एक यात्रा जिसमें जीवन का ज्ञान...
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कहानी की शुरुआत इस पहाडी पर बने एक आश्रम से होती है... जहा सुबह सुबह गौरी एक मटका लेकर नदी से पानी भर रही है... और नदी मे उस समय कुछ लोग स्नान भी कर रहे थे... आश्रम मे माता खाना बना रही है... और ये एक सिद्ध पुरुष गुरूदेव है... जो अपना ज्यादा समय ध्यान पर व्यतीत करते है... गौरी पानी लेकर आई....
और इसके बाद मा के काम मे हाथ बंटाने लगी... इसी आश्रम मे एक प्यारी सी गाय माता थी... जिसकी सेवा सभी लोग करते थे... आस पास के गांव के लोग इस गाय को देखने आया करते थे... लोग इसे प्यार से कामधेनु कहते थे... यहा गुरूदेव अपने समाधी से उठे... गोरी एक रोटी और गुड लेकर आई... और गुरूदेव को दिया... गुरूदेव ने जाकर वह रोटी और गुड... गाय माता को खिलाया....
और वहा हाथ जोडकर खडे हो गए... और बोले माता अपनी क्षत्र छाया हमेशा बनाए रखना... गुरूदेव वह गाय को कभी बांधते नही थे... वह गाय आश्रम के खुले वातावरण मे... आराम से घूमा करती थी... इधर गुरूदेव ने भोजन ग्रहण किया... और इसके बाद गांव की सेर पर निकल पडे... वह आस पास के गांव मे लोगो को उपदेश देने जाया करते थे...
लोग गुरूदेव का बहुत सम्मान करते थे... तभी रास्ते के एक गांव मे गुरूदेव... लोगो से बात करने बैठ गए.... इस छोटे से गांव का नाम चम्पारण था... ये गांव गुरूदेव के रास्ते पर पडता था... तो लोग गुरूदेव को अच्छे से जानते थे... लेकिन गुरूदेव से मिलने आज जगदीश नही आया था... गुरूदेव बोले आज जगदीश नही दिख रहा है... गांव के एक व्यक्ति ने बताया की गुरूदेव...
शहर से उसका आज लडका आया है... इसी वजह से वह आज नही दिख रहा है... गुरूदेव ने कहा कोई बात नही... पिता पुत्र का संबंध ही कुछ ऐसा होता है... गुरूदेव और गांव के लोगो के बीच कुछ देर बात चीत चलती रही... थोडी देर बाद गुरूदेव ने राम राम किया... और अपने रास्ते को चल दिया... गुरूदेव ने रास्ते मे देखा... की एक जगह पर चार पांच बकरियां बंधी थी...
और दो तीन लोग बैठे थे... वह लोग मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते है... गुरूदेव उनके पास गए और बोले... भाइयो इन बकरियो को ऐसे क्यो बांध रखा है... देखे कितनी मासुमियत से देख रही है... इनको छोड दो तो कुछ खा पी लेंगी... एक मुस्लिम व्यक्ति मजाक मे बोला... ये यहा क्या खाएंगी... साम को इनको कोई खाने वाला है... गुरूदेव थोडे हैरान हो गए...
फिर बोले की इनको कौन खाने वाला है... एक वोला हम लोग और हमारे भाइजान सभी खाएंगे... पंडित जी अगले दिन बकरीद है ना इसलिए... गुरूदेव बोले की इन मासूम जानवरो के साथ... आप ग़लत कर रहे हो... पंडित जी यह हमारा त्योहार है... कृपया कर इसमे दखल ना दे तो बेहतर होगा... आप अपना प्रस्थान रखिए... गुरूदेव ने निराशा भरी निगाहो से उन बकरियो को देखा...
गुरूदेव काफ़ी देर तक वहा खडे रहे... थोडी देर बाद उनकी एक गाडी आई... और उन बकरियो को अंदर डाला... और उन्हे मौत के घाट उतारने को ले गए... गुरूदेव उन मासूम चेहरो को याद कर बहुत दुखी हो रहे थे... आज साम मे जब वह अपने आश्रम पहुचे... तो उनका चेहरा गहन सोच और चिंता मे डुबा था... उनकी पत्नी सावित्री ने जैसे उन्हे ऐसा देखा...
तो फौरन उनके पास आई और बोली... क्या हुआ आपको आज आप चिंतित परेशान दिख रहे है... गुरूदेव बिना जवाब दिए शांत बैठ गए... सावित्री की व्याकुलता और चिंता बढती जा रही थी... थोडी देर बाद गौरी भी आ गई... और माता पिताजी को दुखित देख वह भी दुखी हो गई...
आप कुछ बताओ ना.... आज आपको क्या हो गया है... गुरूदेव ने हिम्मत कर बताया... सावित्री यहा एक ऐसा भी धर्म है....जहा उनके त्योहार पर जानवरो को काट कर खाते है... इस जग मे भगवान ने कितने जीव बना रखे है... हर जीव का भोजन भी अलग अलग बना रखा है...
