रसिक देव की परीक्षा – सहनशीलता और भक्ति की मिसाल | भाग 02

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                                      भाग - 02

गुरुदेव आश्रम के बाहर बैठे है,

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फिर सभी को गुरूदेव ग्यान प्रदान करने लगे, धीरे धीरे ऐसी स्थिति हो गई, की हर रोज ही रसिक देव की शिकायत, गुरूदेव के पास आने लगी, रसिक जी को भी लगने लगा, की मुझमे ही अपराध है, एक दिन गुरुदेव नाराज बैठे थे, बोले ये रसिक इधर आओ,

तुम्हारी बहुत शिकायते आ रही है, अब अगर एक भी शिकायत आई, तो हमे कठोर नियम लेना पडेगा, नही नही गुरुदेव मै‌ कुछ नही करूंगा, ठीक है हम उम्मीद रखते है, मन उदास और चिंतित होकर, रसिक देव चले जा रहे है, अपने कुटिया के अंदर बैठ गया, और सोचने लगा, 

मुझसे इतने अपराध क्यो हो रहे है, मेरे भ्राता कह रहे है, तो वह सही ही कह रहे होंगे, अब अगले दिन रसिक जी ने, कुएं के पास बढिया स्नान किया, और हाथ जोडकर खडे हो गए, आज मै यही खडा रहूंगा, पता नही कब अपराध बन जाए, 

पूरे दिन रसिक ने कुछ नही किया, यहा गुरुदेव के पास फिर शिकायत पहुच गई, देखिए गुरूदेव हमारे वस्त्र को रसिक देव ने, गीली मिट्टी मे फेक दिया, गुरुदेव के गुस्से की सीमा ना रही, तुरंत रसिक देव को बुलाया, 

रसिक जी हाथ जोडकर खडे है,

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रसिक देव डरे-डरे हाथ जोडकर, गुरूदेव के पास पहुचे, तुम्हारी रोज शिकायत आती है, रोज कोई ना कोई शिष्य तुम्हारी शिकायत करते है, बोले तुम आश्रम से निकल जाओ, रसिक देव के हाथ पैर कांप रहे है, और रो रहे है, गुरुदेव मैने अपराध किया है, 

उसका दंड आप मुझे, यही आश्रम मे ही दे दीजिए, लेकिन मुझे दूर मत कीजिए, मै आपको देखे वगैर रह नही पाऊंगा, एक बार को प्रिया प्रियतम के दर्शन ना हो, मुझे स्वीकार है, लेकिन मेरे गुरूदेव मुझे ना दिखे, ये मुझसे सहन नही होगा गुरूदेव, 

फिर भी उनके गुरूदेव ने बोला, की रसिक सुन, हमारी आग्या मान, और आश्रम छोडकर चला जा, और अभी जा, रसिक देव ने हाथ जोडकर गुरूदेव से कहा, गुरुदेव दूसरी बार कहना नही पडेगा, मै जा रहा हूं, पास ही खडे उनके सभी भाई, 

वो अंदर ही अंदर रो रहे है, क्योकि उन्हे पता है, रसिक देव ने कुछ किया ही नही, वो तो गुरूदेव करा रहे है, रसिक जी ने सभी गुरू भाईयो से माफी मांगी, मुझे माफ करना, मुझसे अंजाने मे गलती हो गई है, फिर वही गुरुदेव के चरणो की रज लेकर, 

रसिक जी को कुछ लोग समझा रहे है,

जब रसिक देव ने आश्रम को छोड़ा...

आश्रम को प्रणाम करके, और गोरेलाल ठाकुर जी को प्रणाम किया, और आश्रम से निकल गए, और यमुना के तट पर जाकर, वही बैठकर खूब रोए, बस सोच सोच कर रोए जा रहे है, एक दिन बीत गया, दो दिन बीत गए, तीन दिन बीत गए, 

लेकिन रसिक जी ने भोजन जल कुछ भी ग्रहण नही किया, रसिक देव को आस पास के जो लोग थे, वह उन्हे बहुत मानते थे, उनके पास आते उन्हे समझाते, लेकिन उनको कुछ फर्क नही पडता, जब कोई अत्यंत प्रेम करने वाला, आपसे नजर फेर लेता है, 

उस समय ऐसा लगता है, की असंख्य बाण मार दिया हो, रसिक देव की निष्ठा प्रिया प्रियतम मे है, लेकिन उससे कई गुना ज्यादा, अपने गुरूदेव मे है, और आज उन्ही ने अपने नजरो से दूर कर दिया, और वो भी तब, जब मैने कोई अपराध ही नही किया, 

एक व्यक्ति के शरीर पर असंख्य बाण लगे है,

उन्हे कुछ दिन लगे ठीक होने मे, जब उन्होने अपने आप को सम्भाल लिया, तो वही वृंदावन की परिक्रमा करते, और यमुना जी मे स्नान करते, पास ही बैठकर नाम जप करते, और अपने गुरूदेव का मन से चिंतन करते, 

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