भक्त चंद्रहास की चरित्र...
यह कहानी केरल देश की है... जहा एक परम मेधावी... सुधार्मिक नाम के राजा राज करते थे... धर्म पूर्वक चलना... प्रजा का पालन करना... और भगवान का नाम जप करना... शास्त्र विधि से प्रतिकूल एक भी आचरण अपने जीवन मे नही किया... ऐसे ही दिन बीत रहे थे।
एक दिन उनके यहा महा भागवत चंद्रहास जी का जन्म होता है... यह महा भाग्यशाली मूल नक्षत्र मे पैदा हुए... लौकिक मे अमंगल माना जाता है... चंद्रहास के बचपन से ही... उनके मुख से रोते बोलते एक शब्द निकलता था... कृष्ण कृष्ण कृष्ण... सुधार्मिक राजा को बडा आनंद हुआ।
की हमारे यहा कोई महा भागवत पधारा है... क्योकि अबोध अवस्था से ही... कृष्ण कृष्ण नाम निकल रहा है... पूरे राज्य मे राजकुमार के खुशी का... उत्सव मनाया जा रहा है... राजा स्वयं एक भक्त थे... और उनके घर मे एक महा भक्त पधारा है... सभी तरफ आनंद की लहर चल रही थी।
"जब फ्लाइट में मिले 10 सैनिक, फिर जो हुआ वो दिल छू गया"
लेकिन नियती को कुछ और ही मंजूर था... ये आनंद ज्यादा देर नही चलने वाला था... शत्रु पक्ष के राजाओ ने मिलकर कहा... यही अवसर है आक्रमण कर दिया जाए... सभी ने केरलाधिपति का पूरा महल घेर लिया... कोई एक भी ना बचने पावे... सभी ने अपनी अपनी सेनाओ से महल को चारो तरफ से घेर लिया... इधर सभी असावधान थे... सभी आनंद मे थे... की हमारे राजा के यहा पुत्र हुआ है।
शत्रु पक्ष के राजाओ ने... पूरी तैयारी कर आक्रमण कर दिया... पूरे महल मे हा हा कार मच गया... राजा भी भयभीत हो गया... की अचानक राज्य मे हमला... वो कुछ कर पाते... लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी... सभी सेनाओ को मारा गया... और अंत मे राजा को भी मृत्यु दे दी गई... सभी को खोज खोज मारा जा रहा था।
राजमाता जिनके चंद्रहास पैदा हुए थे... उन्होने धाय मां को कहा... की मेरे पुत्र को बचाने मे तुम समर्थ हो... मै तो नही बचूंगी... मेरे पुत्र को बचाने मे सहायता करो... धाय मां ने विचार किया कैसे बचा सकती हूं... आस पास तो सब सैनिक घेरे हुए है... तत्काल उन्होने विचार किया।
धाय मां ने चंद्रहास को महल दुश्मन राजाओं से बचाया...
की अगर हम इनको राजकुमार की तरह ले जा रहे है, तो हम भी मारे जाएंगे... और इनको भी मार देंगे... धाय मां ने सेविका का रूप धारण किया... और एक डलिया लिया... और उसमे चंद्रहास को रखकर ऊपर से पत्ते डाल दिया... और सिर पर रखकर जाने लगी।
आगे सैनिक मिले उन्होने पूछा... इसमे क्या लिए हो... धाय मां ने कहा राजघराने के दोने पत्ते जो जूठे है, सैनिक ने भारी स्वर मे कहा हमे दिखाओ... उन्होने डलिया को नीचे किया... हां चलो निकलो यहां से जल्दी भागो... किसी तरह धाय मां ने उसे बचाकर महल से निकल गई।
और रास्ते से होते हुए कुन्तलपुर पहुंची... और वहा के मंत्री जो दृष्ट बुद्धि थे... उनसे प्रार्थना की... की मै सेवाकला मे बडी प्रवीण हूं... और ये मेरा पुत्र है, अगर आपकी कृपा हो जाए... तो कुछ समय हम आपके महल सेवा मे रहेंगे... और हमारे पुत्र का पालन पोषण हो जाएगा।
धाय मां ने लिया दूसरे राज्य मे आश्रय...