लेकिन यहा तो जीव जीव को ही खा रहा है... बोलते हुए गुरूदेव की आंखें नम थी... ये बात सुनकर सावित्री को भी बडी हैरानी हुई... और उसकी आंखे भर आई... गुरूदेव ने आज रात्रि मे खाना नही खाया... और रात्रि मे जब लेटे थे... तो उनके सामने वही मासूम चेहरे दिखाई दे रहे थे...
आज पूरी रात निकल गई... लेकिन गुरूदेव को नींद नही आई... सुबह पांच बजे वह नदी मे स्नान करने गए... और स्नान कर वह मंदिर पहुचे... और भगवान के सामने बैठकर रो रो कर प्रश्न करने लगे... ये कैसी दुनिया बनाई है प्रभु... यहा तो लोग एक दूसरे को ही खा रहे है... ऐसे मे मानव जाती का क्या होगा... ऐसा चलता रहा तो असहाय जानवरो को कौन बचाएगा....
क्या आगे इंसान ही दुनिया पर राज करेंगे... क्या तुम्हारा यही न्याय है... तभी एक आकाशवाणी हुई... पार्थ धैर्य बनाए रखो... समय आने पर सब पता चल जाएगा... इसके बाद अचानक गुरूदेव के मन मे शांती का अभाव हुआ... और फिर प्रणाम करके वह अपने आश्रम को लौट गए... गौरी पहले से ही गुड रोटी लिए खडी थी... गुरूदेव ने गुड रोटी लिआ और गाय माता को खिलाया...
गुरूदेव ने नजर भर के गाय को देखा... मन मे सोचने लगे... ये जानवर किसी से कुछ भी नही मांगते... और ना ही इन्हे कोई शिकायत है... फिर भी लोगो को इनसे ना जाने क्या तकलीफ़ है... सोच मे डुबे गुरूदेव आश्रम के अंदर गए... और भोजन ग्रहण किया... और आराम करने लगे... इधर रोज की तरह गौरी पानी लेने जा रही थी...
उसी समय गांव के तीन लडके नदी की तरफ घूम रहे थे... गौरी दिखने मे भी सुंदर थी... तो तीनो लडके मजाक मजाक मे गौरी पर ग़लत अभद्रता करते... गौरी आज अपने आप को असहज महसूस कर रही थी... लडके उसे गलत नजरो से देख रहे थे... किसी तरह गौरी वहा से अपने आश्रम को गई... और जब मा खाना बना रही थी... तो वहीं एक जगह पर उदास बैठ गई...
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मां ने पूछा गौरी बेटा क्या हुआ... तुम ऐसे क्यो बैठी हो... कुछ नही मां ऐसे ही... बता तो बेटा क्या हुआ... तो वह रोने लगी... मां ने हैरानी मे पूछा क्या हुआ बता तो... गौरी ने नदी के घाट की सारी घटना बताई... की आज जब मै पानी लेने गई थी...
तो तीन लडके मुझपर बहुत ग़लत गलत बाते कर रहे थे... और वह रोने लगी... सावित्री ने सोचा ये क्या हो रहा है... लोग अपने बच्चो को अच्छे संस्कार क्यो नही दे रहे है... गुरुदेव साम मे जब लकडियां लेकर आश्रम आए... इसके बाद सावित्री ने गौरी की बात बताई...
गुरुदेव बोले आज तक ऐसा नही हुआ... आज ऐसा क्यो हुआ... गुरूदेव एक हफ्ते से गांवो मे आना जाना बंद कर दिया था...
गुरूदेव अगले दिन इसका पता लगाने गांव को गए... और अपने शिष्यो के पास बैठे... गुरूदेव आप कुछ दिनो से आए नही क्या बात है... सब खैरियत तो है ना... गुरूदेव के चेहरे पर चिंता साफ दिख रही थी... गुरूदेव बताओ क्या बात है... हम सब आपके साथ है... गुरूदेव ने बताना शुरू किया...
कि कल मेरी बेटी के साथ किसी ने नदी के घाट पर अभद्रता की है... ये सुन लोग हैरान रह गए... की देवी स्वरूप कन्या के साथ ऐसा...आप तो उसका नाम बताओ हम उसे कडी सजा देंगे... थोडी दूरी पर राहुल खडा ये सब सुन रहा था... वह फौरन वहा से रोहन के पास गया...
गांव के लोग और गुरूदेव की बात जाकर बताई... रोहन हैरान की वह लडकी साधु की बेटी है... हा भाई अगर पिताजी को पता चल गया... तो बहुत दिक्कत होगी... दोनो हैरान परेशान वही बैठे रहे... इधर गुरुदेव ने कहा... की उन लडको को सजा दिलाने की भावना मेरी एक भी नही है...
लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है... की ऐसी शिक्षा आप लोग अपने बच्चो को दे रहे है... तो आने वाले समय पर हमारी बेटियां सुरक्षित महसूस नही करेंगी... इतना कह गुरूदेव वहा से चल दिया... गांव के लोगो पर गुरूदेव की बात अंदर तक चली गई... वह सभी आपस मे एक निर्णय लिया... कि हमे कुछ बडा फैसला करना होगा...
नही गुरूदेव की बात सच साबित हो गई... तो हम सभी एक ना एक दिन परेशान होंगे... गांव के लोगो ने पता करना शुरू किया... कि गुरूदेव की बेटी के साथ... ऐसी अभद्रता का किसमे साहस हुआ... इधर हल्की स्माइल के साथ मनोज भी चला आ रहा था... रोहन और राहुल पहले से ही चिंतित बैठे थे... मनोज उन्हे देख थोडा हैरान हुआ...
नही गुरूदेव की बात सच साबित हो गई...... लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है... की ऐसी शिक्षा आप लोग अपने बच्चो को दे रहे है... तो आने वाले समय पर हमारी बेटियां सुरक्षित महसूस नही करेंगी... इतना कह गुरूदेव वहा से चल दिया... गांव के लोगो पर गुरूदेव की बात अंदर तक चली गई... वह सभी आपस मे एक निर्णय लिया... कि हमे कुछ बडा फैसला करना होगा...
नही गुरूदेव की बात सच साबित हो गई... तो हम सभी एक ना एक दिन परेशान होंगे... गांव के लोगो ने पता करना शुरू किया... कि गुरूदेव की बेटी के साथ... ऐसी अभद्रता का किसमे साहस हुआ... इधर हल्की स्माइल के साथ मनोज भी चला आ रहा था... रोहन और राहुल पहले से ही चिंतित बैठे थे... मनोज उन्हे देख थोडा हैरान हुआ...
पास जाकर बोला दोस्त क्या हुआ... तुम ऐसे क्यो खडे हो, रोहन ने मनोज को पूरी बात बताई... ये सुन मनोज के पैरो तले जमीन खिसक गई... राहुल बोला तूने ही पहले उस्काया था...
तू बहुत शहर की रीती रिवाज अपना रहा है ना... ये गांव है भाई... यहा किसी की बहन बेटी पर ग़लत करने पर क्या होता है... तुम सोच भी नही सकते... मनोज डरते हुए बोला की दोस्त कुछ उपाय बताओ... नही तो मेरे पापा मुझे जान से मार देंगे... मनोज जगदीश का ही लडका था...
जो शहर से कुछ समय पहले आया था... इधर गांव के लोग उन लडको का पता लगा रहे थे... रोहन बोला की ऐसा करते है... हम लोग फिर से शहर को निकल लेते है... मनोज बोला की हां ये बात सही है... किसी को पता भी नही चलेगा... राहुल बोला तुम लोग पागल हो क्या... उस लडकी ने हम तीनो को देखा है...
ऐसा करने पर गांव के लोग हम पर शंका करने लगेंगे... तो फिर क्या किया जाए दोस्त... राहुल ने कहा हमे उस लडकी के पास जाकर... उसके पैरो मे गिरकर माफी मांगनी पडेगी... तभी कुछ हो सकता है... दोनो इस बात से सहमत हो गए... और कल नदी के घाट पर उसका इंतजार करने लगे... लेकिन वह आज नदी पानी लेने नही आई थी...
वह तीनो वही बैठे रहे... तभी दो महिलाएं बात कर रही थी... की गौरी बिटिया दो तीन दिन से दिखी नही... क्या हो गया होगा... ऐसा करते है कल उनके आश्रम चलेंगे... वही से पता चलेगा...
ये सुन उन लडको को और हैरानी हुई... की यार छोटे से कमेंट मे उस लडकी ने नदी आना ही बंद कर दिया... मनोज बोला यार यहा के लोग छोटी छोटी बातो को दिल पर ले लेते है... राहुल काफी समय से गांव मे ही था.... तो उसने बताया की भाई शहर की दृष्टि से गांव को देखना बंद करो... दोस्त वो भी यहा आना बंद कर दिया अब क्या करे...
राहुल बोला अब लास्ट एक ही उपाय है... क्या दोस्त जल्दी बताओ... अब हमे आश्रम मे ही चलकर गुरूदेव.... और उस लडकी के चरणो मे गिरकर माफ़ी मांगना पडेगा... मनोज चौंक कर बोला की दोस्त क्या बोल रहा है.... भाई एक ही रास्ता है और कुछ नही है.... अगर गांव के लोगो को पता चल गया तो हमारी खैर नही....
तीनो ने बैठकर काफी देर तक विचार किया.... और फिर वह गुरूदेव के आश्रम की तरफ चल दिया.... जब वह आश्रम के करीब पहुचे... तो उस समय गौरी आश्रम की सफाई कर रही थी...
