कंजूस ब्राह्मण और उसकी पत्नी की कथा – पुरंदरपुर की सीख देने वाली सच्ची कहानी

🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 01:

 पुरंदरपुर का ब्राह्मण – जो वैश्य जैसा व्यवहार करता था...

एक गांव का खूबसूरत सीन

हमारी कथा की शुरुआत... पूणे के पास एक गांव पुरंदरपुर से होती है... वहा एक ब्राम्हण रहते थे... स्वरूप ब्राह्मणो का था... स्वभाव वैश्यो का था... उनका एक व्यापार का काम था... वह लोगो को ब्याज पर धन दिया करते थे... और ज्यादा समय अपने गल्ले पर बैठते थे... ब्राह्मण का नियम होता है...

संध्या उपासना करनी चाहिए... यज्ञ करना चाहिए... अध्ययन करना चाहिए... ग्रंथों का अवलोकन करना चाहिए... पर ये ब्राह्मण कुछ नही करते थे... जब वह सुबह उठते थे... तो एक तिलक लगाते... और चल देते अपनी दुकान को... लेकिन इन सब के साथ वह बहुत कंजूस थे...

भगवान की कृपा से उनके पास... ब्याज का इतना धन आता था... की वह पूरे गांव को... अकेले भोजन करा सकते थे... लेकिन कभी किसी को दान का एक रूपया नही दिया करते थे... उनकी पत्नी का नाम था सरस्वती देवी... जब उनका ब्याह हुआ था... तो उनके पिताजी ने यही देखकर व्याह किया था...

सरस्वती देवी का जब व्याह हुआ...

एक दुल्हन जो मंडप के पास खडी है

की ये बहुत धनवान है... हमारी बेटी खुश रहेगी... उसके माता पिता ने... खूब धूम धाम से ब्याह किया था... और खूब सारा सोन चांदी बेटी को दिया... जब वह दुल्हन की तरह सजकर आई थी... और अगले ही दिन जब ब्राह्मण देव उठे... तो तुरंत अपनी पत्नी से कहा... देवी सुनो...

सबले गहने उतारो अपने... पत्नी हल्की हैरान हुई... बोली क्यो क्या हुआ... ब्राह्मण बोले... देखो कितनी अच्छी नक्काशी की है इसमे... कितने अच्छे तुम्हारे कुंडल बने है... कितने अच्छे गले के हार बने है... हाथ के तुम्हारे बढिया कंगन है... रोज पहनोगी तो घिस जाएंगे... उतार दो सब...

पत्नी भी पतीव्रता नारी थी... अपने पती के आदेश को मान लिया... उसने भारी भारी समान सब उतार दिया... कान के कुंडल... नाक की बाली... गले का मंगल सूत्र रहने दिया... और हाथ के कंगन और पैरो की पायल रहने दी... लेकिन ब्राह्मण देवता जो थे... उनको वो भी अच्छे नही लगते थे... 

दुल्हन कमरे मे बिस्तर पर बैठी है

हर रोज अपनी पत्नी से कहते... क्यो इनको पहने हो... दे दो मै तिजोरी मे रख दूं... पत्नी कहती ये तो सौभाग्य है... ये तो पहनने दिया करिए... वह नाराज भाव से अपने गल्ले को चले जाते... करीब छह महिने हो गए... अब तो ये स्थिति मे आ गए... की पत्नी के हाथ का भोजन नही करते थे...

पत्नी जब खाना बनाकर उनके पास थाली लाती... तो वह खाने से इंकार कर देते... और वह भूखे अपने दुकान को निकल जाते... दुकान मे एक लडका लगा रखा था... उससे बोलते जाओ... अपने घर से खाना लेकर आओ... उनके अंदर दो भावनाएं थी... की पत्नी से नाराज भी है...

और ठीक है घर का खाना बचेगा... जब साम मे ब्राह्मण देवता घर आए... तब भी उसका चेहरा उतरा हुआ था... पत्नी उनके कमरे मे गई... बोली आप कैसे मांनोगे... 

