एक राजा और सात रानियां | राजा रानी की कहानी?

राजा की चिंता और संतान की कामना...

एक राजा जो तलवार लिए खडा है, और King story

बहुत समय पहले की बात है। सीतापुर नाम का एक समृद्ध राज्य था, जहाँ एक न्यायप्रिय और दयालु राजा राज्य करता था। राजा अपनी प्रजा से अत्यंत प्रेम करता था, और सदा उनके कल्याण के लिए कार्य करता रहता था। राजा की छह रानियाँ थीं, किन्तु दुःख की बात यह थी, कि किसी भी रानी से उन्हे संतान की प्राप्ति नही हुई थी। 

समय बीतता गया, और राजा की चिंता बढती गई — "मेरे बाद इस राज्य को कौन संभालेगा?" राजा ने अनेक प्रयास किए। उसने सभी तीर्थों में जाकर पूजा की, मठों में दान दिया, यज्ञ कराए — परंतु फिर भी उसे संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ। एक दिन राजा शिकार पर निकले। 

जंगल में एक सुंदर हिरण दिखाई दिया, जिसे पकड़ने के प्रयास में राजा बहुत दूर तक उसके पीछे चले गए। धीरे-धीरे हिरण आँखों से ओझल हो गया। राजा ने चारो ओर देखा — हिरण कहीं नहीं था। अब दोपहर की धूप तेज थी, और गर्मी के कारण राजा को तीव्र प्यास लगने लगी। 

जंगल में शिकार और माया से मुलाक़ात...

एक राजा जंगल के रास्ते से चल रहे,

राजा ने सोचा, "कुछ दूर और चलता हूँ, शायद कहीं पानी मिल जाए..." जैसे ही राजा कुछ आगे बढ़े, एक नदी दिखाई दी। राजा ने राहत की सांस ली और नदी की ओर बढ़े, तभी अचानक एक आवाज आई — "आप कौन हैं? आपको दिखाई नहीं देता? मैं स्नान कर रही हूँ!" राजा चौंक गए। उन्होंने तुरंत सिर झुकाया और पीछे मुड़ते हुए बोले, "मुझे क्षमा करें, 

एक युवती नदी मे स्नान कर रही,

मैंने सच में नहीं देखा, कि कोई यहां स्नान कर रहा है।" नदी में स्नान कर रही युवती तुरंत बाहर निकली, जल्दी से अपने कपड़े पहने और राजा के पास आई। राजा ने पूछा "आप कौन हैं, वह बोली, "मेरा नाम माया है। मैं पास के गाँव की रहने वाली हूँ। मैं रोज इस जंगल में लकड़ियाँ और फल तोड़ने आती हूँ। यहीं पास में मेरी माँ के साथ मेरा छोटा सा घर है।" 

माया ने आगे कहा, "मैं जंगल से फल तोड़कर उन्हें बाजार में बेचती हूँ, जिससे हमारे जीवन यापन का साधन चलता है।" माया ने पूछा, “और आप कौन हैं? इस जंगल में क्या कर रहे हैं?” “मैं यहाँ शिकार करने आया था, लेकिन रास्ता भूल गया हूँ। क्या आप मुझे बाहर का रास्ता दिखा सकती हैं?”

माया बोली, “हाँ, मैं आपको रास्ता दिखा दूंगी। परंतु… आपने अभी तक अपना नाम नहीं बताया?" राजा हल्के से मुस्कराते हुए बोले, “अगली बार जब हम मिलेंगे, तब मैं आपको अपना परिचय दूँगा। लेकिन माया, क्या तुम यह तो बताओगी, कि अगली बार हमारी मुलाकात कहाँ होगी?” माया ने सरलता से कहा,

माया की सादगी और प्रभाव...

राजा एक युवती के सामने हाथ जोडकर खडे है,

“मैं रोज यहीं आती हूँ — इस नदी किनारे। अगर कभी मैं यहाँ न मिलूँ तो मेरे गाँव चले आइएगा। मैं वहाँ अवश्य मिल जाऊंगी।” राजा ने मुस्कराते हुए सिर हिलाया, लेकिन उसके मन में कुछ और ही चल रहा था। वह माया की सादगी, उसकी निश्छलता और सौंदर्य पर मोहित हो चुका था।

अपने महल लौटते समय, राजा बार-बार माया के बारे में सोचने लगे। "मेरी छह रानियाँ हैं, पर न जाने क्यों मेरा मन माया की ओर खिंच रहा है।" राजा ने यह सारी बात अपने मंत्री को बताई। "मंत्रीजी, मैं नहीं समझ पा रहा कि माया को देखकर मेरे मन में यह भाव क्यों जागा।" 

मंत्री ने गंभीरता से कहा, “महाराज, यदि वह कन्या आपको प्रिय लगती है और वह गुणी भी है, तो उसमें कुछ गलत नहीं है। हो सकता है कि उसी से हमारे राज्य को योग्य उत्तराधिकारी प्राप्त हो जाए।” राजा ने मंत्री की बात को गहराई से सोचा और बोले, “मुझे आपकी बात उचित लग रही है। कल ही हम माया से मिलने चलेंगे।”

जब जंगल मे माया नही मिली...