जैसे गौरी की नजर उन लडको पर पडी... वह फौरन भागकर अंदर चली गई... पास मे खडी मां ने देखा तो वह उन तीनो के पास गई... वह तीनो लडके झुककर हाथ जोडकर एक पश्चाताप के भाव से बैठ गए...
ये देख सावित्री को थोडा अजीब लगा... की ये लडके ऐसे क्यो बैठे है... उसी समय गुरूदेव का आश्रम मे प्रस्थान हुआ... और सावित्री के पास आकर बोले ये लडके ऐसे क्यो बैठे है... आश्रम के झोंपडी के अंदर से गौरी भी देख रही थी...
सावित्री बोली इनको देखकर गौरी अचानक अंदर चली गई थी... तो मै इनके पास आई... तो पता नही ये आकर ऐसे बैठ गए है... गुरूदेव बोले बच्चो क्या बात है... तुम ऐसे क्यो बैठे हो.... मनोज बोला गुरुदेव हमसे अंजाने मे बहुत बडा पाप हो गया है...
गुरूदेव हमे जो सजा देंगे हमे मंजूर है... गुरूदेव बोले आखिर हुआ क्या हमे भी बताओ... सभी मौन बैठे थे... सावित्री बोली बेटो हमे बताओ की आखिर बात क्या है... तब हिम्मत कर राहुल बोला की माते... हम तीनो ने ही आपकी बेटी के साथ अभद्रता की थी... ये सुन सावित्री हैरान हो गई... क्रोध तो बहुत आया... पर उन लडको के विनम्र भाव ने मां की ममता को शांत कर दिया...
रोहन बोला माता हमे पता है... हमसे बहुत बडा पाप हुआ है... आप हमारे माता पिता समान हो... हमे जो सजा देंगे हमे खुशी खुशी मंजूर है... सावित्री गुरुदेव की तरफ देखी... बताइए मुझे कुछ नही समझ आ रहा है... बेचारो से गलती तो हुई है... लेकिन हिम्मत कर आश्रम माफी मांगने आए है....
गुरुदेव ने बिना कुछ जवाब दिए... अंदर जाकर एक खत लिखा.... और अपने एक सेवक को देकर कहा... की इस खत को गांव पहुंचा दिया जाए... उन तीनो लडको से कहा आप जाइए... कल सुबह नौ बजे आश्रम आ जाना... इस पर कल बात होगी...
सेवक ने उस खत को गांव जाकर... गांव के मुखिया को वह खत दिया... और कहा की गुरुदेव ने भेजा है... जब तीनो गांव को लौट रहे थे... तो एक बोला यार कल गुरूदेव क्या फैसला करेंगे....
हा यार आज ही कर देते तो अच्छा रहता... गांव के लोगो को भी पता नही चलता... चलो कोई दिक्कत की बात नही है.... कल आकर मिलते है... बात करते हुए वह अपने गांव को जा रहे थे....
इधर मुखिया भी थोड़ा हैरान था... की गुरुदेव ने खत भेजा आज पहली बार... मुखिया ने जैसे ही खत को खोल पढना शुरू किया... वह हैरान हो गया... उसमे गुरुदेव ने लिखा था... की कल दस बजे गांव के सभी बुजुर्ग व्यक्ति... और पंचायत के सदस्य मेरे आश्रम मे आने का कष्ट करे... किसी गंभीर विषय पर चर्चा करना है... मुखिया ने ये बात अपने कुछ सदस्यो से बताया...
दादू गुरुदेव ने ऐसा खत पहली बार भेजा है... पता नही भाया कोई तो बडी बात जरूर है... मुखिया ने उस खत के अनुसार सभी गांव के घरो मे सूचना पहुचा दिया... सुबह करीब आठ बजे का समय था... तीनो लडके आश्रम की ओर चल दिए... आश्रम गांव से थोडा दूर था... सभी आश्रम को प्रस्थान किया... आश्रम पहुंचकर देखा तो गुरूदेव ध्यान मे लीन बैठे थे...
वह तीनो जमीन मे हाथ जोडकर बैठ गए... करीब दस बज गई.. रोहन की नजर पडी की आश्रम मे तो पूरे गांव के लोग आ रहे है... मनोज और राहुल भी हैरान हो गए... की लोग यहा क्यो आ गए... जगदीश ने देखा की मेरा बेटा यहा पहले से उपस्थित है... थोडी शंका हुई लेकिन अंदर ही अंदर गर्व महसूस हुआ... की शहर से अच्छी शिक्षा लेकर आया है मेरा बेटा...
