सेठ, सेवक और दूध की सीख | एक प्रेरणादायक हिंदी कहानी

सेठ, सेवक और दूध की सीख

सेठ-सेठानी तीर्थ यात्रा पर जाते हुए 

बहुत समय पहले एक सेठ-सेठानी थे ... वह सुखी-सम्पन्न थे ... पर अकेले ही रहते थे ... उन्होने एक गाय पाल रखी थी ... उसकी देखभाल करना चारा खिलाना .... और पानी पिलाना ... इन सबका दायित्व निर्वाह उनका रामू नाम का एक सेवक ... सच्चे मन और निष्ठा से किया करता था ... समय पर गाय की सभी सेवाए होती थी ... 

सुबह-शाम दोनो समय उस गाय का दूध निकालकर ... वह कर्मिष्ठ सेवक रामू ... अपने सेठजी के घर दे जाता था ... एक बार सेठजी को तीर्थ यात्रा करने की इच्छा हुई ... सेठ-सेठानी ने यात्रा पर चलने की तैयारी की ... और चलते समय सेठजी ने अपने सेवक रामू को समझाया ... भाया हमारे पीछे से गाय का अच्छी तरह से ध्यान रखना ... चारे का पूरा प्रबन्ध तो है ही ... दूध निकालकर अपने घर ले जाना ...

रामू का सेवा भाव

सेवक रामू गाय को चारा दे रहा है 

हमे यात्रा से वापसी मे एक महीना लग ही सकता है ... चिन्ता नही करना ... खर्चे और अपनी मजदूरी-मेहनताना के बतौर यह कुछ रुपये रख लो ... और पीछे से घर का भी ध्यान रखना ... सेठ-सेठानी तीर्थ यात्रा पर चले गये ... सेठजी के कहे अनुसार उनका वह सेवक रामू ... उनके घर और गाय की अच्छी तरह देखभाल करता ... और गाय का दूध निकालकर अपने घर ले जाता ...

लेकिन दूध को अपने घर के आंगन मे फैला देता ... वही गली-मुहल्ले के कुत्ते-पिल्ले वहा आकर ... दूध को चाट चाटकर पीते ... रामू की भोली-भाली पत्नी ने ... अपने पति के दूध फैलाने पर उसी दिन उसे टोका ... दूध को फैलाने से क्या लाभ ... हमारे इन दोनो छोटे-छोटे बच्चो को दूध पीने को मिल जाये ... इससे अच्छी बात क्या हो सकती है ...

रामू दूध आंगन में फैला रहा है और कुत्ते-पिल्ले पी रहे हैं 

आपको सेठजी कहकर गये है ... कि दूध घर ले जाना ... रामू ने पत्नी को कहा ... कि नही-नही इन बच्चो को दूध पिलाकर ... पत्नी ने फिर बीच मे ही टोक दिया ... आदत खराब नही करनी ... यही कहना चाहते हो ना ... उसने अपने पति की बात को समझने की कोशिश नही की ... पर उसने कोई तर्क-वितर्क नही किया ... गृहशान्ति बनी रही ... रामू हर रोज दूध निकालकर ... सेठजी के कहने से दूध को घर ले जाता ...

और अपनी समझ से दूध को घर के आंगन मे डाल देना ... उसकी दैनिक क्रिया बन गयी ... गली-मुहल्ले के कुत्ते पिल्ले ... उस दूध को चट कर जाते ... लगभग एक महीना बीता ... सेठ-सेठानी तीर्थ यात्रा से वापस आये ... रामू ने गाय का दूध निकाला ... और सेठजी के घर पर दूध रख दिया ... इसके बाद रामू अपने घर आया ... आज तो दूध ही नही था ... आंगन मे क्या फैलाता ...

लेकिन गली-मुहल्ले के कुत्ते-पिल्ले रोजाना की तरह ... समय पर उसके घर के आंगन मे इकट्ठे हुए ... दूध न पाकर भौ-भौ कर भौकने लगे ... और सभी रोने लगे ... रामू की पत्नी ने भौकने रोने का दारुण दृश्य देखा ... और पूछने की मुद्रा मे पति के मुख की ओर देखने लगी ... पति ने कहा ... देवी तुमने इन्हे देख लिया ... मैने अपने बच्चो को वह दूध इसीलिये नही पीने दिया ...

जब पत्नी को दया आई, पिल्लों पर 

कुत्ते दूध न पाकर रो रहे हैं और रामू की पत्नी भावुक होकर देख रही है 

नही तो आज यह अपने बच्चे भी इसी तरह से रोते-बिलखते ... बात आज रामू की पत्नी की समझ मे आयी ... अपने हक-मेहनत का खाये-पीये ... स्वाभिमान से जिये ... और अपने सामर्थ्य तथा मर्यादा मे रहे ... सुविधाओ के पीछे आंधी दौड नही करना ... बल्कि संतुलित जीवन और विचारपूर्ण आदते ही ... सच्चा सुख देती है ... कहानी पसंद आई हो तो ...  हमे कमेंट करके जरूर बताना ... पेज को सब्सक्राइब जरूर करना ... धन्यवाद ... 

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यह कहानी Manash Khare द्वारा प्रस्तुत की गई है। हम इस ब्लॉग पर प्रेरणादायक हिंदी कहानियाँ, भावनात्मक किस्से और जीवन मूल्य से जुड़ी बातें साझा करते हैं।



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