राजा और मंत्री आपस मे बात कर रहे है, जंगल के पास का सीन,

अगले दिन राजा और मंत्री माया से मिलने के लिए जंगल की उसी नदी के किनारे पहुँचे। उन्होंने बहुत देर तक खोजा — लेकिन माया वहाँ नहीं थी। राजा चिंतित होकर बोले, “मंत्रीजी, लगता है माया यहाँ से जा चुकी है। उसने कहा था, यदि वह यहाँ न मिले तो उसके गाँव चले जाना। हमें अब वहीं चलना चाहिए।” मंत्री ने सिर झुकाकर कहा, “जो आज्ञा, महाराज। चलिए, हम उसके गाँव चलते हैं।”

और मंत्री माया के गांव पहुचते है ... गाव के किनारे पहुचकर राजा ने ... एक ग्रामीण से पूछा ... भाई सुनो … हमे माया के घर जाना है ... क्या तुम हमे उसका घर दिखा सकते हो ... वह व्यक्ति बोला ... हाँ बाबूजी ... उसका घर तो यही सामने है ... वो टूटी-सी झोपडी जो पेड के नीचे है ... राजा और मंत्री माया के घर के बाहर जा खडे हुए ... राजा ने आवाज दी ...

एक गांव के घर के बाहर राजा और मंत्री खडे है, और उनके स्वागत के लिए कुछ लोग है,

माया ... बाहर आओ … देखो मै तुमसे मिलने आया हूं ... थोडी देर बाद माया झोपडी से बाहर निकली ... उसकी आंखो से आंसू झर-झर बह रहे थे ... राजा चौक गए ... माया क्या हुआ ... तुम रो क्यो रही हो ... तभी गांव के लोग धीरे-धीरे वहा इकट्ठा होने लगे ... दो अजनबियो को ... माया के घर के बाहर देखकर सभी चकित थे ... एक वृद्ध ग्रामीण आगे बढकर बोला ...

 बाबूजी इसके घर मे ... इसकी बूढी मां के सिवा कोई नही था … और वो भी चल बसी ... अब माया अकेली रह गई है ... आप ही बताइए ... यह रोए नही तो क्या करे ... राजा की आंखो मे करुणा ... और माया के लिए स्नेह उमड पडा ... माया चुपचाप सिर झुकाकर खडी थी ... और उसका दुख स्पष्ट झलक रहा था ... गांव के लोग अभी भी यह समझ नही पा रहे थे ... कि ये दो लोग कौन है ...

 तभी मंत्री ने घोषणा की ... आप सब ध्यान दे ... ये कोई सामान्य व्यक्ति नही है ... ये स्वयं सीतापुर राज्य के राजा है ... और मै इनका मंत्री हूं ... यह सुनते ही पूरे गांव मे खलबली मच गई ... लोगो की आंखे विस्मय और श्रद्धा से भर उठी ... एक वृद्ध महिला आगे बढकर बोली ... महाराज हमारे गांव आए है ... यह तो हमारे लिए सौभाग्य की बात है ...

गांव वालो ने राजा का आदरपूर्वक स्वागत किया ... किसी ने पानी लाकर दिया ... किसी ने आसन बिछाया ... राजा की नजरो मे सिर्फ माया ही थी ... और माया की आंखो मे ... राजा के लिए विश्वास धीरे-धीरे उभर रहा था ... राजा ने गांव के मुखिया से कहा ... मुखिया जी ... यदि आप लोगो को कोई आपत्ति न हो ... तो मै माया से विवाह करना चाहता हूं ...

एक गांव मे उत्साह जैसा माहौल

मुखिया जी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया ... महाराज हमे क्या आपत्ति हो सकती है ... यह तो हमारे गांव का सौभाग्य होगा ... कि हमारी बेटी राज्य की रानी बनेगी ... गांव वालो मे आनंद की लहर दौड पडी ... 

सभी ने पूरे गांव मे मिलकर विवाह की भव्य तैयारी की ... फूलो से माया का छोटा-सा घर सजाया गया ... ढोल-नगाडो की धुन गूंजने लगी ... राजा और माया का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ ... सभी ग्रामीणो की उपस्थिति मे ... मंत्रोच्चारो और मंगलगीतो के बीच ... 