एक महिला मुंह से कुछ बोलते हुए

ये सब उतार दो जो पहन रखे है... उसने कान के कुंडल भी उतार दिया... हाथ के कंगन भी उतार दिया... पायल भी उतार दिया... गले का मंगल सूत्र भी उतार दिया... सब बिल्कुल कोरी हो गई बेचारी... केवल नाक की छोटी सी नथ को पहने थी... बोली एक तो रहने दो...

 इससे पता तो चलो मै सौभाग्यवती हूं... ब्राह्मण देवता बोले ठीक है... उन्होने सारे गहने अपनी तिजोरी मे रख दिया... रात मे पत्नी से बोलते इस समय तो उतार दिया करो... कही खो ना जाए.. पत्नी हल्की नाराजगी से अपने बिस्तर पर लेट जाती...

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                                        भाग 02 

🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 02:

एक महिला अपने मांग मे सिंदूर भर रही है

सुबह वह अपने मांग मे सिंदूर... और एक छोटी बिंदी... और साधारण साडी पहनकर रहा करती... कभी कभार उनके यहा... शादी का नेवता आया करता था... तो वह एक दो दिन पहले ही... बीमारी का नाटक करने लगते थे... कि वहा जाएगी तो ये सारे जेवर पहनेगी...

मतलब सीधा है... की ब्राह्मण देवता हद से ज्यादा कंजूस थे... लेकिन ठाकुर जी की कृपा देखिए... कभी कभी ऐसे लोगो पर भी... ठाकुर जी रीझ जाते है... ठाकुर जी ने सोचा... इतना कंजूस तो हमने आज तक नही देखा... बहुत भयंकर कंजूस... लेकिन पत्नी तो वह एक भक्त थी...

जो नाम जप भी किया करती थी... और मंदिर भी जाया करती थी... ब्राह्मण देव कभी नही जाते थे... और ना ही अपनी पत्नी को कभी लेकर कही जाया करते थे... जहा तक की उसके मायके भी उसे छोडने नही जाया करते थे... की इसे लेकर जाऊंगा... तो फाल्तू का खर्चा होगा...

ठाकुर जी गए ब्राह्मण देवता के गल्ले पर...

एक वृद्ध व्यक्ति के पैर

सरस्वती देवी को उसके मायके वाले... उसको इधर उधर घुमा दिया करते थे... तभी ठाकुर जी ने सोचा... इसको देखूं एक बार... उन्होने एक दीन हीन ब्राह्मण का रूप धारण किया... फटी पुरानी धोती पहनी... पैरो मे कुछ नही... चेहरे पर झुर्रियां पडी थी... बिल्कुल गरीब ब्राह्मण बन गए...

और हाथ जोडकर इनके दुकान पर पहुच गए... ब्राह्मण देवता रूप देखकर समझ गए... देना वेना तो कुछ है नही... ये और आ गया... उन्होने अपने स्वाभाव से बोला... क्यो यहा क्यो आए हो... ठाकुर जी हाथ जोडकर बोले... बहुत गरीब ब्राह्मण हूं... मेरी बेटी का व्याह होने वाला है...

अपनी पुत्री का व्याह करना है मुझे... ब्याह के लिए मुझे कुछ धन चाहिए... आप तो‌ बहुत बडे धनवान सेठ है... कृपा कर दीजिए... कुछ मुझे दे दीजिए... आपकी मेहरबानी से मेरी बेटी का ब्याह हो जाएगा... या तो कुछ धन दे दीजिए... नही तो कुछ समाग्री दे दो...

ब्राह्मण देवता दुकान के अंदर कुर्सी पर बैठे है

मै कुछ ना कुछ व्यवस्था करूं... ब्राह्मण देवता के पास... पहले से ही ऐसे लोग आया करते थे... तो वह जबरजस्ती रफू वाले ही... कुर्ता पैजामा पहनकर जाया करते थे... ताकि कोई मांगने वाला आए... तो उसे दिखा सकूं... की देखो मेरे खुद कुर्ता फटा है... मै तुमको कहा से दूं...

तो वह ठाकुर जी को दिखाने लगे... की देखो मेरा कुर्ता फटा है... मै खुद अपने लिए नही खरीद पा रहा... मै तुमको कहा से दूं... ये सब बाहर का दिखावा है... मेरे पास कुछ नही है... मैने खुद दूसरो का धन ले रखा है.. भइया चलते बनो किसी और से मांगो...

