भक्ति की मूर्ति – संत जनाबाई की प्रेरक कथा | पहला भाग

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आठ वर्ष की जनाबाई अपने पिता के साथ पंढरपुर में भगवान विठ्ठल के दर्शन करती हुई"

                                   भाग 01 

जनाबाई का बचपन और पंढरपुर आगमन...

ये कहानी परम साध्वी, परम भक्ता जनाबाई की है, उनकी उम्र करीब आठ वर्ष की थी, वह अपने पिता के साथ पंढरपुर आई थी, वहा वह भक्त मंडली और लोगो को देखती, जो सेवा भाव से अपने जीवन मे बडे प्रसन्न थे, यही से उनके मन मे, सेवा और भक्ति की उमंग जाग गई।

और उसी आठ वर्ष की अवस्था मे, जनाबाई ने संत नामदेव जी महाराज के यहा, सेवकाई स्वीकार कर ली, वह एक बहुत ही गरीब घर से थी, माता पिता का जब शरीर पूरा हुआ, तो इनके हृदय मे एक बात आ गई, की मेरा जीवन प्रभु के लिए है, तभी से वह नामदेव की सेविका बन गई।

आगे चलकर श्री जनाबाई जी, नामदेव की दासी के रूप मे प्रसिद्ध हुई है, आपको बता दे, महाराष्ट्र मे जनाबाई जी का, बहुत ही आदर से नाम लिया जाता है, और बहुत ही महिमा मय पद भी है, और ऐसी इनके नाम की प्रीति हुई, नामदेव जी के प्रभाव से।

नामदेव के सामने हाथ जोडकर बैठी जनाबाई

संत नामदेव जी की सेवा का संकल्प...

की बडे बडे सिद्ध संत जन भी, इनका स्मरण करते थे, करीब दास जी जैसे सिद्ध संत, जनाबाई के चरणो मे प्रणाम करते थे, ये नामदेव जी की महिमा का प्रभाव है, उनका जन्म गोदावरी तट पर, गंगाखेडा नामक एक गांव मे हुआ था।

इनके पिता का नाम दमा, और माता का नाम करूंड था, बचपन मे ही इनकी मां पधार गई, और पिता जो थे, जो जनाबाई को विठ्ठल भगवान के दर्शन को लाए, वही उनका भी शरीर पूरा हुआ, और ये वही, नामदेव जी के चरणो मे समर्पित हो गई, इनके हृदय मे एक बात आई।

की प्रभु की प्राप्ति का उपाय एक ही है, कोई भक्त प्रसन्न हो जाए, इसलिए उन्होने सेवकाई स्वीकार कर ली, और अन्य आश्रय कोई रह नही गया था, नामदेव जी निरंतर भजन और नाम मे डूबे रहते थे, नामदेव जैसे महात्मा की सेवकाई मिल जाए।
जनाबाई मंदिर के प्रांगण में खडी है,

सेवा ही भक्ति का मार्ग – जनाबाई का समर्पण...

ये तो प्रभु की सेवकाई से भी बढकर है, जनाबाई हमेशा सोचती, की मै नामदेव जी को प्रसन्न कर लूं, जनाबाई जी नामदेव जी के, पूरे परिवार के कपडे धोना, पूरे परिवार के लिए आटा पीसना, सभी के लिए भोजन प्रसाद बनाना, वह हर समय सभी के लिए।

अपने प्राणो को समर्पित कर सेवा करती, सभी के बर्तन भी वही धोती थी, और झाड़ू पोछा आदी वह करती थी, उनकी सेवा मे एक बडा आनंद प्रकट होने लगा, जिस दिन नामदेव जी की दृष्टि मुझपर हो गई, तो उसी दिन मुझे भगवत साक्षात्कार हो जाएगा।

जनाबाई भी धीरे धीरे नाम जप करने लगी, निरंतर उसके मन मे भजन चलने लगा, इसलिए कहते है, की भगवत मार्ग के प्रेमी से यदि संग हो जाए, तो उसके साथ हमारा भी कल्याण हो जाएगा, जनाबाई को नाम स्मरण और प्रभु का चिंतन करने से।

जनाबाई घर के अंदर बैठी मुस्कुरा रही है

भाव और नामस्मरण की परम स्थिति...