माया ने राजा को वरमाला पहनाई .. विवाह के पश्चात राजा ने माया से कहा ... माया आज से तुम्हारा नाम राजलक्ष्मी होगा ... क्योकि तुम केवल मेरी रानी नही ... इस राज्य की लक्ष्मी हो ... राजा मंत्री और नई रानी राजलक्ष्मी के साथ ... महल की ओर लौट पडे ...

राजा रानी का विवाह

गांव वालो ने अश्रुपूरित आंखो से विदा दी ... उनकी बेटी अब रानी बनकर जा रही थी ... राज्य मे नई रानी के आगमन की सूचना ... पहले से पहुच चुकी थी ... महल के मुख्य द्वार को फूलो और पताकाओ से सजाया गया था ... ढोल शंख और रणभेरी की ध्वनि से वातावरण गूंज उठा ... 

छहो रानिया महल के द्वार पर खडी थी ... बाहरी तौर पर वे मुस्कराकर स्वागत कर रही थी ... परंतु भीतर ही भीतर उनके मन मे ईर्ष्या और क्रोध की ज्वाला धधक रही थी ... राजा का अधिकांश समय अब रानी राजलक्ष्मी के साथ बीतने लगा ...

 वह भोली मासूम और निस्वार्थ प्रेम करने वाली स्त्री थी ... उसे यह ज्ञात ही नही था ... कि बाकी रानिया उसे अपने सुख का शत्रु समझने लगी थी ... वह सभी रानियो को दीदी कहती ... उन्हे सम्मान देती ... परंतु वे उसे अपनाने का नाटक करती ... 

राजा अपनी रानी को महल मे प्रवेश

और पीठ पीछे षड्यंत्र रचती रहती ... समय बीतता गया ... राजा और राजलक्ष्मी के विवाह को एक वर्ष हो चुका था ... परंतु अभी भी उन्हे संतान की प्राप्ति नही हुई थी ... एक दिन मंत्री ने राजा से कहा ... महाराज राज्य के दक्षिणी छोर पर एक प्रसिद्ध महात्मा पधारे है ...

वे सिद्ध पुरुष है ... और लोगो की वर्षो की समस्याओ का समाधान कर चुके है ... राजा ने आशा भरी निगाहो से पूछा ... क्या वे हमारी संतान-सुख की समस्या भी हल कर सकते है ... मंत्री ने कहा ... क्यो न हम उन्हे आमंत्रित करे ... और इस विषय मे परामर्श ले ... राजा ने तुरंत सहमति दी ... हां मंत्रीजी कल ही उन्हे राजमहल बुलाइए ..

प्रेरणादायक एक कहानी - click here 

राजा हाथ जोड़कर महात्मा जी का स्वागत कर रहे है,

अगले ही दिन महात्मा जी राजमहल मे पधारे ... राजा स्वयं महल के मुख्य द्वार पर खडे होकर उनका स्वागत करने पहुचे ... फूलो की माला पहनाई गई ... चंदन तिलक लगाया गया ... और शाही आसन पर बिठाया गया ... राजा ने तुरंत अपनी सभी रानियो को दरबार मे बुलवाया ... दरबार मे शांत वातावरण था ...

सभी महात्मा जी के चमत्कारी व्यक्तित्व को निहार रहे थे ... महात्मा बोले ... महाराज मै कुछ दिनो तक आपके महल मे रुकना चाहता हूं ... राजा ने आदरपूर्वक कहा ... महात्मा जी ... यह हमारे लिए सौभाग्य होगा ... मंत्री जी ... इनके ठहरने की विशेष व्यवस्था कीजिए ...

और ध्यान रहे कि इन्हे किसी प्रकार का कष्ट न हो ... फिर राजा ने रानियो से कहा ... आप सभी रानियां महात्मा जी की सेवा करे ... यह बहुत पुण्य का कार्य है ... लेकिन जब-जब महात्मा जी महल मे कही निकलते ... छहो रानियां किसी-न-किसी बहाने से वहा से हट जाती ...

छोटी रानी महात्मा जी की सेवा कर रही है

कोई कहती ... सिर मे दर्द है ... तो कोई पूजा मे व्यस्त हूं ... पर सच यही था ... कि उनके मन मे ईर्ष्या और असंतोष घर कर चुका था ... केवल रानी राजलक्ष्मी ही महात्मा जी की सेवा मे समर्पित रही ... वह उनके लिए जल लाती ... उनको प्रसाद बनवाती ... उनके चरणो मे बैठकर भजन सुनती ...

