कृष्ण दास की भक्ति – बारह वर्षों की माला सेवा और भगवान का चमत्कार

कहानी की शुरुआत – नंदगांव की पावन भूमि...

नंदगांव का पावन नगर, खूबसूरती की मिसाल

हमारे कहानी की शुरुआत मथुरा से होती है, जहा एक खूबसूरत स्थान नंदगांव है, जहा भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल की अनेक लीलाएं रची, यह गांव नंद बाबा का निवास स्थल था, जो श्रीकृष्ण के पिता के समान पालक थे, नंदगांव की गलियां आज भी।

श्रीकृष्ण की बाल लीलाओ की, मधुर स्मृतियो से गूंजती है, यहा की मिट्टी मे भक्ति बसती है, हवाओ मे राधा-कृष्ण का प्रेम महकता है, और हर दिशा मे बांसुरी की मधुर धुन सुनाई देती है, नंदगांव केवल एक गांव नही, बल्कि भक्ति और सरलता की जीवांत मिसाल है।

वहा एक भक्त कृष्ण दास रहते थे, उन्होने अपने लिए एक सुंदर कुटिया बनाई, और एक खूबसूरत बगीचा तैयार किया, और वह नित्य नंदगांव मे रहते थे, एक बार वही पास मे कथा चल रही थी, तो उन्होने सुना, की महाभारत की कथा मे ऐसा आता है।

बारह वर्ष तक यदि कोई व्यक्ति, किसी एक नियम का पालन करता है, तो उसे सिद्धी प्राप्त हो जाएगी, वो जो चाहेगा उसे मिल जाएगा, लेकिन बारह वर्षो तक, पर याद रहे, बारह वर्षो तक एक भी दिन, उस नियम का नागा नही होना चाहिए, कृष्ण दास ने नियम धारण कर लिया।

कृष्ण दास का व्रत – बारह वर्ष की सेवा...

भक्त कृष्ण दास ने एक नियम धारण किया

बोले रोज माला बनाकर, पहनाऊंगा ठाकुर जी को, और मेरी एक ही अभिलाषा है, की बारह वर्ष तक माला पहनाऊं मै इनको, और तेरहवें वर्ष का जब पहला दिन आवे, ये पहनने आवे माला मेरे पास, मै नही जाऊंगा इनके पास, मुझे यही पल चाहिए। कृष्ण दास रोज पैदल जाते, ऊपर नंदगांव पहाडी पर चढ़ते, नंदगांव यदि आप लोग नही जानते, तो बता दे, 

वहा भगवान कृष्ण और बलराम जी की, एक जैसी प्रतिमा विराजमान है, इस स्थान पर कभी जाना, तो आप देखेंगे, की सेम एक ही मूर्ति को, दो बार स्थापित किया गया है, कृष्ण और बलराम दोनो श्याम वरण के है वहा पर, जबकी बलराम जी गौर वरण के है, आप इन दोनो को देखकर, पहचान नही पाओगे, की इनमे कृष्ण कौन है, और बलराम कौन है, 

केवल एक ही भाव से पता चलता है, जो यशोदा मईया के बगल मे खडे है, वह श्री कृष्ण है। और जो दाऊ दादा के पास खडे है,, वह बलराम है, अब यहा सवाल आता है, की बलराम जी कारे क्यो है, इसके पीछे भी एक छोटा सा प्रसंग है, बलराम जी कृष्ण जी को बहुत चिढाया करते थे।

जब भगवान कृष्ण ने यशोदा मईया से शिकायत की...

कृष्ण जी यशोदा मईया से शिकायत कर रहे 

मोसो कहे मोल को लीनो, तू जसमती कब जायो, ठाकुर जी ने यशोदा मईया से शिकायत कर दी, मईया ये बलदाऊ बहुत खिजाओ मोए, मईया बोली का कहवे, बोले तोए तो हम मोल पे लेकर आए, तू नंद रानी यशोदा के यहा थोडी जन्मो है। अरे मेरे लाला वो ऐसे ही बोले, 

नाए मईया, मोको तो बलराम की बात पे भरोसो हेगो है। मईया बोली क्यो, बोले यशोदा गोरी, नंदबाबा गोरे,  मै कारो कैसे जाए... तुम दोनो गोरे हो... और ये बलराम भी गोरो है... मै कारो काहे... मईया तू सांची मे मोको मोल पे लेकर आई...

