सखुबाई की कहानी - भगवान स्वयं आएं नवयुवती बनकर? Hindi Kahani

सखुबाई के दयनीय जीवन को सुलझाने भगवान आए 

 महाराष्ट्र मे कृष्णा नदी के तीर पर, करहाट नामक एक गांव था

वहा एक ब्राह्मण रहते थे, उनके घर मे केवल चार लोग थे, ब्राम्हण और उसकी पत्नी, उसका पुत्र और पुत्रवधू, पुत्रवधू बडी ही सात्वी और बडी ही भक्ता थी, पुत्रवधू का नाम सखुबाई था। सास ससुर और उसका पती, ये सभी एक ही राशि के थे, पूरा दिन लडाई झगडा करते थे, कोई भी भगवान की रूचि नही, लेकिन सखुबाई पूर्ण सात्वी थी, वह बचपन से संतो का संग करके, निरंतर श्री कृष्ण के चिंतन मे तन्मय रहने वाली, लेकिन समय का चक्र ऐसा हुआ। की सखुबाई का व्याह ऐसे घर मे हुआ, जहा ससुर भी दुष्ट स्वभाव वाला, और सास ऐसी, जब तक बहू को दो चार थप्पड ना लगा दे, उसके बाल खीच के सैकडो गालियां ना दे दे, तो उसको राजभोग पचता नही था, रात्रि मे जब तक पैर दबवा के, और दो चार गालियां ना दे दे। तो उसका शयन नही होता था, सखुबाई को बुरा तो जरूर लगता था, लेकिन उसने कभी किसी पडोसी के यहा जाकर, कभी नही बोला, अगर पती के सामने आंसू बहाकर कुछ बोले, तो पती उल्टा और दो चार थप्पड मारे, उसको गालियां दे, सखुबाई को बहुत कष्ट दिया जाता।

लेकिन वह सखुबाई हर समय, श्री हरी का चिंतन किया करती थी, और ना कभी अपनी सास से द्वेष रखती, और ना ही अपने पती से, हर भक्त को भगवान कठीन परिस्थिति से गुजारते है, ससुर को स्नान करने के लिए भी, सखुबाई को पानी भरना पडता था।उसके कपडे सखुबाई को धोने पडते थे, सास के भी कपडे सखुबाई को धोने पडते थे, सभी के लिए भोजन, उसी को बनाना पडता था, पूरे बर्तन भी उसी को धोना है, और जो थोडा बहुत खाना बचे, वो खाने को मिलता था, और वह भगवान का मनन कर प्रसाद ग्रहण करती। और बाद मे सासू जैसे कोई लोरियां सुनाए, वैसे उसे गालियां सुनाया करती थी, कितना क्लेशमय जीवन था सखुबाई का, लेकिन उसने कभी भी कठोर वचन सास को नही बोला, हर समय उसे सभी गालियां देते, उसे मारते पीटते, लेकिन कभी किसी को कुछ नही कहती।

संत जनाबाई की ऐसी भक्ति की ठाकुर जी आए- Click Here 

एक महिला बंधी है, और भगवान स्त्री रूप मे आए 

और ना ही कभी प्रभु से शिकायत करती, धन्य है ऐसी बहू का, इन सभी को वह भगवान की कठिन परिक्षा समझती, उन सभी को, सखुबाई को कष्ट पहुचाने मे आनंद मिलता, कभी अच्छे वस्त्र पहनने को नही देते, और रूखा सूखा खाने को देते, हर समय गालियां दी जाती। लेकिन सखुबाई हर समय, श्री कृष्ण का चिंतन करती रहती, ऐसे ही भक्तो के जीवन मे, अद्भुत घटनाएं घटती है, जिनका यश गान किया जाता है, सुबह से लेकर रात तक, सभी की सेवा करना, और जब रात्रि मे सब सो जाते थे।

