प्रेमानंद महाराज — किशोरी जी की एक लीला | Hindi Story
byManash Khare-
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🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 01:
प्रेमानंद महाराज जी की कथा...
आज की कथा कोई साधारण व्यक्ति की नही है, ये कथा है, परम पूज्य श्री प्रेमानंद महाराज जी की है, वैसे आज इनके ज्ञान और तेजस्व को देख, पूरी दुनिया हैरान है, यही महात्मा है, जहा जाने के बाद, व्यक्ति के अंदर कोई प्रश्न नही रह जाता, और इनके हर एक वचन।
जीवन को ऐसे मार्ग पर ले जाते है, जहा से इंसान परम सुख, और हर भोग विकारो से दूर हो जाता है, कई बार देखने को मिला, की इनके पास कोई दर्शन करने को जाता है, तो वह इस दुनिया की मोह माया को छोडकर, पूजनीय महाराज जी के शरण मे चला जाता है।
आज लोगो पर थोडा दुख आने पर, गलत राय या भगवान का आश्रय छोड देते है, लेकिन अगर हम महाराज जी के, बीते दिन की बात करे, तो उनके पास कुछ नही था, सबसे बडा सहारा था, श्री राधा रानी के प्रति प्रेम, और उनका नाम स्मरण, चलिए इनके जीवन की, एक ऐसी घटना बताते है।
जो वाकई मे कलयुग मे एक चमत्कार है, प्रेमानंद महाराज जी वृंदावन की गलियो मे, भोर सुबह से ही झाड़ू लगाया करते थे, और वह बहुत ही भाव मे डूबकर लगाया करते थे,
उनका ऐसा मानना था, की वृंदावन प्रिया प्रियतम का स्वरूप है, इसलिए बहुत ही प्रेम से झाड़ू लगाते थे, और झाडू लगाते समय, ध्यान पूर्वक वृज की रज को देखते थे, कही कोई चिन्ह दिख जाए, कही कोई किशोरी जी के चरण दिख जाए, क्या पता ठाकुर जी के चरण दिख जाए,
उनको करते-करते कई वर्ष बीत गए, इधर किशोरी जी के मन मे भाव आया, कि हम नित्य वृंदावन मे रास करने जाते है, और पूरे वृंदावन को सुव्यवस्थित ये महात्मा करके रखते है, और इनकी एक ही अभिलाषा है, की हमारे चरण चिन्ह इनको दिख जाए,
ऐसे ही एक दिन किशोरी जी ने, अपने चरण चिन्ह का दर्शन कराया, उन पावन चरण चिन्ह को देखकर, प्रेमानंद महाराज के मन मे विस्वास हो गया, हे श्यामा जू अगर ये चरण आप के है, तो निश्चित आप भी हो, जब आप चरण चिन्ह तक ले ही आए हो,
तो आप अपने भी दर्शन करा दो, अब तो ये स्थिति हो गई, की अब चरण चिन्ह नही, अब प्रत्यक्ष किशोरी जी को देखना है, लेकिन आपको बता दे, वृंदावन मे लोगो का ऐसा मानना है, जब तक सखियां अनुमति ना दे, तो किशोरी जी के दर्शन नही हो सकते,
इसलिए ललिता जी को मनाओ, विशाखा जी को मनाओ, यमुना जी को मनाओ, सखियां जब रीझ जाएंगी, तो ही किशोरी जी के दर्शन हो सकते है, लेकिन किशोरी जी तो चाहती है, की उनको दर्शन दे, एक दिन किशोरी जी ने, रास करते करते अपना नूपुर वही छोड दिया,
और इसके बाद किशोरी जी निकुंज मे चली गई, अब अगली सुबह का दिन हुआ, रोज की तरह महाराज जी ने, अपनी झाड़ू उठाई, और लगाना शुरू किया, संयोग वस महाराज वही पहुचे जहा किशोरी जी का नूपुर पडा था, उसे देखकर महाराज आनंदित हो गए,
इतना सुंदर नूपुर, इतनी अच्छी कलाकृति और इतना सुंदर स्वरूप, उनके मन मे विचार आया, की कोई बडे घर की लाली होगी, उनका गिर गया होगा, मै इसे रख लेता हूं, कभी कोई मांगने आएगा, तो उसे दे देंगे, एक बात और आपको बता दे, की नूपुर से किशोरी जी ने, कई लोगो को दर्शन दिया है।
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इसलिए जब भी वृंदावन की पावन भूमि मे चलना, तो बहुत ध्यान से पृथ्वी को देखकर चला करिए, क्या पता क्या मिल जाए, संत सूरदास जी को भी, नूपुर से ही दर्शन हुए श्री जी के, और आज इन महापुरुष को हो रहे है, महाराज जी उसे लेकर चल दिया, किशोरी जी का नियम है।
जब वह रास मे जाती है, तो सब सखियां उनका श्रृंगार करती है, एक एक श्रृंगार, जो उन्होने धारण किया है, वह उसे अच्छी तरह लिख लेती है, कानो मे कुंडल पहने है, गले मे हार पहना है, हाथो मे कडूला पहने है, पैरो मे पायल पहने है, इन सभी को वह लिख लेती है।
ऐसा इसलिए, क्योकि रास मे श्याम सुंदर आते है, पता ना क्या चोरी करके भाग जाए, अगर एक भी आभूषण कम जाए, तो ठाकुर जी की सामत आ जाए, कहा है हमारी किशोरी जी का श्रृंगार बताओ, इसलिए वो सखियां, किशोरी जी एक एक नख को लिख लेती है,
जब किशोरी जी ने की एक लीला...