सभी गांव के लोग गुरुदेव के सामने बैठ गए... जब गुरुदेव ध्यान से उठे... मुखिया ने आदर पूर्वक कहा गुरूदेव आज हम सभी को बुलाया है... सब ठीक तो है ना... गुरुदेव बोले सब ठीक तो है... लेकिन आप सभी को बुलाने के पीछे एक कारण है... सभी शांत बैठे गुरुदेव को सुन रहे थे... और सबसे ज्यादा डरे हुए वह तीन लडके थे... गुरुदेव बोले एक फैसला होना है...
उसमे सभी को आना उचित था.. गुरुदेव हम लोगो का फैसला तो आप ही करते हो... नही ये फैसला कुछ ऐसा है... जिससे आने वाली पीढी की एक नई दिशा देगा... इसलिए सभी का फैसला करना मैने उचित समझा... मुखिया बोला गुरुदेव बताए क्या बात है... गुरुदेव ने तीनो को खडा होने को कहा... मनोज को खडा देख जगदीश हैरान दिख रहा था...
फिर गुरूदेव ने बताया की गौरी पर अभद्रता करने वाले यही तीनो है... कल तीनो माफी मांगने मेरे आश्रम आए थे... मेने इन्हे कल ही माफ कर दिया था... लेकिन गांव वालो के सामने ये बात रखना उचित था... तभी जगदीश क्रोध मे बोला... गुरूदेव आपने इसे माफ कर दिया है... लेकिन मै इसे माफ नही करूंगा... गांव के मुखिया ने समझाया की जगदीश बच्चे है...
गलती हो जाती है... गांव की कमेटी ने आपस मे बात चीत किया... एक ने कहा की अगर इनको सजा नही दी गई... तो ऐसी हरकत गांव का कोई और भी लडका कर सकता है... थोडी देर बात चीत के दौरान ये फैसला किया... की इनको एक माह गांव से दूर जंगल मे रहे... अपना खाने पीने सोने की व्यवस्था स्वयं करे...
जगदीश ने भी किसी प्रकार की आपत्ति नही जताई... ओर अगले दिन तीनो को एक दूर जंगल मे छोड दिया गया... ये बात जब आस पास के गांव मे फैल गई... की इतनी छोटी गलती की ये सजा... फिर किसी ने ऐसा करने की हिम्मत नही की... कुछ समय बीतने पर... एक दिन गुरुदेव ने सावित्री से कहा... की हमारी बेटी अब शादी लायक हो गई है... तुम्हारा क्या विचार है...
हां अब उसके लिए भगवान एक अच्छा जीवन साथी खोज दे... ताकि हमारी बिटिया को कोई दिक्कत ना हो... गुरुदेव ने कहा तो मै फिर देखू अपनी बिटिया के लिए राजकुमार... सावित्री ने कहा जी हां बिल्कुल देखिए... इतना सुनते ही गौरी शरमाते हुए अंदर चली गई... गुरूदेव प्रसन्न बैठे थे... कल गुरूदेव दूर गांव जाने का फैसला किया...
सावित्री ने भी उनको खाना पैक करके दे दिया... ताकी देर हो जाए तो रास्ते मे खा लेंगे... गुरूदेव को चलते चलते साम हो गई थी... उन्हे एक पते पर जाना था... जहा एक साधु महात्मा का आश्रम है... जहा वो अपनी बिटिया के रिश्ते की बात करना था... लेकिन साम होने पर वह पास के गांव मे रूकना उचित समझा...
जब वह गांव गए... तो गांव के लोगो ने गुरूदेव के रूकने की अच्छी व्यवस्था कर दी... और कुछ लोग मिलने भी आए... की गुरूदेव से कुछ ग्यान मिलेगा... सभी लोग अपनी अपनी बात कर रहे थे... लेकिन एक गांव का व्यक्ति शांत बैठा था... दिखने मे ठीक ठाक व्यक्ति था... पर गुरूदेव से कुछ बोल नही रहा था... जब बहुत देर हो गई तो गुरूदेव बोले... शिष्य तुम बहुत परेशान से बैठे हो...
कोई समस्या है क्या... उस व्यक्ति का नाम मंगल सेन था... जिसकी गांव के बाहर एक हार्डवेयर की दुकान थी... उसकी एक दस साल की बेटी और एक बाइस साल का लडका था... मंगल सेन अपनी दुकान से कमाकर अपना घर चलाता था... थोडी बहुत खेती बाडी थी... तो कुछ समय वहा भी देता था...
गुरूदेव के पूछने पर मंगल सेन ने कहा... नही गुरूदेव कोई दिक्कत नही है... मै तो आप लोगो की बातो को ध्यान से सुन रहा था... गुरूदेव ने उसके चेहरे को पढ लिया... कोई तो परेशानी है इस व्यक्ति को... लेकिन इन सभी लोगो के कारण वह खुलकर बता नही रहा है... गुरूदेव बोले तो मंगल सेन आज आपको मेरा एक काम करना होगा... जी गुरूदेव आग्या कीजिए...