मईया एक बात और सुन... क्या लाला... बलराम यों ना कहवे... की दस बीस पचास... सोने की मोहरो पर‌ तूको खरीद को लाए... वो कहते है, की आधी रोटी पर खरीदकर लाए तुम्हे, मईया बोली लाला ऐसे रोया नही करो, नही मईया, तुमपे दो ही रास्ता है, क्या रास्ता है।

भगवान कृष्ण कुछ बोल रहे है 

यों केए आधी रोटी पे खरीद कर लाए हम तोए... मईया बोली लाला ऐसे रोएयो मत करे... बोले ना मईया... तोपे दोई रास्ता है... क्या रास्ता है... या‌ तो मोए गोरो कर, या बलराम को कारो कर, यशोदा मईया सोचे, कारो को गोरो बनाना कठिन है।

लेकिन गोरे को कारो बनायो जा सके, यशोदा मईया ने पकडा बलदाऊ को, और काजल से मोह पे नाक पे, पूरा कारो कर दिया, लाला देख बलदाऊ को, हां मईया अब बढिया लगे, ये मेरो बलदाऊ भईया, कैसो सुंदर लग रहो, इस लिए हमारे नंदगांव मे दोनो श्याम वरण के खडे है, अब आते है अपनी कहानी मे वापस। 

कृष्ण दास बाबा रोज जाते नंदगांव, और प्रेम से ठाकुर जी को माला पहनाते, और कहते लाला, मेरी बस एक ही अभिलाषा है, मै बारह वर्ष तक, यही नियम का पालन करूंगो, ना नाम जप करूंगा, ना साधना करूंगा, केवल एक नियम।

भगवान कृष्ण से बोले मै एक नियम करूंगा...

भक्त कृष्ण दास भगवान कृष्ण को माला पहना रहे

अपने बगीचे पे पुष्प उगांऊगो, और उकी माला बनाकर, और आकर तोको पहनाऊंगो, बारह वर्ष बाद मोको ऐकई फल तोसे चाहिए, तेरहवें बरस के पहले दिन, मै नही आऊंगा, तू मेरी कुटिया पे आवेगो माला पहनवे, सुनने मे बहुत आसान है, कि बारह साल एक नियम का पालन।

लेकिन बहुत ही कठिन है, इधर सुबह का समय हुआ, कृष्ण दास जी बगीचे से सुंदर सुंदर फूल थोड लिए, और बैठकर एक माला तैयार किया, और पैदल चल दिया नंदगांव, भगवान कृष्ण जी को माला पहनाते, और उनसे कहते प्रभु, दस साल रह गए है।

प्रभु अब आठ वर्ष रह गए है, प्रभु अब पांच वर्ष रह गए है, इस बीच कृष्ण दास कितने बिमार हुए, कितनी बार उनके पैरो मै छाले पडे, कितनी भी धूप होती, और कितनी भी बारिश होती, कितनी भी विपत्ति आती, लेकिन वह ठाकुर जी की सेवा को छोडते नही थे।

भक्त कृष्ण दास के पैरो मे छाले पड़ते फिर भी सेवा नही छोडते

अब बारहवां वर्ष आ गया, अब तो लाला छह महिना रह गए है, अब तो दो ही महिना रह गया है, अब तो एक महिना रह गया है, अब तो आठ दिन रह गए है, और तो तीन दिन रह गए है, अब उनके बारह वर्ष का अंतिम दिन आ गया।

उस दिन रोते हुए कृष्ण बाबा जा रहे है, जिस गली से रोज जाया करते थे, उस गली को प्रणाम कर रहे है, बोले आज मै अंतिम बार आ रहा हूं, अब नही आऊंगा, नंदभवन की डेहली को प्रणाम कर रहे है, प्रत्येक स्तम्भ को प्रणाम कर रहे है।