तो वह श्री कृष्ण, श्री कृष्ण, का नाम जप किया करती थी, बहुत कम उसे सोने को दिया जाता था, सुबह से उसे सास ताने देने लगती थी, फिर भी वह घर के काम को, बेमन नही करती थी, बिल्कुल सुचारू पूर्वक करती थी। सखुबाई की दारूण दसा देखकर, गांव के लोगो को उसपर दया आया करती, लेकिन किसी की हिम्मत नही होती, की कोई समझा सके, ब्राह्मणी के डर से, कोई सखू से बात भी नही कर सकता था।

महिला जो भगवान का स्मरण कर रही है,

सखुबाई एकांत घर मे बैठकर सोचती, 

की अगर पती हमसे प्यार करता, तो श्री कृष्ण के प्यार मे बाधा पड जाती, यदि सास हमसे प्यार करती, ससुर हमसे प्यार करता, तो इनमे मन बटता, कितनी कृपालु हमारे श्री कृष्ण है।

हमे ऐसा परिवार दिया है, मेरा मन केवल श्री कृष्ण मे लगेगा, इनमे लगेगा ही नही, देखो भक्त हर परिस्थिति मे आनंदित रहता है, हर पल को भगवान से जोड ही लेता है, ऐसे ही एक दिन की बात थी, सखुबाई पानी लेने जा रही थी, तभी एक गांव की महिला, उसके पास गई, और उससे कहने लगी। बहन इतना कष्ट दिया जाता है, और तू कोई उपाय नही करती, तेरे नईहर मे कोई है नही क्या, तू इतना कष्ट भोग रही है, वो कोई उपाय करके तुमको यहा से बचा ले, ना कोई खबर लेने आता है, ना कोई सहयोग करता है, सखू ने मुस्कुराते हुए कहा, तुम जानते हो मेरा नईहर कहा है, पंढरपुर मे।

और नैहर वाले कौन है, विठ्ठल और रूक्मिणी जी, और सखी पता है, उनका बहुत बडा परिवार है, असंख्य संताने है, हमे लगता है, वो असंख्य संतानो की व्यवस्था मे भूले हुए है, इसलिए मुझ तक खोज खबर लेने, नही आ पा रहे है, लेकिन उनकी बहुत कृपा है हमारे ऊपर। अब वो बेचारी पडोसन क्या सोचे, किस दशा मे और किसे बोल रही है, पंढरपुर महाराष्ट्र का एक प्रसिद्ध धाम है, यहा असाढ शुक्ल एकादशी को एक बडा मेला लगता है, भगवान पंढरीनाथ के दर्शन को, लाखो नर नारी दूर दूर से नाम कीर्तन करते हुए, और भगवान की मस्ती मे यहा आते है।

जब यात्रा का दिन आया, भक्तो की मंडलियां कीर्तन करते हुए, पंढरपुर को जा रहे है, भक्तो की मंडलियां को देखकर, सखुबाई के ह्रदय का बांध टूट गया, उसने विचार किया क्या करूं, हमारे प्रीतम का ऐसा बडा उत्सव हो रहा है, उसमे जाकर मै मिल नही सकती। इतने यहा विरोध है, उसके गांव से बडी बडी मंडलियां जा रही थी, सखुबाई को पानी भरने के लिए, कृष्णा नदी पर जाना होता था, उसने घडा लिया, और पानी भरने के लिए चली गई, वही पास से ही प्रेमी भक्तो के संग कीर्तन को देखकर, उसके ह्रदय मे प्रेम उमड पडा। 

एक मिट्टी का मटका नदी के घाट मे सीडियां पर रखा है,

और उसने अपना घडा वही रख दिया, और भक्तो की मंडली की तरफ दौड गई, तभी उसे एक पडोसी ने देख लिया, की सखुबाई मंडली मे जा रही है, उसने उसके घर जाकर, उसकी सास को बता दिया, अरे देख तेरी बहूं संतो के साथ, मंडली मे भाग गई। इतना सुन सास गुस्से से लाल हो गई, और अपने बेटे से कहा, देख मै कहती थी, वो है दुष्ट, चल आज उसे अच्छे से समझाना पडेगा, सभी ने डंडे लिए, और तुरंत पंढरपुर मंडली की ओर जाने लगे, वहा जाकर देखा, सभी भक्तो के बीच सखुबाई उन्मत्त हो रही है।