भगवान करे, तुम्हारी बेटी का व्याह अच्छा हो... ठाकुर जी बोले, या तो मुझे धन दीजिए... नही तो मै यही बैठा रहूंगा... ब्राह्मण ने उनकी बात नही सुनी... ठाकुर जी जिद पे आ जाएं... तो उनसे कौन जीते... वह वही बैठ गए... बोले मुझे धन दो, मेरी बेटी का व्याह है... अंत मे ब्राह्मण हार कर बोला...

वृद्ध आदमी बैठा हुआ है, और कुछ बोल रहा है,

देखो मै ऐसे नही देता... कुछ लाओ... मेरे पास गिरवी रखो... और धन ले जाओ... तुम पे है कुछ देने के लिए... ठाकुर जी बोले नही मेरे पास कुछ नही है... मुझसे कुछ काम करा लो... आपके दुकान की साफ सफाई कर दूंगा... इतना कर सकता हूं... उसकी जरूरत नही है...

सब है नौकर चाकर मेरे पास... मै तुम्हे आखरी बार बोल रहा हूं... कोई मूल्यवान समाग्री दो... और पैसा ले जाओ... जब तुम्हारे पास पैसा हो जाए... तो अपनी समाग्री ले जाना... ठाकुर जी बोले ठीक है... मै जाता हूं... कुछ ढूंढ के लाता हूं... ठाकुर जी के जैसा कोई खिलाडी नही है...

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                                      भाग 03

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एक महिला घर बाहर खडी रो रही है,

ठाकुर जी गए... उस ब्राह्मण देवता के घर... वहा उनके द्वार पर खडे होकर रोने लगे... थोडी देर बाद सरस्वती देवी निकलकर आई... अरे ब्राह्मण देवता आप इतना रो क्यो रहे है... क्या बात है... छोटी सी मेरी लाली... अब बडी हो गई है... बहुत दिनो से वर खोज रहा था... बडी मुश्किल से वर मिला है...

मुझे उसका व्याह करना है... बहुत जगहो से ठोकरे खाई है... मेरी किसी ने मदत नही की... अंत मे तुम्हारे पास आया हूं... अगर यहा भी नही मिला... बेटी को क्या मुंह दिखाऊंगा... मै यही प्राण त्याग दूंगा... सरस्वती देवी बडी भावुक हो गई... भक्त का यह स्वभाव है...

की वह दूसरे की पीडा देख ही नही सकता... सरस्वती देवी रोने लगी... आखे लाल पड गई... हाथ जोडकर बोली... भगवान अगर मुझमे समर्थ होती... तो मै पूरा घर आपको दे देती... पर मै क्या करूं... मेरे पतिदेव इतना प्रतिबंध लगाकर रखते है... मै स्वयं ऐसे रहती हूं... मै आपको क्या दूं... 

एक गरीब व्यक्ति हाथ मे नाक की कील लिए है,

ठाकुर जी चक्कर खाकर गिर पडे... हाय राम अब तो जहर खाना ही पडेगा... सरस्वती देवी बोली नही-नही भगवन ऐसा मत कीजिए... बोली मेरे पास एक ही चीज है... उसने तुरंत अपने नाक की कील को निकाला... और ठाकुर जी को दे दिया... बोली ये आप ले जाइए...

इससे थोडा बहुत आपको धन मिल जाएगा... स्वर्ण की है... बेटी का ब्याह तो नही कर पाएंगे... पर कुछ व्यवस्था तो हो जाएगी आपकी... ठाकुर जी ने उसे लिया... ठीक है बेटी... इससे कुछ तो व्यवस्था कर लूंगा... वहा से चले तो सीधे उस ब्राह्मण की दुकान गए... वहा जाकर बोले ये ले...

इसके बदले पइसा दे मुझको... तू कह रहा था कुछ लेकर आओ... फिर पैसे दूंगा... ये ले रख ले... और पइसा दे मुझको... ब्राह्मण देवता ने जैसे कील देखी... ये आपको कहा से मिली... बोले उससे तुझको क्या... तू तो पइसा दे... अब मै तेरे से भीख नही मांग रहा हूं... चीज रख के गिरवी... तब ले रहा हूं...