भीतर जाकर नंदबाबा, यशोदा मईया, सबको प्रणाम किया, और फिर कृष्ण जी को माला पहनाई, बोले लाला अब मेरी सेवा पूर्ण हुई, भगवान आज से मेरी सेवा समाप्त हुई, अब मै जा रहा हूं, छप्पन भोग बनाऊंगा, रबडी बनाऊंगा, आलू की सब्जी बनाऊंगा, अच्छी अच्छी जलेवी बनाऊंगा, और माला तैयार रखूंगा।

भगवान कृष्ण से अंतिम बार बात कर रहे...

भगवान कृष्ण झोपड़ी के अंदर माला लिए चल रहे

क्योकि अब लाला मेरे घर आएगा, मै पूरी तैयारी करूंगा, बस आए जइयो, कहके कृष्ण दास चले गए, आज कृष्ण जी भावुक हो गए, लौटकर अपनी कुटिया पर आए, खूब सुंदर रज रज के, छप्पन भोग बनाए है, अपने बारह साल की सेवा की, स्मृति महोत्सव मना रहे है, बहुत ही आनंदित है।

की कल तो मेरे घर ठाकुर जी आएंगे, दूसरे दिन का प्रारंभ हुआ, सुबह मंगला से ही, छप्पन भोग तैयार कर रखे है, और बढिया पत्तल तैयार रखे है, सभी को पुष्प से सजा रखा है, एक थाली मे बढिया सुंदर माला रखा, और बैठ गए उसी रास्ते पर, जहा से ठाकुर जी को आना है।

सुबह मंगला से, श्रृंगार तक की स्थिति आ गई, मतलब आज के नौ बज गए, लेकिन ठाकुर जी नही आए, राज भोग का समय हो गया, लेकिन ठाकुर जी नही आए, कृष्ण बाबा सोचे, अब राजभोग का समय हो गया, अब आएंगे।

आज के समय के अनुसार, साम के चार बज गए, लेकिन ठाकुर जी नही आए, बोले गईया चराकर लौटेंगे, अब आएंगे, साम के छह बज गए, लेकिन ठाकुर जी नही आए, गौ धोली बेला निकल गई, ठाकुर जी की आरती होने लगी मंदिर मे, कृष्ण बाबा सोचे रात को भूख लगेगी तब आऐंगे।

अंतिम दिन की प्रतीक्षा – 

कृष्ण बाबा ठाकुर जी का इंतजार कर रहे

मंदिर के शयन हो गए, लेकिन ठाकुर जी नही आए, अर्ध रात्रि का समय हो गया, लेकिन ठाकुर जी आए नही, और जब ठाकुर जी नही आए, तेरहवें वर्ष का पहला दिन, निकल रहा है, विश्राम होने वाला है, चौबीस घंटे पूरे होने वाले है, अब कृष्ण बाबा का इंतजार खत्म हुआ।

और बोले गलती मेरी है, अरे इतनी कथा मे सुनी मैने, की ये छलिया है, यह कपटी है, वचन को पक्को नही है, फिर भी याके भरोसे बैठो रहो मै, आस लगाए बैठो रहो, की आएगो आएगो, अरे याकी आस लगाए बैठी रही यसोदा मईया।

अरे वृज की गोपियां आस लगाए बैठी रही बेचारी, परसो को कहके गयो, लेकिन लौटकर आयो नही ये, और मै जानते भए, की ये विस्वास का पात्र नही है, याके काजे प्रतिक्षा कर रहा हूं, सारे भोजन बाहर निकाल लिया, एक पोटली बनाई, और अपनी पूरी झोपडी को टोड दिया।

अब नही रहूंगा यहा पर, अपनी पूरी झोपडी को तहस नहस कर दिया, अपने उस‌ पुष्प के बगीचे को, पूरा‌ उजाड दिया, वही माथा पकडकर बैठ गए, बारह वर्ष, मै कही और चला गया होता, किसी और की कृपा हो जाती।

