🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 01:
अद्भुत कथा श्री रसिक देव की...
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आज की कहानी हमारी रसिक देव जी की है, एक नर हरदेव थे, जो गोरेलाल ठाकुर जी की सेवा करते थे, मतलब वह गोरेलाल कुछ के मुख्य अर्चक थे, उनके कई सारे शिष्य थे, उन्ही मे से एक थे, रसिक जी, वह बहुत ही सरल स्वभाव के थे।
अन्य सभी शिष्यो की अपेक्षा वह अलग थे, इसलिए नर हरदेव जी के मन मे, हमेशा यह आता था, की गोरेलाल ठाकुर जी की सेवा का नेतृत्व, रसिक देव को दे दे, लेकिन फिर मन मे विचार किया, की मै परिक्षा ले लूं, ये वास्तव मे योग्य है, सेवा के लिए की नही
तभी दूसरे दिन नर हरदेव जी ने, दूसरे शिष्यो को बुलाया, उन सभी को अपने पास बैठाया, और कहा की सुनो, कल से तुम लोगो को एक अभिनय करना है, गुरूदेव कैसा अभिनय करना है, तुम लोगो को जबरदस्ती की शिकायत लेकर आना है, रसिक देव की मेरे पास
कभी अपना कोई वस्त्र फाड देना, और मुझसे आकर कहना, कि रसिक देव ने मेरा कुर्ता फाड दिया, कभी कोई समाग्री गिरा देना, और कहना की रसिक देव ने गिराया है, ये सुन सभी थोडा हैरान हुए, गुरुदेव ऐसा क्यो, जैसा हम कह रहे है, तुम सभी को वैसा ही करना है।
जब गुरूदेव ने परिक्षा लेना शुरू किया...
हमे रसिक देव की परिक्षा लेना है, अब रसिक देव का तो बहुत सरल सौम्य स्वभाव था, लेकिन गुरू परिक्षा जब लेते है, तो कई प्रकार से लेते है, उसमे उत्तम स्थान वही प्राप्त कर पाता है, जो उस काबिल हो, आज आप सभी को
ठाकुर जी की सेवा का अवसर, बहुत आसानी से मिल जाता है, किसी काल मे गुरूदेव बहुत परीक्षा लेकर, ठाकुर जी की सेवा का अवसर देते थे, यहा जब अगले दिन का समय हुआ, गुरूदेव आराम से आश्रम के बाहर, पत्थर पर बैठे ध्यान कर रहे थे
तभी उनका एक शिष्य आया, गुरूदेव रसिक देव को समझा लीजिए, इन्होने हमारा वस्त्र फाड दिया, रसिक देव जी वही बैठे थे, हाथ जोडकर बोले मैने कब फाडा, झूट मत बोलो तुमने ही फाडा है, तुमने जब हमारे वस्त्र को जोर से खीचा, तभी फट गया है
गुरुदेव देख लीजिए इनको, समझा लीजिए, अब रसिक का स्वाभाव ही ऐसा था, उसने तुरंत गुरूदेव से बोला, गुरूदेव गलती से हो गया होगा, ध्यान नही है, क्षमा चाहते है, अब अगली बार से नही होगा, ये सुन गुरूदेव ने हल्की स्माइल की
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अब यहा गुरूदेव दोनो बात कर रहे है, उसकी परीक्षा भी ले रहे है, और बता रहे है, उसकी सहनशीलता देखो, अब सभी अपने अपने काम मे लग जाते, जब अगले दिन का समय हुआ, तो एक शिष्य और आया,
बोला गुरूदेव मेरे पूरे आश्रम मे, रसिक देव ने पानी गिरा दिया है, रसिक देव ने चौक कर देखा, भ्राता ये क्या बोल रहे हो, मैने कब गिराया, तुम गुरूदेव के सामने झूड मत बोलो, जब तुमने दरवाजा खोला था, वही पास ही मेरा घडा, भरा हुआ रखा था, पूरे मेरे आश्रम मे पानी फैल गया है।
गुरूदेव इनको समझा लीजिए, हल्का नाराज निगाहो से, गुरूदेव ने रसिक को देखा, गुरुदेव क्षमा चाहता हूं, मेरी वजह से मेरे भ्राता को कष्ट सहना पडा, गुरुदेव मुझे माफ कर दो, अगली बार से नही होगा, अब वहा किसी तरह सब ठीक हुआ।