ये देख सास के गुस्से की सीमा ना रही, तुरंत उसके पास गई, और बाल पकडे उसे घसीटा, और खूब डंडे से मारने लगी, तेरे को पानी लेने भेजा था, और तू यहा आ गई, रास्ते भर उसे खूब गालियां देते हुए घर लाए, घर मे उसे तीनो ने पीटा। सखुबाई हे गोविन्द, हे विठ्ठल कहती रही, और सास बोल रही थी, अभी ये मामूली मार है, अभी ये मानने वाली नही, इसे ऐसा पीटो की चलने लायक ना रहे, नही ये फिर भाग जाएगी, और सुनो अभी दो सप्ताह है, पंढरपुर की यात्रा की, और इसको रस्सी से खम्भे पर बांध दो। और खाना पानी सब बंद करो, और रोज इसकी पिटाई करो, सास की आग्या‌‌ हुई, और बेटे ने बांध दिया उसे खम्भे पर, और उसने बडी जोर से सखुबाई को बांध दिया, फिर भी सखुबाई को हृदय मे पीडा नही हुई, की मुझे मारा गया, और इतनी गालियां दी गई, और इतना दुर्व्यवहार किया गया,

पती और सास बहूं को खम्भे पर बांध रहे है,

वह यह सोच रही थी, की हे कृष्ण, आज पहली बार मुझे भक्तो के बीच कितना सुख मिला, भक्त मंडली मे मुझे नाचने को मिला, आपके दर्शन को जाना था, लेकिन अब मेरी सामर्थ्य नही, की मै इस जन्म मे, इस नरक से निकल सकूं, हे करूणानिधान, हे दीनो पर दया करने वाले श्री हरी।क्या ऐसा नही हो सकता, की मै आपके दर्शन कर पाऊं, इस जन्म मे, क्या मै आपके भक्तो के बीच नही नाच सकती, हे करूणानिधान आपके लिए दुर्लभ क्या है, आप सब कुछ कर सकते हो, ऐसा कह कह के, वह आंसू बहा रही थी, और श्री हरी का आंतरिक चिंतन कर रही है।

ये सब देख श्री हरी को चैन कैसे पड सकता है, रूक्मिणी जी ने देखा, की प्रभु के चेहरे पर उदासी और चिंता, नाथ आपका चिंतन करने से, सबकी चिंता खतम हो जाती है, आप चिंता मे कैसे, हमे लगता है, जब जब आप चिंता मे होते है, तो कोई भक्त कष्ट मे है।हा देवी एक भक्त है, पूछो मत कितना पीटा गया, कितना क्लेश दिया गया, वो हमसे मिलना चाहती है, और उसको बांध दिया गया है, भक्त की पुकार से मेरा हृदय जल रहा है, सखुबाई मुझे पुकार रही है, 

एक खूबसूरत महिला जो घर के अंदर खडी है,


रुक्मिणी से भगवान ने कहा, मै जा रहा हूं, थोडा समय लगेगा, ये भक्त ऐसा नही है, की दर्शन देकर आ जाऊं, रूक्मिणी ने कहा ठीक है भगवान, फिर भगवान ने तत्काल एक सुंदर नवयुवती का रूप धारण किया।और पहुच गई सखुबाई के पास, सखुबाई को देखा, उसकी आंखो मे आंसू, और भगवान का चिंतन कर रही है, जैसे सखुबाई ने आंखे खोली, सामने एक सुंदर नवयुवती है, और कह रही है सखुबाई सखुबाई, मैने सुना तुम पंढरपुर जाना चाहती हो।