कृष्ण बाबा सब उजाड़ दिया अपने बगीचे को

लेकिन या छलिया, टेडी टांग वारे के भरोसे बैठो रहो, यह जानते हुए की विस्वास तोडेगा ये, अब नही रहुंगा यहा पर, उनके नेत्र सजल हो गए, की जाऊं कहा, बारह वर्षो मे इतना स्नेह हो गया है, नंदगांव से छह किलोमीटर दूर है बरसाना।

कृष्ण बाबा सोचे, की बारह साल नंदगांव मे रह के देख लिया, बारह दिन बरसाने मे रहके और देख ले, क्या पता किशोरी जी कृपा कर दे, जैसे ही बरसाने की रास्ते को जाने लगे, तभी कुछ दूर पर, असंख्य गायो का झुंड आने लगा, बाबा बोले इतनी आधी रात हो गई है।

कौन की गाए आ रही है, और गईया चलती जा रही है, चलती जा रही है, एक मिनट हो गए,‌ बीस मिनट हो गए, एक घंटे हो गए, गईया खतम ही नही हो रही है, बाबा सोच मे पड गए, की इतनी गईया, अरे भईया गईया आ रही है, की सुनामी आ रही है।

ठाकुर जी का आगमन – चमत्कारिक दर्शन...

एक ग्वरिया अपनी गायो को लेकर चल रहा है

इतने मे ही एक ग्वारिया, बढिया छडी पर दोनो हाथ डालकर आ रहा है, ओ भईया ग्वारिया सुनियो जरा, कौन की गईया है ये, बोले ये तो नंदभवन की गईया है, इतनी रात को, हां पूरे दिन चर रही थी, पूरी नौ लाख है गईया, कृष्ण बाबा बोले अच्छा, कब तक निकलेगी ये।

बाबा अभी तो दो चार घंटा लग जएगा, नौ लाख है, यही बैठ जाओ थोडी देर, बाबा वही बैठ गए, बोले हमने तो सुबह से कछू खायो भी नही, ग्वारिया बोलो, की बाबा, इस पोटली से देसी घी की सुगंध आ रही है, इसको खोल लो, थोडी तुम पा लेओ।

और थोडी हम भी पा ले, बाबा ने पोटली खोली, और ग्वारिया से बोले, ये ले तुम भी पा लो, बाबा मेरे हाथ मे गोबर लगो है, तुमही अपने हाथ से ही पवा दो, बाबा बोले तू भी नंदगांव का होगो, एक याने बारह बरस सेवा कराई, और तू भी अपनी सेवा करा ले।

और कुछू बने ना, आ तू भी आ, अब कृष्ण बाबा खुद भी खाए, और उस ग्वारिया को खिलाया, पाते पाते ग्वारिया के नेत्र सजल हो गए, कृष्ण बाबा बोले, तेरे नेत्रो मे आंसू क्यो आ रहे है, कौन को याद करके रो रहो, क्या हो गया, ग्वारिया बोला बाबा।

भगवान भगवान भावुक हो गए - आंखो से आंसू निकले

बारह साल एक भी दिन, बिना माला के मै नही रहो, लेकिन आज सुबह से साम हो गई, कोई ने मोको माला नही पहनाओ, मै कब से प्रतीक्षा कर रहा हूं, माला का नाम सुनते ही बाबा बोले, कन्हैया, यह कहते ही ठाकुर जी त्रिभंग ललित स्वारूप प्रकट हो गए। 

और बोले बाबा, प्रसाद तो मैने पा लिया, अब माला और पहना दो, कृष्ण बाबा ने हाथ जोडकर आंखे नम ठाकुर जी को निहार रहे है, भगवान कृष्ण को किस भाव मे, भक्त को दर्शन देना है।

भगवान कृष्ण ने भक्त को दर्शन दिया

ये उनको ही पता है, श्री कृष्ण की अद्भुत भक्ति की ये कहानी, आपको कैसा लगी, हमे एक प्यारे से कमेंट मे जरूर बताना, मिलते है अगली बेहतरीन कहानी के साथ, जय श्री कृष्ण।

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