एक व्यक्ति अपनी दुकान के अंदर बैठा है, और हाथ मे नाक की कील लिए है,

ब्राह्मण फंस गया... तीन चार बार सोचे... तू मत सोच मुझे पइसा दे... उसने कील को तिजोरी मे रखा... और ठाकुर जी को पैसे दिया... ठाकुर जी ने पैसे लिया... और अपने रास्ते से निकल गए... ब्राह्मण देवता की क्रोध की सीमा ना रही... एक कील‌‌ पहनने को दिया... वो भी दान कर दिया...

वो तो कृपा है, की मैने सारे गहने उतरवा लिए, नही ये तो सब दान‌ कर दे, रुको इसको आज बताता हू, वह अपने घर को जाने लगे, उनकी दुकान का जो मुनीम था, वो सरस्वती देवी को बहुत मानता था, वो ब्राह्मण देवता से पहले ही दौडकर गया, वहा जाकर बोला मइया।। 

आज बचो आप, बोली क्यो, आपने कील दी थी किसी को, हां दी थी एक ब्राह्मण को, उसकी बेटी के व्याह के लिए, क्या हो गया, उसने वो कील आपके पती को ही दी है, और बदले मे ले गया रूपया, सरस्वती देवी हाय नाथ अब तो नही बचूंगी, वो बहुत मारेंगे।

महिला हाथ जोड़कर भगवान से कुछ कह रही है,

मईया वो बहुत क्रोध मे आ रहे है, दुकान बंद कर दिया है, आप बचो अब, सरस्वती देवी ने हाथ जोडकर भगवान को पुकारा, हे पांडूरंगा, हे विठ्ठल नाथ, हे ठाकुर जी, मेरी रक्षा करो, ये क्या हो गया।

आज पहली बार जीवन मे दान किया, वो एक ब्राह्मण अपनी हत्या करने को तुला था, तो मैने उसे दिया था, ये कैसा खेल किया भगवन, कैसे भी मेरे पती को रोको, सरस्वती देवी अपने पती से इतना डरती थी, की उसने तुरंत विष ले लिया।

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                                        भाग 04

🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 04:


एक धार्मिक किताब रखी है, जिसमें कुछ जीवन के चित्र उकेरे है,

उनकी मार पिटाई डांट नही सह सकती, इससे अच्छा तो मै अपने प्राण त्याग दूं, वही एक ठाकुर जी की मूर्ति रखी थी, उसी के पास जाकर बैठ गई, और बोली भगवान, मैने केवल उस ब्राह्मण की कन्या का व्याह हो जाए, इसलिए दान किया था, मेरे पती मुझे बहुत मारेंगे।

इसलिए मै‌ अपने प्राण त्याग रही हू, मुझे पता है, शास्त्रो और वेदो मे, आत्म हत्या अपराध है, लेकिन प्रभु इसके अलावा मेरे पास कोई उपाय नही है, वो विष का पान करने ही वाली थी, की ऊपर से वो कील, सीधे उस पात्र पर गिरी, वह अचंभित रह गई, क्या गिरा इसमे।

उसने अपनी ऊंगली से निकालकर देखा, वो वही नाक की कील थी, इतने मे ही, ब्राह्मण देवता का घर मे प्रवेश हुआ, उसने किमार को लगाया, और इधर उधर देखने लगा, की कुछ मारने को मिले, पत्नी सामने खडी थी, बोली कहिए, कहिऐ, आज कहूंगा नही, आज करूंगा।

भगवान ने दिखाया जब एक चमत्कार...