उसको बडा आनंद आने लगा, कभी-कभी वह पोछा लगा रही होती, तो मन मे विकलता होने लगती, आंखो से आंसू निकलने लगते, भगवान विठ्ठल के प्रति, एक अलग भाव प्रकट होने लगा, जब कभी सेवा से अवसर मिलता, तो भगवान के पास जाती।

और उनके दर्शन कर, अंदर से बहुत खुशी होती तो नाचने लगती, एक दम विकलता होती तो रोने लगती, ये सब जनाबाई को, श्री नामदेव जी की सेवा से होने लगा, जनाबाई जी जब भी घर के कार्य करती।

जनाबाई नदी किनारे कपड़े धुल रही है

निष्कलंक सेवा में छिपा भगवत प्रेम...

सभी के कपडे धोती, सभी के लिए आटा पीसती, सभी को भोजन प्रसाद बनाती, और बर्तनो को पवित्र करना, इन सब को करने मे सावधानी ये रखती, की सेवा मे कोई त्रुटी ना हो, और नाम भी स्मरण होता रहे, इसके आगे की कहानी, हम अगले भाग मे प्रस्तुत करेंगे, तब तक के लिए जय श्री कृष्ण।

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🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 2:

                                 भाग 02 

जनाबाई घर के अंदर खडी है,

जनाबाई का भगवान विठ्ठल के प्रति प्रेम...

ऐसे ही कुछ दिन बीतते गए, अब जनाबाई बडी हो चुकी थी, कभी-कभी तो घर के कार्य करते करते, भावुक हो जाती, और बडी ही व्याकुल हो जाती, उसके अंदर भगवान के प्रति, एक आकर्षक बढता ही जा रहा था, हे विठ्ठल, हे गोविन्द, हे पांडूरंगा।

वह ऐसे नामो का उच्चारण करती, एसे ही जब एकादशी का दिन आता, तो नामदेव जी के यहा, रात्रि मे भक्त मंडली एकत्रित होती, और खूब भजन कीर्तन करते, कोई मृदंग बजा रहा है, कोई करताल बजा रहा है, कोई नृत्य करते हुए नाम कीर्तन कर रहा है।

और कई भक्त बैठकर, संतो की बाणी सुन कर आनंदित होते, पूरी रात्रि एकादशी की, नामदेव जी के यहा ऐसा कीर्तन होता, और जनाबाई जी, घर के सभी कार्य को करके, एकांत मे खडी रहती, बडे बडे भक्तो के भाव दसा को देखती, तो उसके ह्रदय मे और विकलता बढती।

जनाबाई प्रभु प्रेम मे डूबी है

जब नामदेव की सेवा मे त्रुटि हो गई...

संग कीर्तन के आनंद सागर मे, वह पूरी रात डूबी रहती, उसको पता भी नही चल पाता, की कितने कम समय मे, रात्रि व्यतीत हो गई, प्रातह काल होते ही, सभी भक्त मंडली अपने दिन चर्या को जाते, और जनाबाई बावरी होकर, ठाकुर जी के चिंतन मे पूरी तरह से तन्मय रहती।

ऐसे ही एक दिन एकादशी को, ऐसे आनंद मे डूबी, की सब भक्त कीर्तन करके चले गए, और ये डूबी ही रही, जब सूर्य उदय हो गया है, दिन निकल आया है, अब जनाबाई की चेतना जगी, उसने देखा, तो वह परेशान होने लगी, की नामदेव जी की जो सेवा है।

इसमे तो आज बहुत त्रुटी हो गई, कैसे पूर्ण सेवा हो पाएगी, सब के लिए आटा पीसना है, सब की सेवाएं करनी है, सब कुछ वह अकेले करती थी, और उसकी सबसे अच्छी बात ये थी, ऐसा नही था, की उसे करना ही है, जनाबाई जी उत्साहित होकर।

जनाबाई सभी के वस्त्र समेट रही है,

जब भगवान विठ्ठल आए एक रूप लेकर...

प्रसन्न मुद्रा मे सभी कार्य करती थी, उसने जल्दी जल्दी घबराकर सोचा, की पहला काम मै, सभी के वस्त्र को धुल कर लाती हूं, उसने सभी के वस्त्र को लिया, और नदी की ओर जल्दी जल्दी जाने लगी, और उसके दिमाग मे, ये भी चल रहा था, की सभी के पात्र भी पडे है।

उनको मार्जन करना है, और पानी भी भरना है, जल्दी से वस्त्र को धुलकर आती हूं, जैसे ही वह चंद्रभागा नदी के समीप पहुची, वह तो पहले से कई चिंताओ मे डूबी थी, आज तो बहुत विलम्ब हो गया, आज कैसे हम सब सेवा कर पाएंगे, इतना मन मे सोच रही थी। 

तभी सामने से एक वृद्ध मईया आई, उसने कहा, जनाबाई तू इतनी चिंता क्यो कर रही है, तू जा घर के और कार्य कर, ये नामदेव जी के परिवार के जो कपडे है, तुम मुझे दे दो, मै इनको धुल दूंगी, नही मईया आप क्यो करेंगी, आप का शरीर वृद्ध है।

वृद्ध महिला नदी किनारे पकड़े धुल रही है

भगवान ने कपड़े धुले नामदेव जी के घर के...