आज रात्रि का भोजन हमारा तुम्हारे घर से आएगा... और तुम लेकर आओगे... जैसी आपकी आग्या गुरूदेव... मंगल सेन अपने घर गया... और पत्नी से बोला गुरूदेव आए है हमारे गांव...
खाना हमारे घर से जाएगा... तुम जल्दी से कुछ अच्छा सा खाना बना दो... उसकी पत्नी ने प्रसन्नता पूर्वक अच्छा खाना बनाया...
कुछ समय बाद सभी गांव वासी अपने अपने घर को चले गए... इधर मंगल सेन गुरूदेव को खाना लेकर पहुचा... गुरूदेव ने प्रेम पूर्वक खाना ग्रहण किया... और इसके बाद मंगल सेन बर्तन लेकर जाने ही वाला था... की गुरूदेव बोले शिष्य जरा बैठो.... तुमसे बात करना है... मंगल सेन हाथ जोडकर बैठ गया... गुरूदेव बोले की तुम्हे कोई चिंता सता रही है...
मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है: गुरूदेव सब आपकी कृपा है: शिष्य जब तक तुम मुझे अपनी चिंता का कारण नही बताओगे... मै उसका समाधान कैसे करूंगा... बहुत हिम्मत जुटा कर मंगल सेन बोला... की गुरूदेव तीन साल पहले की बात है.... जब मेरे लडके ने बारहवीं पास की तो वह मुझसे बोला... की पापा मुझे बाहर पढाई करने जाना है........
मैने सोचा बेटा पढ-लिख जाएगा.... तो कुछ काम मिल जाएगा... मै यहा ज्यादा मेहनत कर करके उसकी पढाई लिखाई का पैसा दे रहा था... लेकिन गुरूदेव वह शहर मे किसी गलत संगत से बिगड गया है... गंदी गंदी गालियां देने लगा है... और नसा करने लगा है... किसी को गलत गलत कविताएं लिखा करता है... और जब भी मै उसे समझाता हूं...
तो बोलता है ये मजाक है पापा... आप नही समझोगे... कई बार मेरी पत्नी ने भी समझाया है... लेकिन वह सुधरने का नाम नही ले रहा है... गांव के लोग मुझे भी बुरा भला कहते है... की थोडे तो अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिया होता... तो आज ये ऐसा नही होता... गुरूदेव मै बहुत परेशान हो गया हूं... मुझे कुछ समझ नही आ रहा है...
गुरूदेव ने मुस्कुराते हुए कहा... कल उसे मेरे पास लेकर आना... मै उसे समझाऊंगा... मंगल सेन बोला गुरूदेव आपको ना वह कुछ ग़लत बोल दे... तो मै जीवन मे आपको मुह दिखाने के काबिल ना रहूं...
गुरूदेव बोले तुम चिंता मत करो... हमारा कर्तव्य है गलत रास्ते पर चलने वाले को सही मार्ग दर्शन देना... तुम उसे कल मेरे पास लेकर आओ... मंगल सेन ने कहा ठीक है...
और वह बर्तन लिए और अपने घर को चल दिया... मंगल सेन घर मे जाकर... ये सारी बात अपनी पत्नी से बताई... ये सुन पत्नी भी खुश हो गई... की गुरूदेव हमारे बेटे को जरूर समझा देंगे...
अगली सुबह मंगल सेन अपने बेटे के साथ गुरूदेव के पास जा रहा था... रास्ते मे बेटे ने पूछा कहा ले जा रहे हो पापा... आज मुझे अपने दोस्तो के साथ जाना था...
बेटा हमारे गुरूदेव आए है... तुम उनसे कभी मिले नही हो... आज उन्होने गांव मे प्रस्थान किया है... इसलिए उनसे मिलाने को ले जा रहा हूं... अरे यार पापा फिर कभी मिल लुंगा... बेटा वो हर किसी से नही मिलते... तुम्हे तो उन्होने स्वयं बुलाया है...
ये सुन प्रिंश खुश हो गया... यानी मुझसे उनको आज मिलना है... बातो बातो मे वह उनके पंडाल मे पहुंच गए.. मंगल सेन बोला गुरूदेव मेरा बेटा... आओ बेटा हमारे पास बैठो...
मंगल सेन हमे आपके बेटे से कुछ आपस मे बात करना है... आप कुछ समय बाद आइएगा... जो आग्या गुरूदेव... बेटा आप क्या करते हो... कुछ नही गुरूजी अभी पढाई पूरी हो गई तो ऐसे ही...
बेटा गांव के लोग तुमसे चिढते क्यो है... क्या बताऊं गुरूजी... यहा के लोग मजाक समझते ही नही है... मै जब शहर मे रहता था... तो हम दोस्त लोग खूब मजाक करते थे... बेटा गांव के लोग पागल होते है...