मंत्री ने उनकी परीक्षा लेना चाहा... विधी विधान से राज की सेवा मे प्रवीण दासी पाकर... मंत्री को अच्छा लगा... ठीक है आप रह सकती है... अभी चंद्रहास तीन वर्ष के थे... की धाय मा पधार गई... और इनके हर समय कृष्ण कृष्ण नाम चलता रहता था... धाय मां के जाने के बाद...
उन्हे दुलार करने वाला कोई नही था... और वह बडे ही रूप मे सुंदर थे... लेकिन कुछ ही समय बाद... उसे महल से बाहर निकाल दिया गया... क्योकि धाय मां की सेवा के कारण... उसे रखा गया था... अब चंद्रहास गलियो मे भटकते रहते... तीन वर्ष के सुंदर बालक।
चंद्रहास जी को जो भी माता बहन देखती... तो कोई उसे अच्छे से स्नान करा देती... तो कोई उसे अच्छे वस्त्र पहना देती... और अच्छे से उसे सजा देती... और कोई माता उसे गोद मे बैठाकर... भोजन भी करा दिया करती... परमहंसो जैसा जीवन कट रहा था।
और चंद्रहास जी हर समय कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, कहते रहते थे... चौदह भवनो मे जिनकी अव्याहक गती है... जो सबको देखते रहते है... श्री देवर्षि नारद जी... जब उन्होने सोचा कृष्ण, कृष्ण, बोलता है ये बालक... और इनका हरी के शिवाय कोई नही... एकांत मे चंद्रहास जी बैठे हुए थे... नारद जी उनके पास पधारे।
वह तो कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, मे मग्न थे... त्रिकालदर्शी नारद जी देखने लगे... इतना छोटा बालक प्रभु का स्मरण कर रहा है... नारद जी पास जाकर स्पर्श किया... और दुलार करते हुए बोले... प्रीय बालक अपनी आंखे खोलो... चंद्रहास जी ने आंख खोल देखा.. सामने देवर्षि नारद जी बैठे है।
जब देवर्षि नारद जी ने शालिग्राम दिया... Click here
देवर्षि नारद बोले... देखो हम तुमको एक अमोग वस्तु देते है... उन्होने शालिग्राम की एक छोटी मूर्ति दी... और बोले इसे धो कर पी लेना... और दिखाकर पा लेना... यही तुम्हारी सेवा की पद्धति है... चंद्रहास ने सोचा... की इनको भोग लगाने के लिए पात्र चाहिए... और इनको धुलने के लिए पात्र चाहिए...
उन्होने जैसे कोई पान को मुंह मे दबा लेता है... वैसे ही उन्होने शालिग्राम को मुंह मे दबा लिया... और मन से प्रसन्न रहते... की यहा खा भी लेंगे और स्नान भी हो जाएंगे... जब कोई भगवत मार्ग मे चलता है... तो भगवान ही आपको रास्ता दिखाते है... या कोई महापुरुष से मिला देते है...
ये जो दृष्ट बुद्धि लोग है... जो महल मे धाय मां को आश्रय दिया था... उसके एक पुत्र थे मदन जी... वे बडे ही भागवत थे... और एक पुत्री थी जिसका नाम विषया... वो बडी सुंदर थी... अभी छोटे अवस्था मे थे मदन जी... उनका स्वभाव भक्तो को भोजन पवाने का था...
एक बार उन्होने बडे बडे भक्तो और ब्राह्मणो को बुलवाया... जब भक्त और ब्राह्मण प्रसाद पा रहे थे... तो खेलते खेलते चंद्रहास जी वहा पहुंच गए... और उन्होने भी वहा प्रसाद पाया... वहा बडे बडे ब्राह्मणो मे एक ज्योतिषाचार्य थे... दृष्ट बुद्धि ने हाथ जोडकर प्रणाम किया...
