जब दौलत के बावजूद नहीं मिली सेहत...
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एक गांव था ... और उस गांव का एक बडा जमींदार ठाकुर साहब थे ... जिनके पास धन-दौलत, जमीन-जायदाद , सब कुछ था ... बस नही था तो सेहत का सुकून ... कई वर्षो से बीमार चल रहे थे ... देश-विदेश के डॉक्टर वैद्य, हकीम ... किसी को नही छोडा ... टोने-टोटके, पूजा-पाठ ... सब कुछ किया ... मगर बीमारी कम होने का नाम ही नही ले रही थी ... बीमारी क्या थी ...
हर बार मल त्याग करते समय ... खून बहता था ... जलन होती थी ... इतना कि जैसे प्राण निकल जाए ... दिन-ब-दिन हालत बिगडती जा रही थी ... उसी गांव मे एक दिन एक संत पधारे ... लोग दर्शन को उमड पडे ... ठाकुर साहब भी किसी तरह उन संत के पास पहुचे ... प्रणाम किया और कहा महाराज ... मै इस गांव का जमींदार हूं ... सैकडो बीघा जमीन है ... धन दौलत सब कुछ है ...
पर एक ऐसी बीमारी है ... जो किसी से ठीक नही हो रही ... आप कृपा कीजिए महाराज ... संत शांत हो गए ... आंखे बंद की .... कुछ देर मौन मे बैठे रहे ... फिर बोले की ठाकुर साहब बुरा मत मानना ... एक बात पूछूं ... ठाकुर ने कहा पूछिए महाराज बिलकुल ... संत बोले ... क्या तुमने कभी किसी का दिल इतना दुखाया ... कि उसने तुम्हे जी भरके बद्दुआ दी हो ... कभी किसी की रोटी छीनी हो ...
संत की सीख – हक लौटाओ, आत्मा पवित्र करो...
किसी का हिस्सा दबाया हो ... किसी बेबस को तडपाया हो ... ठाकुर थोडा चौके हुए बैठे रहे ... नही बाबा जहां तक मुझे याद है ... मैने कभी किसी का बुरा नही किया ... ध्यान से सोचो ठाकुर साहब ... कोई ऐसा रिश्ता ... कोई ऐसा हक ... जो आज भी तुमने दबा रखा हो ... अब ठाकुर चुप हो गया ... चेहरे पर अपराधबोध था ... फिर धीमे स्वर मे बोला ...
जी महात्मा मेरी एक विधवा भाभी है ... वो अपने हिस्से की जमीन मांगती थी ... मैने नही दी ... ये सोचकर कि कल को अपने मायके वालो को दे देगी ... संत मुस्कुराए ... यही है तेरे रोग की जड ... आज से ही उसी भाभी को हर महीने सौ रुपए भेजना शुरू कर दो ... और देखना कैसे तेरे भीतर का रोग भी खुद-ब-खुद चला जाएगा ... यह उस समय की बात है … जब सौ रूपए मे पूरा परिवार पल जाता था ...
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ठाकुर ने संत की बात मानी ... और हर महीने अपनी विधवा भाभी को ... कुछ पैसे भेजने लगा ... कुछ हफ्तो बाद वो फिर संत के पास आया ... चेहरे पर थोडी राहत थी ... महाराज मै अब पचहत्तर प्रतिशत ठीक हूं ...संत मुस्कुराए नही ... और गंभीर होकर पूछा ... कितने रुपये भेजते हो ... महात्मा जी अभी मे उनको पचहत्तर रुपये देता हूं ... संत ने गहरी सांस ली और कहा ...
इसीलिए तो तेरा रोग भी सिर्फ पचहत्तर प्रतिशत ठीक हुआ है ... जो उसका पूरा हक है ... उसे पूरा दो ... इज़्ज़त से उसे गांव बुलाओ ....
और जो कुछ उसका है ... उसे लौटा दो ... वो अपने हिस्से को जैसे चाहे खर्च करे ... जिसे चाहे दे दे ... वो उसकी मिल्कियत है ... तेरा उस पर कोई हक नही ... संत ने वो बात कही ... जिसने ठाकुर की आत्मा को झकझोर दिया ... वो विधवा भाभी कितने सालो से रो रही थी ...
कितनी राते जलते हुए काटी होगी उसने … इसीलिए तो तुझे भी हर रोज जलन होती है ... सोचो ठाकुर मरने के बाद साथ क्या जाएगा ... ठाकुर की आंखो मे पछतावे के आंसू थे ... वो तुरंत उठा गांव आया ... भाभी और उसके मायके वालो को बुलाया ... सारा गांव इकठ्ठा हुआ ... और सबके सामने उसने अपनी भाभी के पैर छूकर माफी मांगी ...
बहन, मुझसे बहुत बडा अन्याय हुआ है … तेरा हक तुझसे छीनकर ... आज मै सब लौटा रहा हूं ... भाभी की आंखे भी भर आई … लेकिन उसने उसे माफ कर दिया ... गले से लगाकर और बोली ... ईश्वर तुम्हे दीर्घायु दे भाई ... अब तू सच मे बडा बन गया है ... और कुछ ही दिनो मे ... ठाकुर का रोग पूरी तरह समाप्त हो गया ... अगर आपको भी कोई असाध्य रोग है ...
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कोई अजीब सी जलन ... कोई बेबसी या कोई बेचैनी ... तो एक बार जरूर सोचिए ... कही किसी का हक तो नही छीना ... किसी मासूम की रोटी तो नही छीन ली ... किसी की पीठ मे चुपचाप छुरा तो नही घोंपा ... जो आज तक बोल नही पाया ... मगर उसका दिल रोता रहा … और तुम्हारे कर्म बीमारियां बन गए ... परमात्मा की लाठी बेआवाज़ होती है ... मगर चलती जरूर है ... जो भीतर से साफ हो ... उसे ऊपरवाला खुद अपना इलाज देता है ...
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👉 सच्ची शांति तभी मिलेगी जब किसी का हक न दबे।
👉 पवित्र आत्मा ही स्वस्थ जीवन का सबसे बड़ा इलाज है।