तुम तो खूब गालियां दिया करो... प्रिंश चौक कर गुरूजी को देखने लगा... गुरूजी आप ये क्या कह रहे हो... गुरूदेव बोले मैने सुना है कि तुम अच्छी कविताएं भी लिख लेते हो... नही गुरूजी वो तो ऐसे ही मजाक लिखता रहता हूं...
गुरूदेव बोले चलो मै तुमको एक कहानी सुनाता हूं... ध्यान से सुनना... ठीक है गुरूजी... एक बहुत बडे महाकवी थे जिनका नाम कालीदास था... कालीदास का एक ही महाकाव्य है जो अपूर्ण है पूरा नही हुआ... जिसका नाम है कुमार संभव... वह महाकाव्य को उस समय के राजा के पुत्र... कुमार के जन्मदिन पर दिया जाना था...
कालीदास दिन रात उसे लिख रहे थे... जिस महाकाव्य की बात कर रहा हूं... वह माता पार्वती की भगवान शंकर के विवाह पर अधारित है... कि कैसे कुमार पैदा हुए... भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय इसका ग्रंथ था...
कालीदास लिख रहे थे... की माता पार्वती ने कैसे अपर्णा व्रत किया... और कैसे उन्हे भगवान शंकर मिले... इसके बाद कैसे माता पार्वती और शंकर जी का विवाह हुआ...
यहा तक तो ठीक था... लेकिन जैसे ही कालीदास ने माता पार्वती और भगवान शंकर जी के.... शयनकक्ष का वर्णन प्रारंभ किया.. कहते है की ऊपर सरस्वती को माता ने बुलाकर पूछा... की ये कौन मूर्ख है जो माता पिता के अंतरंग बातो को यहा लिख रहा है... सरस्वती माता बोली की ये विश्व का सबसे बडा कवि है...
ये होगा कवि पर मै तुम्हे आदेश देती हूं... की आज के बाद ये एक शब्द ना लिख पाए... कालीदास पक्षाघात से मर गए... लेकिन उसके बाद एक लाइन ना लिख पाए... शब्द ब्रह्म है भगवान है... अगर इसका अपमान करोगे... तो सरस्वती तुम्हे एक दिन मिटा देगी... प्रिंश गुरूजी के मुंह से ये बात सुन हक्का बक्का सा रह गया...
और हाथ जोडकर और आंखे नम गुरूजी से बोला... गुरूजी मुझे बचा लो... मुझसे बहुत बडा पाप हो गया है... गुरूदेव बोले आज से माता पिता की आग्या का पालन करना... और मंदिर मे रोज जल चढाने जाना... और खूब भगवान का नाम जप करना है...
इसके बाद गुरूदेव ने अपना प्रस्थान रखा... इधर जब प्रिंश घर पहुंचा.... तो मां के सामने बैठकर रोने लगा... मां बोली बेटा क्या हुआ तुम रो क्यो रहे हो... मां मुझे माफ कर दो... अनजाने मे मुझसे बहुत बडी गलती हो गई है...
सुमन समझ गई की गुरूदेव ने मेरे बेटे को सही रास्ता दिखा दिया है... सुमन ने अपने पती को भी खुशखबरी दी... की हमारा बेटा सुधर गया... मंगल सेन तुरंत गुरूदेव के पास गया... लेकिन वहा पहुंचकर पता चला... की गुरूदेव ने आगे प्रस्थान कर लिया है...गुरूदेव अपने गंतव्य स्थान पर पहुच गए... तो उन्होने देखा की एक माता जी पूजा के लिए फूल तोड रही है... माते हम चंदपुरा गांव से कुछ दूरी पर हमारा आश्रम है... हम रिश्ते के सिलसिले मे आपके पास आए है... माता ने कहा महात्मन आइए बैठिए... गुरूदेव आश्रम के अंदर बैठ गए...
और थोडी देर बाद साधु महात्मा आए... और बोले कैसे आना हुआ महाराज जी... स्वामी जी सब आपकी कृपा है... थोडी देर बाद मातेश्वरी पानी लेकर आई... गुरूदेव ने पानी पिया... और फिर आगे रिश्ते की बात की गई... बात चीत के दौरान ही साधु का लडका... रामायण की किताब लिए चला आ रहा था...
गुरूदेव बोले की बालक कहा से आ रहे है... साधु महात्मा बोले आज पास के गांव मे रामायण का कार्यक्रम था... तो सुबह आज वहा गया था... लडके ने आदर पूर्वक प्रणाम किया... और कुछ बात चीत होती रही... गुरूदेव को बालक का स्वाभाव बहुत पसंद आया...
मन ही मन उन्होने बेटी का हाथ देना उचित समझा... साधु महात्मा बोले की किसी शुभ दिन हम आपके यहा आते है... और रिश्ता पक्का करते है... गुरूदेव ने कहा स्वामी जी का इंतजार रहेगा... और फिर वह अपने आश्रम को प्रस्थान किया... लौटते समय भी उन्हे साम हो गई थी...