ज्योतिषाचार्य जी ने जो बताया मंत्री हैरान... Click here
और अपने परिवार को प्रणाम करवाया... और कहा यह हमारी पुत्री है... दृष्ट बुद्धि ने कहा... महात्मा आप इनका हाथ देखकर बताए... की इनको वर कैसा मिलेगा... कैसा ऐश्वर्य होगा... महात्मा जी ने दृष्टि डाली... पास ही चंद्रहास बैठे भोजन पा रहे थे... ज्योतिषाचार्य बोले इसका वर वो रहा...
वो धाय का एक दासी का लडका... हमारी पुत्री का वर बने... मंत्री बोले शायद आपने ध्यान पूर्वक रेखा नही देखी... वो हमने देख लिया... यही है तुम्हारी पुत्री का वर... दृष्ट बुद्धि ने विचार किया... की ये भिखमंगा हमारी राजकुमारी का दूल्हा बनेगा... पंडित जी को दक्षिणा देकर विदा किया...
और सैनिको से कहा... की ये बाहर ना निकलने पावे... सम्राट महामंत्री ने सोचा... मेरी पुत्री का वर ये भिखमंगा कैसे हो सकता है... मन मे बहुत जलन हुई... ये तो बडी अपकीर्ति और दुर्भाग्य का विषय होगा... इसको मरवा डालते है... काम खतम हो जाएगा... मन मे निश्चय किया और जल्लादो को बुलवाया... और कहा की ये जो बालक पंगत मे भोजन पा रहा है...
जब मंत्री ने मारने का आदेश सुनाया... Click here
इसको जंगल मे ले जाओ... और इसको मारकर इसका कोई एक अंग हमारे पास लेकर आओ... मंत्री को सक था... की ये इतना सुन्दर और सुशील लग रहा है... की इसको देखकर कोई मार ही नही सकता... इसलिए उसने सर्त रखी थी... की हमे प्रमाण दिखाया जाए की मार दिया गया...
पांडालो ने हाथ पकडा और उसे ले गए जंगल... चंद्रहास का स्पर्श करते ही उनको ऐसा दुलार होने लगा... जैसे मां को अपने बच्चे से दुलार हो रहा है... जब वह जंगल मे उस बालक को बैठाया... और उसके रूप को देखा... तो दोनो आपस मे बात करने लगे...
की भाई जीवन हो गया लोगो को मारते हुए... इस बालक को देखो... इस दुष्ट बुद्धि मंत्री ने इसे मारने का आदेश दिया... भला इसने आखिर क्या बिगाडा है इनका... क्यो मारना चाहता है... राजा के आदेश से हमने कितनो को मारा है... लेकिन पता नही मेरे ह्रदय मे हिम्मत नही हो रही...
की इसको मार सकूं... दूसरे ने कहा की इसे नही मारोगे तो तुम मारे जाओगे... कुछ तो करना पडेगा... भाई इस छोटे से बालक से क्या किसी को नुक्सान... एकांत जंगल मे उसे ले गए... तुम जानते हो तुम्हे किस लिए लाए है... उस समय चंद्रहास जी की आयु पांच वर्ष की हो गई थी...
बोले मुझे पता नही की आप मुझे क्यो लाए हो... हम जल्लाद है...। तुम्हे मारने का हुक्म दृष्ट बुद्धि ने दिया है...। मारना तो पडेगा ही तुम्हे...। हमारी इच्छा नही है पर आदेश है...। लेकिन अंतिम बार हम पूछते है...। तुम्हे कुछ भी पसंद हो हमे बताओ...। हम उसे लाकर देंगे...। जो तुम्हे चाहिए...।
पर हमे वध करना होगा तुम्हारा...। चंद्रहास बोले मुझे कुछ नही चाहिए...। बस थोडा सा समय चाहिए...। यदि तुम हमे मारना ही चाहते हो...। तो थोडा हमारी पूजा है... हम उसे कर ले...। इसके बाद आप मार दीजिए....। उन्होने कहा हम तुम्हे समय देते है...। तुम किसी को पुकार भी सकते है...।
चंद्रहास ने अंतिम बार शालिग्राम को प्रणाम किया...