उसका विनम्र स्वभाव और श्रद्धा देखकर ... महात्मा जी प्रसन्न हो उठे ... कुछ दिन बाद महात्मा जी के प्रस्थान का समय आया ... राजा ने सभी रानियो और दरबारियो को सभा मे बुलाया ... महात्मा जी ने सभी को आशीर्वाद दिया ... फिर रानी राजलक्ष्मी की ओर देखकर बोले ...

 बेटी तुमने मेरी सेवा मन से की है ... तुम्हारा मन निर्मल और भाव शुद्ध है ... मै तुम्हे आशीर्वाद देता हूं ... बहुत शीघ्र ही तुम्हे संतान की प्राप्ति होगी ... यह सुनकर राजा और रानी की आंखे भर आई ... वे दोनो हाथ जोडकर महात्मा जी के चरणो मे झुक गए ... राजा बोले महात्मा जी ... आपने हमारी वर्षो की चिंता हर ली ...

सूरदास का श्यामा श्याम से मिलन - click here 

महात्मा जी राजा रानी को आशीर्वाद देते हुए

हम आपके रिणी रहेंगे ... राजमहल मे उत्सव का वातावरण बन गया ... राजा और रानी के चेहरो पर आशा और आनंद की चमक थी ... परंतु बाकी छह रानियां ... अब और अधिक अशांत हो चुकी थी ... कुछ ही दिनो बाद ... रानी राजलक्ष्मी ने राजा से कहा ...

महाराज … मै आपको एक शुभ समाचार देना चाहती हूं … आप पिता बनने वाले है ... राजा एक पल के लिए स्तब्ध रह गए ... फिर उनकी आंखो मे चमक आ गई ... उन्होने प्रसन्नता से रानी का हाथ थाम लिया ... राजलक्ष्मी ... यह तो मेरे जीवन की सबसे बडी खुशी है ...

राजा ने पूरे राज्य मे ढिंढोरा पिटवा दिया ... नई रानी गर्भवती है ... अब हमारे वंश को उत्तराधिकारी मिलने जा रहा है ... राजा ने रानी की सेवा के लिए ... विशेष व्यवस्था करवाई ... चुने हुए अनुभवी सेवक-सेविकाएं ... रानी की देखभाल मे लगाई गई ...

रानी लेटी है, और कुछ दासियां उपस्थित है, वहा

राजमहल मे चिकित्सक ... वैद्य और दाईयो की टोली हर समय तैनात रहने लगी ... पूरे राज्य मे उत्सव जैसा वातावरण था ... मंदिरो मे पूजा-पाठ आरंभ हो गए ... नगरवासी एक-दूसरे को मिठाइयां बांटने लगे ... हर जगह सिर्फ एक ही बात थी ... राज्य को जल्द ही उत्तराधिकारी मिलने वाला है ...

लेकिन राजमहल के एक हिस्से मे ... खुशी की जगह जलन ने डेरा डाल लिया था ... छह बडी रानियां अब असहाय ... उपेक्षित और क्रोधित अनुभव कर रही थी ... वे आपस मे फुसफुसाते हुए कहती ... राजा तो पहले से ही उसी पर मोहित थे … अब जब उसका बच्चा होगा ... तो हमारा क्या होगा ...

 अगर यही चलता रहा ... तो हम सब एक दिन सिर्फ नाम की रानियां रह जाएंगी ... ईर्ष्या और चिंता के बीच उन्होने षड्यंत्र रचने शुरू किए ... कभी रानी की दवा बदलवाने की कोशिश की गई ... कभी रसोई मे गडबडी कराने की योजना बनी ... परंतु हर बार … कोई न कोई आकर उनके इरादो पर पानी फेर देता ...

जनाबाई की भक्ति की भक्ति, - click here 

छह रानियां का षड्यंत्र और दासी ने देखा

कभी मंत्री जी अचानक वही आ जाते ... कभी राजा स्वयं रानी से मिलने चले आते ... और कभी रानी की सच्ची सेवा मे लगी दाई ...उनका षड्यंत्र पहचान जाती, समय बीतता गया... रानी राजलक्ष्मी की गर्भावस्था का अंतिम महीना आ गया। अब रानी बहुत कमज़ोर महसूस करने लगीं — 

पर उनके चेहरे पर अद्भुत चमक थी। राजा दिन-रात रानी के पास समय बिताते, उसकी हर जरूरत का ध्यान रखते।सारे महल में सिर्फ एक ही प्रतीक्षा थी — “क्या उत्तराधिकारी पुत्र होगा या पुत्री?”“क्या इस संतान से राज्य का भाग्य बदलेगा?”

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