इंद्र का अहंकार और ऋषि दुर्वासा का श्राप | लक्ष्मी कथा

 इंद्र का अहंकार और ऋषि दुर्वासा का श्राप

ऋषि दुर्वासा और बालक (फूलों की माला भेंट करते हुए)

एक बार धरती के कोने-कोने मे भ्रमण करते हुए ... रिषि दुर्वासा तप के तेज से चमकते हुए चल रहे थे ... चलते-चलते वे एक छोटे से गांव मे पहुंचे .... वहा उन्हे एक गरीब बालक मिला ... जो अत्यंत विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था ... उस बालक ने एक सुगंधित पुष्पमाला ऋषि को भेट की ... यह माला साधारण नही थी ... बल्कि इसमे दिव्य गुण थे ... रिषि दुर्वासा बालक के विनम्र स्वभाव ... और श्रद्धा से अत्यंत प्रसन्न हुए ... उन्होने उसे आशीर्वाद दिया और कहा ... यह माला अत्यंत शुभ है ... इसे मै किसी योग्य व्यक्ति को ही दूंगा ... 

इंद्र का अहंकार और माला का अपमान

इंद्र ऐरावत हाथी पर और माला का अपमान

इसके बाद रिषि दुर्वासा पहुंचे स्वर्गलोक ... वहा उनकी भेट हुई देवो के राजा इंद्र से ... जो ऐरावत हाथी पर सवार थे ... रत्नो से जडे वस्त्रो मे लिपटे ... और गर्व से भरे ...  रिषि ने सोचा ... इंद्र देवताओ के अधिपति है ... यह माला इन्हे देना उचित होगा ... उन्होने इंद्र को माला सौपते हुए कहा ... यह माला देवी लक्ष्मी के आशीर्वाद से भरी है ... इसे श्रद्धा से धारण करना ... यह तुम्हारे लिए मंगलकारी होगी ... लेकिन इंद्र अहंकार मे डूबे थे ... उन्होने न तो रिषि के भाव समझे .... न माला का महत्व ... उन्होने वह दिव्य माला ... 

ऋषि का श्राप और स्वर्ग का विनाश

दुर्वासा का श्राप और लक्ष्मी का स्वर्ग छोड़ना

अपने हाथी ऐरावत के गले मे डाल दी ... और यही से एक ऐसे संकट की शुरुआत हुई ... जिसने देवताओ तक की नींव को हिला दिया ... जैसे कोई आम फूल हो ... इंद्र के ऐरावत ने उस दिव्य माला को अपनी सूंड से उतारकर जमीन पर फेंक दिया ... और बेरहमी से कुचल दिया। यह दृश्य देखकर रिषि दुर्वासा का क्रोध ... आसमान को चीर गया ... इंद्र तूने न केवल मेरा ... बल्कि देवी लक्ष्मी का भी घोर अपमान किया है ... तेरे अहंकार ने तुझे अंधा कर दिया है ... इसलिए मै तुझे श्राप देता हूं ... देवी लक्ष्मी अब तुझे छोड देगी ... तेरा वैभव ... तेरी शक्ति ... तेरा ऐश्वर्य ... सब समाप्त हो जाएगा .... और स्वर्ग असुरो के अधीन चला जाएगा ... और जैसे ही श्राप पूरा हुआ ... दुर्वासा के वचनो की आग मे स्वर्ग जल उठा ... देवी लक्ष्मी स्वर्ग छोड गई ... देवताओ का तेज फीका पड गया ... असुरो ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया ... और इंद्र अपने ही लोक से निर्वासित हो गया ... हारे और टूटे हुए इंद्र व अन्य देवता ... भगवान विष्णु की शरण में पहुचे ... प्रभु हमारा उद्धार करे ... हमसे भूल हुई है ... भगवान विष्णु ने शांत भाव से कहा ... यह सब तुम्हारे घमंड का परिणाम है ... यदि लक्ष्मी को वापस पाना है ... तो तुम्हे समुद्र मंथन करना होगा ... और तभी एक ऐसा आयोजन हुआ ... जो युगो-युगो तक स्मरण किया जाएगा ... देवताओ और असुरो ने मिलकर समुद्र मंथन किया ... उस मंथन से निकले रत्न ... अमृत ... विष ... और अंत मे स्वयं देवी लक्ष्मी प्रकट हुई ... उनका रूप तेजस्वी था ... नेत्रो मे करुणा और चरणो मे संसार का कल्याण ...

समुद्र मंथन और लक्ष्मी की वापसी

समुद्र मंथन और लक्ष्मी प्रकट होती हैं

उन्होने भगवान विष्णु को अपना पति स्वीकार किया ... और फिर लौटी स्वर्गलोक ... लक्ष्मी के साथ लौटा वैभव ... और देवताओ की शक्ति फिर जाग उठी ... और असुरो की पराजय निश्चित हुई ... दोस्तो इस कथा से एक सत्य निकलता है ... अहंकार यदि किसी मे भी आ जाए ... तो ईश्वर भी विमुख हो जाते है ... और श्रद्धा ... भक्ति और विनम्रता ही लक्ष्मी को वश मे करती है ... ऐसी ही इंट्रेस्टिंग स्टोरी पढ़ना  पसंद करते हे, तो पेज को सब्सक्राइब करना ना भूले ... धन्यवाद .....

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