चंद्रहास जी बोले मुझे मृत्यु का भय नही...। मुझे कुछ समय दे दीजिए...। जल्लाद बोले ठीक है...। चंद्रहास जी वही बैठ गए...। मेरा तो यहा कोई नही है...। बस एक प्रभु ही है...। उन्होने अपने मुंह से शालिग्राम को निकाला...। और उनको सामने रखा...। हाथ जोडकर बोले प्रभु...
मुझे तो ग्यान नही....। आपकी सेवा कैसे की जाती है...। मै आपको मुख मे ही रखता हूं...। अब मेरे जीवन का अंत होने जा रहा है...। बस मै यही प्रार्थना करता हूं... मै आपके ही समीप पहुचूं...। आपसे अलग ना होने पाऊ...। कुछ देर श्याम सुंदर का चिंतन किया...। और फिर आंखे खोली...।
और इशारा किया मार दो मुझे...। ये सारा दृश्य देखकर एक जल्लाद वही बैठ गया...। भाई तुम मुझे ही मार दो...। भले ही वो दृष्ट बुद्धि मुझे मार दे...। मै इस बालक को नही मार पाऊंगा...।तभी एक जल्लाद बोला...। मुझे एक उपाय दिखाई दे रहा है...। इस बालक मे विशेषता तो है ही...।
बाएं पैर मे एक छटी ऊंगली भी है...। बोले इसको काट लेते है...। एक प्रमाण भी हो जाएगा... मै कसम भी खा लूंगा जिसकी भी खवाएगा...। की ये ऊंगली चंद्रहास की है...। बोल देंगे हमने उसे मार दिया...। और कौन इस बालक को ढूढेगा....। यही जंगल मे छोड देते है...।
जल्लादो ने ऐसा ही किया...।और महल मे जाकर... राजा को ऊंगली दिखा दी... की हमने उसका वध कर दिया है... राजा ने भी कोई सक नही किया... हमारे इमानदार जल्लाद है... शंसय का कोई सवाल नही था... चंद्रहास को वही छोडकर वो चले गए थे... अब उनकी ऊंगली से रक्त प्रवाह हो रहा है...
वह हाथ जोडकर हे कृष्ण... हे जगन्नाथ... हे वासुदेव... ऐसे नाम का उच्चारण कर रहे थे... उनके उच्चारण मे वो शक्ति थी... की जंगल के आस पास के जानवर उसके पास इकठ्ठा होने लगे... एक हुमा नाम का पंछी होता है... अगर उसके पंखे की छाया पड जाए...
उमा पंछी की एक खास विशेषता... Click here
तो चक्रवर्ती सम्राट का वैभव प्राप्त होता है... बहुत पंछी भी वहा आकर बैठ गए थे... वही चंद्रहास जी लेटकर कृष्ण, गोविंद, माधव, दामोदर, ऐसे नामो का उच्चारण कर रहे है... कुंडलपुर के अधीन ही एक चंदनवती नाम की राज नगरी थी... वहा के राजा के पुत्र नही हो रहा था...
उस राजा ने भी बहुत दान पुन्य आदि किए... चंदनवती के राजा कर दिया करते थे... संयोग की बात... वह कुंडलपुर राजा को कर देने जा रहे थे... और उनका निकलना... उसी जंगल से हो रहा था... रास्ते मे उन्होने देखा... की बहुत से मृग पंछी... ये घेरा बनाकर क्यो खडे है...
ये बीच मे क्या है इनके... राजा के मन मे तरह तरह विचार आ रहे थे... राजा दौडकर वहा पहुचे... सभी के बीच कौन है... तरह तरह के पंछी वहा मौजूद थे... उसी मे एक उमा नाम का पंछी... जो हिमालय आदि मे पाया जाता है...वो भी एक डाल पर बैठा था...
