मिथिला के राजा महाराज जनक, केवल एक धर्मप्रेमी और न्यायप्रिय राजा ही नही थे ... वे परम ज्ञानी और तपस्वी भी थे ... उन्होने राजमहल मे वैदिक यज्ञो और साधनाओ के माध्यम से ... आत्मबोध प्राप्त किया था ... एक दिन एक महान यज्ञ के पश्चात ... जनक गहरे ध्यान मे लीन थे ... तब आकाश से उतरा एक दिव्य प्रकाश ... वो कोई साधारण तेज नही था ...
वो स्वयं भगवान शिव थे ... जो अदृश्य रूप मे प्रकट हुए ... हे जनक
तुम्हारे तप और भक्ति से प्रसन्न होकर ... मै तुम्हे एक अद्वितीय वरदान देता हू ... आज से तुम हर पंछी की चहचहाहट ... हर जीव की वाणी ... सब तुम्हारे लिए अर्थपूर्ण होगी ... लेकिन ध्यान रहे ... यह ज्ञान तुम्हारे भीतर ही रहे ...
यदि तुमने किसी से इसे साझा किया ... तो तुम उसी क्षण पत्थर बन जाओगे ... जनक ने नतमस्तक होकर ... इस दिव्य वरदान को स्वीकार किया ... समय बीतता रहा ... एक दिन की बात है ... राजमहल के उद्यान मे वे टहल रहे थे ... जब एक पेड पर बैठे कोयल और चातक आपस मे बात कर रहे थे ... कोयल बोली देखो चातक ... जनक सब सुनते है ... लेकिन बोल नही सकते ...
चातक को हंसी आ गई ... अगर उन्होने बोला तो सीधे पत्थर हो जाएंगे ... क्या ईश्वर की लीला है ना ... जनक सुनकर मुस्कराए ... पर पीछे खडे राजपुरोहित ने यह देख लिया ... महाराज किस बात पर हंसे ... कोई चुटकुला याद आ गया क्या ... जनक चुप रहे ... उनका मौन ही उनका उत्तर था ... कुछ दिन बीते ... जनक अपने उद्यान मे एक शांत दोपहर ध्यान मे लीन थे ... पास ही एक बकरी और बकरा चर रहे थे ...
तभी जनक ने उनकी वार्ता सुनी ... और वह चौक गए ... बकरी बोली ...
आज का दिन बडा विशेष है ... मै देख रही हूं ... जनक की आयु पूर्ण हो चुकी है ... लेकिन वह इतने ज्ञानी है ... कि उन्होने मृत्यु को स्थगित कर रखा है ... बकरा बोला ... उनकी चुप्पी ही उन्हे बचा रही है ... अगर उन्होने हमारी बातो को किसी से कह दिया … तो यह लीला समाप्त हो जाएगी ...
जनक अंदर तक कांप उठे ... यह कोई साधारण पशु संवाद नही था ...
यह तो ईश्वर की लीला थी ... उसी दिन दरबार मे एक मंत्री ने कहा ... महाराज कई बार हम आपको अकेले हंसते, कभी चौकते, कभी रोते देखते है ... इसका कारण क्या है ... जनक चुप रहे ... पर तभी एक दरबारी अभिमान से भरा हुआ ... आगे बढा और ताना कसता है ...
क्या यह संभव है ... कि महाराज पागल हो गए है ... बस यही वह क्षण था ... की जनक जी का धैर्य डगमगाया ... उन्होने सोचा ... अगर मै सच नही कहूंगा ... तो ये लोग मुझे मूर्ख समझेगे ... और अगर कह दूं ... पर अब देर हो चुकी थी ... जनक जी ने हिम्मत कर बोल दिया ... मै पक्षियो और प्राणियो की बाते सुनता हूं ...
मै उनकी भाषा समझता हूं ... जैसे ही यह वाक्य पूरा हुआ ... एक तेज प्रकाश फटा ... पूरा दरबारी कांप उठे … और जनक वही पत्थर के हो गए ... पूरा दरबार स्तब्ध शब्दहीन रह गया ... और तभी आकाश से एक दिव्य वाणी गूंजी ... यह लीला तुम्हारी पूर्णता का प्रमाण है ... जनक जो ज्ञान को मौन रख सके ... वही सच्चा ज्ञानी होता है ... तुमने अंतिम क्षण तक मौन साधा ...
और जब बोले ... तो वह तुम्हारा त्याग था ... आज भी कहा जाता है ...
मिथिला के एक प्राचीन स्थल मे ... महाराज जनक का पत्थर रूप स्थित है ... वह मौन है पर जीवांत है .... कहा जाता है ... यदि कोई वहा सच्चे हृदय से मौन और सत्य की साधना करे ... तो वह पत्थर फिर से बोल उठेगा ... ऐसी ही इंट्रेस्टिंग स्टोरी पढ़ना पसंद करते है, तो हमारे पेज को फोलो करे ... धन्यवाद ....
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