चलोगी हमारे साथ पंढरपुर, सखुबाई सोचे, कोई हमे प्यार से बोल रहा है, यहा तो गालियां और डंडे चल रहे है, सखी मुझ पापिनी के भाग्य मे कहा।की मै पंढरपुर प्रभु के पास जा सकूं, सखी तुम मुझे जानती नही हो, मै तुम्हे बहुत समय से जानती हूं, तुम हमारी बहुत प्रीय सखी हो, सखुबाई क्या समझे ये कौन है, मै तो जानती नही, सखी देखो मै तुम्हे छोडती हूं, तुम भागकर जाओ मंडली के साथ।

एक महिला मुंह से कुछ बोल रही है,

ठाकुर जी का भक्त के प्रति प्रेम 

अरे बहन हमारी सास फिर पकड लेगी, बिल्कुल नही इसकी तुम चिंता ही मत करो, जल्दी जल्दी सखुबाई की रस्सी को खोल दिया, और सखुबाई तुरंत वहा से भागकर गई, इसके बाद ठाकुर जी ने, सखुबाई का रूप धारण किया, और रस्सी मे उसी तरह बंध गए।ये है ठाकुर जी की कृपा, यदि भक्त इनके लिए बंधता है, तो ये भक्त के लिए बंध सकते है, सकुबाई का पती और सास तो रोज उसे मारते थे, उनको थोडी पता है, की ये ठाकुर जी है, उन्होने खुब ठाकुर जी की पिटाई की, जो तीनो लोको के स्वामी है।

और सच्चिदानंद भगवान है, वह एक साधारण स्त्री रूप मे बंधे है, इधर सखुबाई भक्तो के संग आनंदित होकर, श्री हरी ठाकुर जी के पास जा रही है, इधर सास बोले, और जाएगी, बता और जाएगी, दो चार थप्पड उसे लगा रही है, ठाकुर जी चुप चाप थप्पड खा रहे है, ससुर आता है, बोला अब आई है लाइन मे। 

कई दिन हो गए उसे भोजन नही दिया, पानी नही दिया, और रोज पिटाई, जो तीनो लोको को ऊंगली पर नचा दे, वो यहा पिट रहे है, पंद्रह दिन बीत गए, जहा रोज बाल भोग, राज भोग और शयन भोग, वहा कोई भोग नही, वहा रोज डंडा और गालियां खा रहे है, सास ससुर का इतने मे भी मन नही पसीजा। परंतु सखुबाई के पती के मन मे विचार आया, की पूरे दो सप्ताह हो गए, एक बूंद जल नही, और एक कऊर भोजन नही दिया, कही ऐसा ना हो हमारी पत्नी बंधे बंधे मर जाए, हमारा दुबारा व्याह तो होगा नही, क्योकि पूरा गांव और नगर जानता है, कितने सभ्य है।

पती अपने पत्नी के बंधन खोल रहा है,

उसने अपनी पत्नी के सारे बंधन खोल दिया, और बडे प्यार से कहने लगा, तुम्हे बहुत कष्ट दिया, बहुत क्रुरता की गई, हमे क्षमा करना, बढिया सीतल जल उसको पिलाया, बोले मै क्या करूं, मेरे माता पिता है ऐसे, ये जो परिवर्तन देखने को मिल रहा है। ये ठाकुर जी की कृपा से हो रहा है, आज तक सखुबाई के लिए नही हुआ, जो कुछ भी उसका पती बोलता, ठाकुर जी विनम्र भाव से उसका उत्तर दे रहे है, प्रभु ने सोचा, की मैने जरा सी भी चेष्ठा की, तो मेरी भक्त पर संकट आ सकता है, इसलिए सहज भाव ही रखना होगा।