चंदनवती राजा ने स्वीकार किया अपना पुत्र... Click here
देखा एक बालक दिव्य तेजोमय और मुर्छा अवस्था मे लेटा है... राजा उसके नजदीक गए... तो उसकी ऊंगली कटी हुई थी... जिससे रक्त का प्रवाह हो रहा था... राजा ने गोद मे उठाया... और आनंदित हो गए... मेरा दान पुन्य सफल हुआ... ऐसा सुंदर बालक हमे मिला...
चंद्रहास जी को लेकर महल को आए... और ह्रदय मे भगवान का... बार बार कृपा प्रसाद मना रहे है... की मुझे भगवान ने एक पुत्र दिया है... पूरे महल मे खुशियां मनाई गई... और बहुत सारा धन को बांटा गया... जब चंद्रहास पूरी तरह से ठीक हुए..तो आनंदित होकर राजा उनके पास गए...
और बडे प्रेम से पूछा... की बेटा तुम्हारे माता पिता कौन है... चंद्रहास ने कहा श्री कृष्ण... आपके परिवार मे कौन है... श्री कृष्ण... मतलब तुम्हारा कोई नही है... नही है श्री कृष्ण... राजा समझ गए भगवान ने हमे महा भागवत पुत्र दिया है... पूरे राज्य मे उस पुत्र को लेकर... खुशियां मनाई जा रही थी..
राजा ने उसे... राजसिंहासन का उत्तराधिकारी के रूप मे स्वीकार किया... राजा ने अपने मन मे विचार किया... ऐसा प्रतापी भक्त हमारे यहां आया है... अब हमे किसी को कर देने की जरूरत नही है... अब जिन भी राजाओ के पास... बंधा हुआ हर महीने कर जाता था...
वो उन्होने नही दिया... जब बहुत लम्बे समय से... चंदनवती से कर नही गया... उस समय तक चंद्रहास किशोरा अवस्था मे प्रवेश हो गए थे... और उनके सुंदर विचार और ग्यान की... पूरे राज्य मे चर्चाएं होने लगी... सभी लोग महल मे आकर... चंद्रहास के मुख से भगवत प्राप्त करने का साधन सीखते...
और चंद्रहास सभी से कहते... जो कार्य है अपना उसे करो... लेकिन हर क्षण हर पल भगवान का स्मरण करो... उनसे एक पल के लिए विमुख नही होना... दूर खडे चंदनवती के राजा... पुत्र की मीठी और गहरी बातो को सुनकर... बडे आनंदित होते... और विचार करते... भगवान जिसे अपने सानिध्य मे रखते है... वह ना केवल अपना भला करता है... बल्कि अपने साथ कई लोगो का भला करता है...
पूरा राज्य भगवान मार्ग मे चलने लगा... Click here
पूरे राज्य मे हर घर मे पूजा पाठ होने लगे... और छोटे छोटे बच्चे कृष्ण कृष्ण का नाम जप करने लगे... मानो पूरा राज्य खुशी से झूम रहा हो... इधर कुछ समय बाद... सम्राट ने मंत्री को आदेश किया... की चंदनवती से कर आना बंद हो गया है...
क्या बात है... यदि वो अहांकार से युक्त हो... तो आक्रमण करके नष्ट करो... यदि कोई समस्या है... तो उसका सहयोग करो... बादशाह के आदेश से वहा दृष्ट बुद्धि पहुचे... तो युवराज पद पर चंद्रहास जी विराजमान... उन्होने काफी देर सोचा... की ये वही बालक है... मंत्री ने उसे पहचान लिया...
क्योकि धाय मां के साथ... काफी समय तक हमारे महल मे थे... तो उसे अच्छे से पहचानते थे... उन्होने विचार किया... इसे तो जल्लादो के हाथ मारने को दिया था... और उन्होने इसके मारने का हमे प्रमाण दिया था...