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तो आज गुरूदेव को एक और गांव मे रूकना पडा... उस गांव के लोग भी गुरूदेव को अच्छे से जानते थे... तो जैसे गुरूदेव को देखा तो फौरन उनके रूकने की व्यवस्था की... और फिर रात को गांव के कुछ लोग उनके पास आए... की गुरू से कुछ ग्यान मिलेगा...
बातचीत के दौरान गुरूदेव को गांव के एक व्यक्ति ने बताया... गुरूदेव हमारे गांव मे छह माह पहले... दो भाइयो मे आपस मे कुछ झगडा होने के कारण... दोनो भाइयो ने जमीन मे हिस्सा बाट कर लिया... और घर मे एक दीवार खडी कर दी है... और बोलचाल बंद है... ये सुन गुरूदेव को थोडा बुरा लगा...
उन्होने फिर रामायण का एक प्रसंग सुनाया... की जब राजा दसरथ ने राम जी को चौदह वर्ष बनवास को भेजा... तो एक दिन राम लक्ष्मण और माता सीता... एक जंगल से गुजर रहे थे... जंगल के रास्ते थोडे अटपटे होते है... जब तीनो रास्ते से निकलकर एक स्थान पर पहुचे... जहा उन्हे रात बितानी थी...
लक्ष्मण जी ने रुकने की व्यवस्था की... रात्रि समय मे भगवान राम के पास वन देवी आई... और भगवान को प्रणाम किया... वन देवी बोली भगवान आज आप मेरे वन मे... मेरा तो वन पवित्र हो गया... आप आग्या दे मै सब व्यवस्था आपको कर देती हूं...
भगवान राम बोले देवी... हमे बहुत लम्बे समय तक यहा रहना है... हम किसी तरह अपने रुकने और जंगल से फल फूल खाकर समय बिता लेंगे... आप परेशान ना हो देवी... और कुछ मेरे लायक सेवा हो प्रभु... देवी हमारा एक काम आप जरूर कर दीजिए... आग्या दीजिए प्रभु...
हम जिस रास्ते से चलकर आए है... उसमे कांटे बहुत है उन्हे हटा दीजिए... वन देवी ने एक पल मे सारा रास्ता साफ कर दिया... लेकिन देवी के मन मे एक प्रश्न घूम रहा था... भगवान राम से पूछा प्रभु... इस रास्ते से आप तो चलकर आ गए हो... अब इन कांटो को हटाने का क्या फायदा...
भगवान राम बोले की मै तो रास्ते से आ गया हूं... मुझे जो कांटे लगे है... मै उन्हे सहन कर लूंगा... लेकिन मुझे खोजते खोजते मेरा भाई भरत आएगा... उसे ना कोई दिक्कत हो... वन देवी बोली क्या आपका भाई इतना कमजोर है... की कांटे भी नही सहन कर सकता... भगवान राम बोले देवी... मेरा भाई बहुत मजबूत है...
उसके छाती से तो इंद्र का बज्र भी टकराकर टूट जाए... लेकिन अगर उसको एक कांटा लग गया... तो वह ये सोचकर टूट जाएगा... की मेरे कारण मेरे भइया को इन कांटों को झेलना पडा है... फिर गुरूदेव ने बताया... की भरत लक्ष्मण जैसे भाई पाने के लिए... पहले खुद राम बनना पड़ता है...
ये प्रसंग सुन बगल मे बैठा एक व्यक्ति रोने लगा... गुरूदेव बोले क्या हुआ शिष्य... तुम रो क्यों रहे हो... एक और व्यक्ति ने बताया... गुरूदेव इसने ही अपने बडे भाई से छोटी मोटी चीजो मे झगडा किया था... गुरूदेव मुझसे गलती हो गई... अब क्या पता मेरा भाई मुझे माफ करता है कि नही...
गुरूदेव बोले भाई भाई का रिश्ता ही कुछ अलग होता है... तुमको कल अपने भाई के पास जाकर... उनके चरणो मे गिरकर माफी मांग लेना... वो जरुर माफ़ कर देंगे... दूसरे दिन सुबह गुरूदेव अपने आश्रम को प्रस्थान किया... इधर रमेश सुबह सुबह अपने भाई के घर की तरफ जा रहा था... बलदेव यह देख थोडा हैरान था...
की आज मेरा भाई मेरे घर क्यो आ रहा है... रमेश बडे भाई बलदेव के पास घुटनो के बल बैठकर... हाथ जोडकर माफ़ी मांगने लगा... ये देख बलदेव का दिल सहज हो गया... बोला छोटे उठ मै तो तुझसे कभी ईर्ष्या की ही नही... भइया क्या सच मे आपने मुझे माफ़ कर दिया... हा मेरे भाई माफ कर दिया... ये सुन रमेश की खुशी का ठिकाना ना रहा... ( अगले भाग का इंतजार करना )
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