महिला अपने एक हाथ मे अंगूठी लिए है, और दूसरे हाथ से इशारा कर रही है,

तू बता तूने दान कैसे किया, बिना मुझसे पूछे, बोली मैने क्या दान किया, तेरे नाक की कील कहा है बता, पत्नी ने अपना हाथ आगे किया, बोली ये रही, ब्राह्मण ने उस कील को देखा, तेरे पास कहा से आई, मेरे पास ही थी, नही ये तेरे पास नही है, वो वहा रखी है तिजोरी मे भीतर।

उसकी चाभी मेरे पास है, तेरे पास कहा से आई, वो तो मेरे ही पास है, बहुत दिन से पहने थी, तो साफ करने को उतारा था, ऐसा हो ही नही सकता, मैने इसका मूल्य दिया है एक ब्राह्मण को, और ये मेरी तिजोरी मे रखी है, तू रूक यही रूक, मै अभी जाता हू।

कील को भी साथ मे ले गए, जैसे अपनी दुकान के अंदर गए, और अपनी तिजोरी को खोला, देखा तो वहा कील थी ही नही, ब्राह्मण ने सोचा ये कोई स्वप्न नही है, ये कोई अचम्भव नही है, ये कुछ और है, ब्राह्मण के नेत्र सजल हो गए, और जल्दी से घर गया।

एक लडकी के सिंदूर के अंदर एक अंगूठी रखी है,

बोले मुझे सच बताओ क्या हुआ था, पत्नी बोली सच बताऊं, हा देवी मुझे सच बताओ, बोली मैने ही उस ब्राह्मण को कील दिया था, वही ब्राह्मण जिसके कुर्ते फटे थे, जो वृद्ध सा था, हा उसी को दिया था, वो मुझे देकर गया था, और मैने इसे तिजोरी मे रखा।

फिर ये तेरे पास आई कैसे, मुझे जब पता चला, की आप क्रोध मे आएंगे, और मुझे डाटेंगे मारेंगे, तो मैने सोचा, की इससे अच्छा की मै प्राण त्याग दूं, मै पांडूरंगा के सामने विष लेकर पीने को हुई, इतने मे आप का घुसना हुआ।

और ऊपर से ना जाने कहा से, कील मेरे पात्र मे आकर गिरी, और वो कोई और नही, वही पांडूरंगा थे, उन्ही ने आकर ये सब लीला करके गए है, मैने जीवन भर यही सोचा, दान करूं, पुन्य करूं, सत्कर्म करूं, 

एक ब्राह्मण देवता घर के अंदर हल्के भावुक होकर खडे है,

दुनिया मे लोग धन कमाते है, और दान पुन्य करते है, लेकिन हमारे यहा स्वयं ठाकुर जी आए, और धन लेकर गए, और उसे दान किया, उस समय ब्राह्मण देवता ने सोचा, की मैने जीवन मे एक कार्य अच्छा नही किया, जीवन मे मैने ऐसा कुछ नही किया।

जिससे ठाकुर जी मुझसे प्रसन्न हो, मै इतना पापी... इतना अधर्मी... इतना आयोग्य... फिर भी ठाकुर जी ने मुझे इस योग्य समझा, और वह खुद मेरी दुकान पर आकर, याचना कर रहे थे, की मै कुछ उन्हे दे दूं, मै कितना बडा दुर्भाग्यशाली, की ठाकुर जी द्वार पर आए।

और मैंने कुछ नही दिया उनको... मेरी वजह से ठाकुर जी को परिश्रम करना पडा... उसी समय उस ब्राह्मण देवता ने सोचा, अब मै किसके लिए जीऊं, उसने अपनी दुकान को बेच दिया, और घर को भी बेच दिया, और अपनी पत्नी के साथ आ गए श्री पंढरपुर।

पती पत्नी दोनो मंदिर के अंदर बैठकर हाथ जोडकर रो रहे,

पंढरपुर आकर, उनके मंदिर के बाहर बैठकर बहुत रोए, याचना करने लगे नाथ, आप मेरी दुकान पर खडे हो गए आकर के, और मैने आपको इस प्रकार से दुत्कार दिया, और आप खडे रहे, मै अपनी कुर्सी पर बैठा रहा, हे प्रभु मुझसे बहुत बडा पाप हो गया है।

इसके बाद दोनों ने, अपना जीवन उनको समर्पित कर दिया... दोस्तो... मानव और परमात्मा मे क्या अंतर है, मानव हर गुणी, और ज्ञानी व्यक्ति मे भी, अवगुण निकाल लेता है... भगवान अत्यंत अवगुणी व्यक्ति मे भी, एक गुण देख लेते है, यही से हमारी कहानी का अंत हुआ।

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भगवान श्री कृष्ण घर के बाहर खडे बंशी बजा रहे है,

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