फिर यह यहा कैसे... मंत्री ने कहा पहली बात... इसे युवराज पद पर बैठालने से पहले... सम्राट को सूचना देनी चाहिए... दूसरी बात अभी तक तुमने कर नही दिया... जानते हो अगर सम्राट का भाव बदल गया... तो एक क्षण मे तुम्हारे राज्य को नष्ट कर दिया जाएगा...
चंदनवती के राजा ने हाथ जोडकर कहा... की महाराज आप ही हमारी रक्षा कर सकते हो... मंत्री की दृष्टि चंद्रहास पर थी... इसको मरवाना है... क्योकि पंडित ने बताया था... की यही तुम्हारी पुत्री का पती बनेगा... मंत्री ने कहा... यदि तुम चंद्रहास को सम्राट के पास भेज देते है...
और सम्राट निश्चित प्रसन्न हो जाएंगे... चंद्रहास को देखकर... तो तुम्हारे इस अपराध को क्षमा कर देंगे... राजा ने स्वीकार कर लिया... पहले लोग धर्म से चलते थे... कही भी आधर्म का लेस नही था... एक चिठ्ठी लिखी दृष्ट बुद्धि ने... और चंद्रहास से कहा इसे पढना नही...
मंत्री का चंद्रहास को मरवाने की नियत... Click here
मेरे पुत्र मदन को देना जाके... आगे का कार्य मदन आपको बताएगा... और इसे रास्ते मे कही खोलना नही... चंद्रहास ने वह चिठ्ठी को लिया... और कुंडलपुर के लिए चल दिया... कुंडलपुर के रास्ते मे ही एक बगीचा था... वहा का बहुत ही सुन्दर वातावरण था...
तरह तरह के फूल खिले है... और विभिन्न प्रकार के पेड पौधे लगे है... अपने घोडे को बांध दिया वृक्ष मे... वही पास ही बहुत निर्मल सरोवर का चल बहता था... वही जाकर जल का आचमन किया... थोडी देर बैठकर भगवान का ध्यान करते रहे... और वही लेट गए तो नींद आ गई...वह कुंडलपुर की राज वाटिका थी।
संयोग कि... उसी समय राजकुमारी अपनी सखियो के साथ घूमने आई... वह राजकुमारी उसी मंत्री की पुत्री थी... जैसे ही उनकी नजर घोडे पर पडी... यहा किसी का घोडा कैसे आ सकता है... लगता है कोई यात्री इसमे प्रवेश कर गया, उसे पता नही होगा... की ये राज वाटिका है... वह अपनी सहेलियो के साथ वही पहुच गई... जहा चंद्रहास सो रहे थे... बिल्कुल नव किशोर अवस्था
राजकुमारी ने चिठ्ठी मे नाम बदल दिया... Click here
राजकुमारी उसे देखती रह गई... इतना सुन्दर कैसे... पास मे उसे एक चिठ्ठी दिखाई दी... उसने धीरे से उस चिठ्ठी को उठाया... और खोलकर पढने लगी... उसमे लिखा था... ऐ मदन... बिना कुछ विचार किए... इसको जाते ही विष दे देना... क्या उचित है... क्या अनुचित... ये तुम्हे नही सोचना,
मेरे आदेश का पालन करना... राजकुमारी पढकर दुखी हो गई... पिताजी की बुद्धि खराब हो गई है... ऐसे सुंदर नव किशोर को... विष देने की बात की... राजकुमारी वही बैठकर चिंतित होने लगी।
मेरी सखियो के नाम हेमलता, शसीकला, माधुरी... तरह तरह के अच्छे अच्छे नाम थे... मुझे बडा चुभता था... की मेरा नाम पिताजी ने विषया क्यो रखा है... आज सार्थक हो गया... उसने अपने काजल से उस चिठ्ठी मे... विष के आगे.. या बना दिया... अब उस शब्द का अर्थ ही बदल गया।
जहा विष लिखा था... वहा विषया हो गया... राजकुमारी ने एक बार उसे फिर पढा... ए मदन... बिना कुछ विचार किए... इसे जाते ही विषया को दे देना... उसे बडी खुशी हुई... फिर उसने उस चिठ्ठी को वही रख दिया... और सभी सखियो के साथ महल को चली गई... जब कुछ समय बाद... चंद्रहास की नींद खुली,
