखी हुई यह चिठ्ठी देखिये... और वैद्यजी ने चिट्ठी खोलकर कृष्णलाल जी को पकडा दी... वहां उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए... 

ईश्वर की अद्भुत माया और दहेज का रहस्य...

वैद्यजी चिट्ठी हाथ में लेकर आश्चर्य से देखते हुए, साथ में दहेज का सामान और दिव्य आभा दर्शाती चित्रकला।"

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कि दहेज का सामान के सामने लिखा हुआ था... यह काम परमात्मा का है... परमात्मा जाने... कांपती-सी आवाज मे वैद्यजी बोले... कृष्णा लाल जी... आपकी बाते सुनकर तो लगता है... कि भगवान को पता होता है... कि किस दिन मेरी श्रीमती क्या लिखने वाली है... अन्यथा आपसे इतने दिन पहले ही... सामान खरीदना आरम्भ न करवा दिया होता परमात्मा ने... वाह भगवान वाह... तू महान है तू दयावान है...
वैद्यजी ने आगे कहा संभाला है ... एक ही पाठ पढ़ा है कि सुबह परमात्मा का आभार करो, शाम को अच्छा दिन गुज़रने का आभार करो, खाते समय उसका आभार करो, सोते समय उसका आभार करो।

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