अरे नही, सच्ची सफाई धुलाई हम करना जानते है, पूरा जीवन हो गया, और पुत्री सुनो, जिसके वस्त्र हम धुलते है, उसके कपडे दुबारा मलिन नही होते, तुम्हारी तो अभी नई अवस्था है, मेरा तो पूरा जीवन हो गया, जनाबाई समझ नही पाई, बोली मेरे स्वामी की सेवा मे, आज बडी गडबडी हो गई। 

मै ऐसी भूल मे पड गई, की आज सेवा छूट गई, बुढिया ने कहा, तू चिंता मत कर, देखना मै ऐसे कपडे साफ करूंगी, वैसे तू नही कर पाएगी, जनाबाई तो पहले से चिंतित थी।

उस बुढिया के भरोसे, वही सारे कपडे छोडकर, तुरंत घर को गई, घर पहुचकर जो कार्य अत्यंत आवश्यक थे, जैसे पात्रो को मार्जन करना, शुद्ध सीतल जल को भरना, उसने जल्दी जल्दी सभी कार्य को पूर्ण किया, और फौरन नदी के पास आ गई।

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🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 3:

                                      भाग 03

एक महिला नदी किनारे कपड़े फैला रही है,

जब भगवान ने सारे कपडे धो दिए...

और उसने देखा, की वह मईया ने, सभी कपडो को धुल कर फैला दिया था, बुढिया बोली की तू चिंता मत कर, आनंद पूर्वक सेवा कर, जनाबाई देखकर हैरान थी, सारे कपडो को धुल दिया है, जनाबाई ने मईया से हाथ जोडकर कहा, की आप जैसी उदार तो, मुझे जीवन मे नही मिली।

हमारा तुम्हारा कोई परिचय नही, कोई स्वार्थ भावना नही, और आपने इतने ढेर सारे सब कपडे धो दिए, मुझे लगता है, आप ईश्वर स्वरूप ही है, और हमे लगता है, भगवान विठ्ठल ने ही आपको भेजा है, मईया मै आपका बहुत आभार मानती हूं, अरे पुत्री अपनो से कैसा अभार। 

मै तो आपकी ही हूं, तुम बिल्कुल चिंता मत करना, और महिला मुस्कुराते हुए जाने लगी, और फिर बोली पुत्री तुम्हे कभी भी जरूरत पडे, तो तुम मुझे बुला लेना, तुम केवल चिंतन करना, मै उपस्थित हो जाऊंगी, जनाबाई भाव मे डूब गई, क्योकि उस वृद्ध की मुस्कुराहट ने।

जनाबाई हाथ जोड़कर आनंद पूर्वक खडी है

वृद्ध की मुस्कुराहट और जनाबाई की व्याकुलता...

उसके ह्रदय मे आनंद का वर्धन किया, फिर उसने सोचा, मैने तो पूछा भी नही, तुम कहा रहती हो, तुम्हारा क्या नाम है, उसने कहा था की जब जरूरत पडे तो बुला लेना, मै कैसे बुलाऊंगी, उसने तुरंत इधर-उधर देखने लगी, लेकिन वह वृद्धा दिखाई नही दी।

उसने और थोडा इधर उधर चलके देखा, लेकिन वह कही नही दिखाई दी, थोडा ह्रदय मे विकलता होने लगी, की शरीर तो योवन की तरह नही था, की हवा की तरह भाग जाए, वो इतनी वृद्ध थी, अचानक कहा चली गई, और कौन हो सकती है।

फिर जनाबाई ने सभी कपडो को लिया, और अपने घर पहुची, पर ह्रदय मे व्याकुलता बहुत थी, आखिर वो थी कौन, और मुस्कुराहट से कैसा जादू कर गई, की मेरा चित्त बार बार उसका चिंतन कर रहा है, जनाबाई नामदेव जी के समीप गई, और पूरी घटना सुनाई।

जनाबाई नामदेव के सामने हाथ जोडकर बैठी है,

नामदेव जी ने बताया कौन थी वो...