उसने उस चिठ्ठी को लिया... और पूछते हुए मदन के पास पहुचे... चंद्रहास ने बताया... की आपके पिता ने चंदनवती से भेजा है... मदन ने उसे गले से लगाय... और उन्होने एक चिठ्ठी दी है... बोले की मदन को दे देना... मदन ने उस चिठ्ठी को लिया... और पढने लगा... उसने एक क्षण भी विचार नही किया।
तुरंत विषया को बुलाया... और राज्य के पंडित जी को बुलाया गया... पंडित ने दोनो के गुण देखे... और मदन से कहा... अभी ही अच्छा शुभ मुहूर्त है... राज्य महल का काम था... तुरंत महल मे सारी व्यवस्थाएं हुई... विषय को रानी की तरह सजाया गया... विषया पहले से ही उस पर मोहित हो गई थी।
सभी की उपस्थिति मे... दोनो ने अग्नि के सात फेरे लिए... लेकिन इधर दृष्ट बुद्धि ने सोचा... मदन ने अब तक उसे विष दे दिया होगा... अब हम चलते है तो सब सम्भाल लेंगे... सभी परेशान ना हो... यहा महल के पास जैसे ही मंत्री पहुचा... देखा तो पूरे महल मे सजावट थी।
बोले भइया सजावट काहे की है... महाराज आपके ही तो आदेश से है... आपने दूल्हा भेजा था... किसने कब कहा ऐसा... बोले वो मदन के पास चिठ्ठी रखी है... तुरंत क्रोध मे महल के अंदर गए... मदन से बोले तुम्हारी बुद्धि मारी गई है... क्या हमने पत्र मे लिखा... जब मंत्री ने दुबारा पत्र को पढा,
तो वह देख और भी हैरान हो गया... की मैने विष लिखा था... इसमे विषया कहा से आया... मदन बोला पिताजी... हम आपके एक भी वचन के विरुद्ध नही है... आपने कहा... बिना कुछ सोचे समझे विषया को दे देना... हम आपके आदेश के बध्द है... दृष्ट बुद्धि का खून खौल गया।
उसने सोचा... की चाहे मेरी बेटी विधवा ही क्यो ना रहे... मै इसे नही छोड़ूंगा... दृष्ट बुद्धि चंद्रहास के पास गया... और बोला... बहुत कृपा हुई आपकी हमारे दामाद बने... हमारे यहा की एक रीति है... हमारे नगर के बाहर एक देवी है... उसमे लडके का वर अकेले पूजा करके जाता है।
आपको हमारे कुल की... रीति का निर्वाह करना होगा... चंद्रहास बोले... हमारे लिए तो हर देवी देवता भगवत स्वारूप है... आपके लिए हम पूजने चले जाएंगे... पूजन की एक थाल को तैयार किया गया... और उधर कई बलवान सैनिको को भेजा,
एक देवी पूजने जो जा रहा है... तत्काल काट देना बचना नही चाहिए... नही तुम सब मारे जाओगे... जो आदेश महाराज... सभी बलवानो को देवी के आस पास पहुचा दिया... वहा के चक्रवर्ती सम्राट जो थे... बडे बडे विद्वान उनसे बात कर रहे थे।
अब आपका राज सिंघासन पर बैठना... राज के लिए अमंगल होगा, ऐसा समय आ रहा है, इस समय... चंद्रहास जी को सम्राट पद पर बैठाल दिया जाएगा, तो आगे अकाल नही होगा, बडा मंगल होगा, ये मुहुर्त आपका राजसिंहासन से हटने का है,
अब आपका राज सिंघासन पर बैठना... राज के लिए अमंगल होगा... ऐसा समय आ रहा है... इस समय... चंद्रहास जी को सम्राट पद पर बैठाल दिया जाएगा... तो आगे अकाल नही होगा... बडा मंगल होगा... ये मुहुर्त आपका राजसिंहासन से हटने का है।
राजा ने सोचा प्रजा का मंगल हो... राज्य का मंगल हो... हम तैयार है बिल्कुल... मदन वही बैठे थे... उनसे बोला तुम तुरंत जाओ... और तुम्हारे जो बहनोई बने है... उन्हे तुरंत लाओ... मदन वहा से भागते हुए पहुचे... चंद्रहास जी कहा है... वो तो अभी देवी पूजा को गए है...