और जब किशोरी जी रास मे जाती है, और रास खतम होने के बाद, आते ही उनके, एक-एक श्रृंगार को चेक करती है, किशोरी जी एक एक आभूषण को उतारती जाए, वह सभी को अच्छे से देखती, लेकिन आज किशोरी जी का एक नूपुर नही था,
सखियां बोली, हे श्यामा जू, आपका एक नूपुर कहा है, सखी मुझे पता नही है, हो सकता है नृत्य करते करते, रह गया हो वृंदावन मे, ललिता जी बोली, की श्यामा जू वो इंद्र का दिया नूपुर है, साधारण नही है वो, श्री जी तनिक ध्यान दो, वह बहुमूल्य है।
मुझे नही याद आ रहा है, की वो कहा गिर गया है, ललिता विशाखा ने विचार किया, की हम ही जाते है निकुंज खोजने, ललिता विशाखा ने एक वृद्ध मईया का रूप धारण किया, वृंदावन मे खोजने लगी, की नूपुर कहा है, ललिता जी खोजते-खोजते वहा पहुची।
ललिता विशाखा महाराज जी से बात कर रही....
जहा महाराज जी झाड़ू लगा रहे थे, उनके पास जाकर बोली, बाबा हमारी लाली आई थी, सुबह सुबह यहा, उसके पांव का एक नूपुर रह गया है, आपने देखा है क्या, बाबा बोले तुम कौन हो, हम यही पास के गांव की है, और वो हमारी बहू है, उसका यहा नूपुर रह गया है।
बाबा बोले मै कैसे पहचानूं, की तुम्हारी ही लाली का नूपुर है, बाबा मै कह रही हूं, मेरी लाली का है, कहबे से का होबे, मैने अगर गलत आदमी को दे दिया तो, बाबा फिर कैसे मानोगे, एक नूपुर मेरे पास है, तो निश्चित दूसरा नूपुर तुम्हारी बहू के पास होगा, उसे ले आओ।
पहले उसकी पहचान करा दो, तो दूसरो नूपुर मै दे दूंगा, ललिता विशाखा ने सोचा, बडा चतुर बाबा है, क्यो बाबा तुम्हे शरम ना आवे, हम बहू बेटी को तुम्हारे पास लेकर आए, बाबा बोले तो चली जाओ, तुम्हारे पास खूब धन है, दूसरो नूपुर बनवा लेना।
अब ललिता विशाखा चिंतित होकर वापस लौटी, श्री जी बोली की सखी, आप इतनी चिंतित क्यो है, बोली एक बाबा है, उसने आपका नूपुर रख लिया है, और बोल रहा है, की जिनके पास एक नूपुर है, उनको लेकर आओ, तब दूसरो दूंगा।
श्री जी बोली, तो इसमे क्या दिक्कत है, ले चलो हमे, विशाखा जी समझ गई, हे सखी, ये सब लीला किशोरी जी कर रही है, इनको दर्शन देना है उनको, हमसे आपसे स्पष्ट कह नही सकती, क्योकि हम लोग परखने लगते है, की इसमे कोई दोष तो नही है, इसमे क्या गुण है, इसलिए वह सीधे नही बोल रही है, इसलिए इनको ले चलते है।