नामदेव जी ने तत्काल जनाबाई से कहा, अरे और कोई नही था, वो तो विठ्ठल भगवान थे, तेरे को बडभागिनी बनाने को आए, जनाबाई तुम अहो भाग्य हो, कैसे ठाकुर जी की अनुग्रह दृष्टि तेरे ऊपर हुई, और तू समझ भी नही पाई, अब तो जनाबाई के ह्रदय मे, और प्रेम उमड पडा।

आए भी ऐसे छलिया रूप लेकर, मै आपको पहचान भी नही पाई, और प्रभु आपने मेरे लिए कष्ट सहा, अब तो वह जनाबाई रोए जा रही है, भगवान सदैव अपने भक्त के पीछे पीछे डोलते है, अब तो स्वयं मूर्तिमान प्रभु, जनाबाई के साथ चक्की पीसते आकर।

एक बार नही बहुत बार, जनाबाई प्रेम मे मगन होकर झाड़ू लगा रही है, और एक जगह एकत्रित कर रही है, और जब कूडा उठाने आई, तो देखा की प्रभु कूडा भर रहे है, और कभी कभी जनाबाई आटा पीस रही होती, तो वह पद गाते हुए भाव मे डूब जाती।

जनाबाई भाव मे डूबी और विठ्ठल भगवान चक्की चला रहे

भक्त के वश मे भगवान...

तो चक्की रूक जाती, तो ठाकुर जी स्वयं चक्की चलाते, कैसी भक्ति की अद्भुत महिमा, भक्त की भक्ति से प्रभु अधीन हो जाते है, जनाबाई मुस्कुराते हुए, धान कूट रही है, प्रभु उसके सामने खडे है, जनाबाई तो नामदेव की, अपने को समर्पित कर सेवा किया करती। 

इसलिए महान पुरुष कहते है, की सच्चे भक्त की अगर, कोई अपने तन मन से सेवा करता है, तो भगवान स्वयं उसकी सेवा मे, हर समय मदत करने आते है, अच्छे सुखी दिन चल रहे थे, ऐसे ही एक दिन भगवान विठ्ठल जी का, हीरो से जडा हार चोरी हो गया।

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🎧 इस कहानी को सुनें – भाग 4:

                                        भाग 04

जनाबाई विठ्ठल भगवान के दर्शन करने को जा रही है, मंदिर के अंदर का सीन,

और हर दिन जनाबाई, भगवान की सेवा करने आया करती थी, ऐसी कुछ लीला बनी, की सबको संदेह होने लगा, की यही सेवा मे उपस्थित थी, इसी ने भगवान का बेस कीमती आभूषण, चोरी कर लिया, धीरे धीरे ये बात फैलने लगी, हमेशा ऐसी लीला कही ना कही।

भक्त की परीक्षा मे होती है, अब आस पास के लोग और नगर के लोग, जनाबाई को कहने लगे, की ये वैसे तो बडी भक्ता है, देखो इसने कितने मासूमियत से भगवान का, ग्रीवा का हार चोरी कर लिया, इसके बाद सभी के संका को दूर करने के लिए, जनाबाई को सभा मे बुलाया गया।

और पूछा गया, की बताओ, आपने भगवान का हार चोरी किया है क्या, जनाबाई ने प्रेम पूर्वक उत्तर दिया, की मेरे प्राण धन भगवान विठ्ठल है, मै हमेशा उनको सुख पहुचाना चाहती हूं, मै ऐसा कार्य क्यो करूंगी, वह मेरे प्रभु है, मुझे हार चुराने की जरूरत क्या है। 

जनाबाई गली से पैदल चल रही हो, चेहरा उदास परेशान हो,

जब जनाबाई की बात किसी ने नही मानी...

कहते है ना भक्त की भावना को, कोई भक्त ही समझ सकता है, जनाबाई ने कहा, मै सपथ खाकर कहती हूं, की मैने ये रत्न का आभूषण नही चुराया है, किसी ने भी, जनाबाई की बात पर विश्वास नही किया, सभी उस‌ पर ही इजाम लगा रहे थे, जब सभा से कोई उत्तर नही निकला।

तो ये बात, वहा के राजा तक पहुच गई, जब जनाबाई को वहा भी ले जाया गया, वह उदास हतास खडी रही, पूरी प्रजा उस पर कलंक लगा रही थी, की महाराज इसने ही आभूषण को चोरी किया है, तो अंत मे राजा ने आदेश सुनाया, की जनाबाई को सूली पर चढा दिया जाए। 

अब जनाबाई के हाथो को बांध दिया गया, और उसे सूली के पास ले जाया गया, जब जनाबाई को सूली पर चढाया जाने लगा, तो जनाबाई ने हाथ जोडकर प्रभु से कहा, की बहुत बढिया, जैसी प्रभु आपकी इच्छा, और वह हे विठ्ठल, हे विठ्ठल, हे विठ्ठल।

जनाबाई विठ्ठल का स्मरण कर रही, और भगवान की लीला,

भगवान विठ्ठल की अद्भुत लीला...