पती बोला, देखो मै तुम्हे खोलकर लाया हूं, अब मेरे पैर दाबो, ठाकुर जी उसके पैर दाबने लगे, इसके बाद उसने स्नान किया, और रसोई मे जाकर सभी के लिए भोजन बनाने गए, छप्पन भोग पाने वाले, स्वयं रसोई मे चूल्हा फूक रहे है, तीनो को भोजन खिलाया। सभी भोजन करने के बाद, आज बहू की तरफ सभी को प्यार आ रहा है, सास ने भी आज पहली बार बहू को प्यार से देखा, सभी ने ठाकुर जी के हाथ का खाना खाया है, तो प्रभाव तो पडेगा ही, ससुर ने कहा बहू जीवन ने ऐसा भोजन नही मिला।जैसा आज तूने बनाकर खिलाया है, ठाकुर जी भी मुस्कुरा रहे है, की तुम्हारी बहू कौन बना है, इसके बाद ठाकुर जी ने सभी के बर्तन साफ किया, और पूरी रसोई को पवित्र किया, और इसके बाद बिना कहे सास के पैर दबाए।

और उनके लिए रात्रि मे सोने वाले बिस्तर बिछाए, और कुछ ही दिनो मे सभी की सेवा, और सुंदर व्यवहार से, तीनो का स्वाभाव बदल दिया, तीनो बहुत प्यार करने लगे सखुबाई से, अब तो पूरे घर मे आनंद है, पडोसी देखते है, अब कोई मार पीट नही, कोई कोलाहल नही, बडी शांती है।सोचा अच्छा है, भगवान की कृपा हो गई, और उधर सखुबाई पंढरपुर मे नाम कीर्तन मे मस्त है, सभी ओर भक्त के भजन कीर्तन गान हो रहा है, पूरे माहौल मे अद्भुत भक्ति बरस रही है, इसके बाद सखुबाई चंद्रभागा मे स्नान कर, भगवान पंढरीनाथ के दर्शन कर रही है। प्रभु की श्याम मनोहर मूर्ति, और दिव्य पीताम्बरी धारण किए मूर्ति, आज उसे मूर्ति थोडी दिखाई दे रही है, भगवान उसे साक्षात्कार दिखाई दे रहे है, जिनका नाम स्मरण करने से मन शांत होता है, उनका रूप देखकर सखुबाई सुद-बुध भूल गई।

वही बैठकर प्रतिग्या कर ली, की जब तक शरीर मे प्राण रहेंगे, मै पंढरपुर की सीमा के बाहर नही जाऊंगी, वहा प्रभु उसके बदले उनके घर के सारे काम कर रहे है, यहा सखुबाई ने प्रतिग्या कर लिया, प्रेम रूपी प्रतिमा के सामने, सखुबाई ध्यान मे संलग्न हो गई।अंत मे अष्ट सात्विक भाव से अंतिम भाव का उदय हुआ, जिससे सखुबाई के प्राण शरीर छोडकर निकल लिए, अब संयोग की बात, निकटवर्ती किवल नामक गांव का एक ब्राह्मण, उस मंडली मे आया हुआ था।

एक ब्राह्मण जो मंदिर के पास खडा है,

उसने सखुबाई की लास को देखा, क्योकि सखुबाई तो पधार गई थी, तो उसने सभी को बुलाया, और सखुबाई की अंतिम क्रिया की, इधर रूक्मिणी ने विचार किया, की हमसे कहके गए, की कुछ दिनो मे आ रहे है, अभी तक नही आए। उन्होने ध्यान देकर देखा, की जिसके लिए गए थे, उसने तो शरीर छोड दिया, और शरीर का अंतिम संस्कार भी हो गया, ऐसे मे तो प्रभु को वही रहना पडेगा, रूक्मिणी जी, सखुबाई के अंतिम संस्कार के स्थान पर गई, और उनकी हड्डियो को एकत्रित किया, और प्रेम पूर्वक देखा।