मदन तुरंत वहा से भागा... और रास्ते मे ही चंद्रहास से मुलाकात हुई... बोले अभी आप महल मे जाओ... सम्राट पद का अभिषेक करवाओ... मै देवी पूजा कर लूंगा... ये तो घर की बात है... होता रहता है... मदन पूजा की थाली लेकर देवी पूजा को गया... और चंद्रहास महल को वापिस हुआ...
इधर सम्राट सोच रहे... कि एक भगवत स्वारूप भक्त... और सुंदर तेजस्वी इस सिंघासन पर बैठेगा... तो इस राज्य का अमंगल नही होगा... सभी बडे आनंदित थे... इधर चंद्रहास का सम्राट पद पर अभिषेक हो रहा है... और उधर मदन देवी पूजा करने पहुचा... मंत्री ने पहले ही बोल रखा था...
जो आवे तत्काल मार देना... जैसे ही मदन वहा पहुचा... उन बलवान सैनिको ने बिना कुछ विचार किए... मदन की हत्या कर दी... मंत्री शुभ समाचार के लिए बैठा था... तभी उनके वीर बलवान सैनिक आकर उनको बताया... महाराज आपके पुत्र का वध हो गया है...
जब मंत्री के ही पुत्र का वध हो गया... Click here
मंत्री एक पल के लिए स्तब्ध रह गया... पुत्र का वध कैसे... सैनिक ने कहा... महाराज आपने कहा था... जो आए उसको मार देना... अरे वो तो चंद्रहास वहा गया था... उनका तो अभिषेक हो गया... सम्राट पद पे... उन्होने बताया... की तुम्हारे पुत्र को तो हमने ही काट डाला... आपके आदेश के अनुसार...
अब मंत्री छाती पीट पीटकर... माथा ठोक ठोक कर खूब रो रहा है... अब वह बार बार हाय मै कितना अभागी... मै कितना अभागी... कि अपने पुत्र को ही मरवा दिया... ये बात जब चंद्रहास जी को पता चली... की मृत्यु मेरी होनी थी... और मेरी जगह मदन के प्राण चले गए... नही ये नही हो सकता...
चंद्रहास तुरंत वहा पहुचे... और उसके ऊपर हाथ रखा... और भगवान का स्मरण किया... मदन फिर से जीवित हो गए... अब ये घटना उस दृष्ट बुद्धि को पता नही थी... उन्होने अपना सिर फोड फोड कर... अपनी हत्या कर ली... उनको जिलाकर लाए... फिर उनको जिलाया...
चंद्रहास के आगे हाथ जोडकर निशब्द बैठ गए... बोले पिताजी अब भगवान श्री कृष्ण का नाम जप करो... एक वो दिन था... इसके बाद उसने अपना पूरा जीवन भक्ति मार्ग को समर्पित कर दिया... इस कहानी मे एक बात समझ आती है...
जो भगवान के भक्त का अमंगल करता है... उसका मंगल कभी हो ही नही सकता... ये अमृत कहानी आपको कैसी लगी... हमे कमेंट करके जरूर बताना... और ऐसे ही भक्ति भरी कहानी पढ़ना पसंद करते हो... तो पेज को फोलो करना ना भूले... धन्यवाद...
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