जैसे जैसे वह भगवान का नाम स्मरण कर रही थी, ज्यो ज्यो वह सूली, मोम की तरह पिघल रही थी, जनाबाई को तो पता ही नही, वह तो आंखे बंद कर अंतिम बार, प्रभु को याद कर रही थी, कुछ ही क्षणो मे वह सूली, पानी की तरह पिघल गई, वहा सूली नाम की कोई चीज ही नही बची।

कुछ सैनिक खडे है, और एक सूली आग से जलकर पिघल रही हो,

सभी आश्चर्यचकित हो गए, जो भी राजदरबार के सैनिक थे, और नगर के लोग थे, प्रभु की ऐसी महिमा देखकर, सभी हाथ जोडकर जनाबाई को प्रणाम किया, सभी ने छमा मांगी, की गलती हो गई, हमे माफ कर दो, इसमे दो बात सामने आई, की जनाबाई को जरा भी भय नही। 

की मुझे सूली पर चढाया जा रहा है, और दूसरी बात, की जब भक्त, भगवान के ऊपर पूरी तरह आश्रित हो जाता है, तो उसकी रक्षा का दायित्व भगवान पर होता है, फिर यहा से जनाबाई को, बडे ही आदर से भेजा गया, सभी उनके चरणो मे झुके थे। 

जनाबाई को आदर पूर्वक भेजा गया

अब तो जनाबाई, भगवान के प्रेम मे पूरी तरह डूब चुकी थी, उसके कोई सुध-बुध ही नही रहती, उसकी भक्ति मे वो ताकत थी, की जनाबाई जब कंडे को पाथती, तो उन कंडो से विठ्ठल, विठ्ठल, जैसे नाम का उच्चारण होता, सोचो की उसके सामने एक निर्जीव भी बोल रहा है। 

ऐसे ही एक बार संत कबीर दास, उस गांव से निकल रहे थे, तो देखा की, कौतोहल बस कुछ लोग एक जगह खडे थे, वह उनके पास गए देखा, 
की जनाबाई और एक महिला झगड रही है, बोले देवी आप लोग आपस मे क्यो झगड रहे हो, महिला बोली ये कंडे मेरे है। 

जनाबाई ने कहा नही ये मेरे है, कबीरदास बोले आपके कंडे की पहचान क्या है, बोली की कान मे लगा कर सुनो, कंडा बोल रहा है, विठ्ठल, विठ्ठल, जब महिला ने कंडे को कान मे लगाया, वह पूरी स्तब्ध रह गई, ये कितनी आश्चर्यजनक बात है, की नाम जड वस्तु से गूंज रहा है।

कंडे से विठ्ठल विठ्ठल विठ्ठल नाम निकल रहा है,

जनाबाई की भक्ति देख सभी हैरान...

कबीर दास जी को विस्वास नही हुआ, उन्होने भी कंडे को कान मे लगाया, की आखिर ऐसे कैसे हो सकता है, लेकिन जब उन्हे भी सुनाई दिया, तो उन्होने जनाबाई के चरणो मे प्रणाम किया, की ऐसी भी भक्ति होती है, की जड वस्तु को छू ले, तो उससे भी भगवान का नाम निकल रहा है। 

जनाबाई को नामदेव की सेवा मे, ऐसी स्थिती हो गई, की जब संवत चौदह को श्री नामदेव जी ने समाधि ली, तो जनाबाई भगवान विठोबा का स्मरण कर, उनमे विलीन हो गई, जब भी कोई भगवान के भक्त की, शरण मे जाता है, तो वह अपना जीवन, भगवान को ही समर्पित कर देता है। 

ऐसी भगवान के प्रति प्रीति हो जाती है, एक बार प्रेम से बोलो, जय श्री पांडूरंगा, ऐसी ही और कहानी पढ़ना पसंद करते है, तो पेज को फोलो जरूर कर लेना, हर रोज एक नई और प्रेरणादायक कहानी आती है, जय श्री कृष्णा। 
भगवान कृष्ण बंसी बजा रहे है, और एक सूली पिघल रही है,

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