एक महिला अंतिम संस्कार के जगह पर बैठी कुछ कर रही है,

माता रूक्मिणी जी की अद्भुत लीला 

तो सखुबाई जीवित हो गई, माया देवी के प्रताप से, एक क्षण मे सृष्टि का सृजन करने वाली, सखुबाई को जीवित करना, कोई आश्चर्य की बात थोडी है, सखुबाई को ऐसा लगा, जैसे वह गहरी नींद मे सो गई थी, और सामने रूक्मिणी जी खडी है, उन्होने कहा देखो पुत्री, तुमने प्रण लिया था।की पंढरपुर की सीमा नही पार करूंगी, वो शरीर तो तेरा जल गया, ये शरीर मैने दिया है, अब तू लौटकर अपने घर जा, हमारे प्रीतम वहा तेरे रूप मे है, उनको छोड और तू वहा रह, माता का आदेश पाकर, सखुबाई आनंद मे अपने गांव को लौटी, दो दिन मे यात्रियो के साथ करहाट लौट के आई।भगवान को अभाव हुआ, कि सखुबाई आ रही है, ये तो बहुत गडबड हो जाएगा, अपनी सास से कहा, मां मै पानी लेकर आती हूं, तुरंत घडा लिया और नदी को चल दिया, ठाकुर जी ने आगे वही पूर्व सखी का रूप धारण किया, और सखुबाई से मिली, सखुबाई देखकर पहचान गई।

दो महिलाएं आपस मे गले मिल रही है,

भगवान और सखुबाई का मिलन 

और उसे ह्रदय से लगाया, और कहा सखी, तेरी कृपा से मुझे पंढरपुर जाने को मिला, हाथ जोडकर बैठ गई, बहन तुम्हे बहुत कष्ट भोगना पडा होगा, ठाकुर जी ने कहा तुम चिंता मत करो, तुम खुश हो गई ना, हां सखी, तो कोई चिंता की बात नही है, मुझे कोई कष्ट नही हुआ। तू ये घडा ले और जल भर, और अपने घर पहुच, सखुबाई ने घडे मे जल भरा, और घर को जाने लगी, इतने मे ठाकुर जी अंतर्ध्यान हो गए, सखुबाई अपने घर पहुंची, और अपने काम मे लग गई, पूरे घर का स्वाभाव बदला हुआ था, सखुबाई को बडा आश्चर्य हुआ, की इतना प्यार मिल रहा है। दूसरे दिन वह ब्राह्मण, जिसने सखुबाई का अंतिम संस्कार किया था, वो करहाट आया, और सखुबाई के घर आकर कहा, हम एक दुखित खबर देने आए है, तुम्हारी बहूं गई हुई थी पंढरपुर, और वहा दर्शन करके उसके प्राण निकल गए।

एक महिला का अंतिम संस्कार हो रहा है

जब सखुबाई का अंतिम संस्कार कर दिया?

जब हम उसे पहचाने, तो हमने उसका अंतिम संस्कार कर दिया है, ये हम आपको बताने आए है, ससुर बोला हमारी बहू तो घर के अंदर है, ये कैसी बात, हमने स्वयं आग लगाई उसके शरीर पर, ससुर ने बहू को आवाज लगाई, ओ सखुबाई इधर आओ, सखुबाई बाहर आई। उसके होस उड गए, ये कैसे हो सकता है, हमने स्वयं देखा की पंढरपुर मे दर्शन कर इनके प्राण छूट गए, और हमने स्वयं आग लगाई थी, उसको कुछ समझ नही आ रहा था, उसने उसके ससुर को बाहर बुलाया, और कहा, तुम्हारी बहूं मर गई है, हमने उसे आग लगाया। हमारी बात पर विश्वास करो, लगता है ये प्रेत होकर आ गई है, ससुर ने कहा की पंढरपुर गई ही नही, ये कैसी भूली भूली बात कर रहे हो, आखिर ब्राह्मण के बार बार कहने पर, ससुर ने बहू को पास बुलाकर पूछा, बहू तुमको तो हमने यहा बांध रखा था।

एक महिला भावुक होकर मंदिर के अंदर बैठी है,

ये कहते है की तुम पंढरपुर गई, वहा प्राण छूट गए, इन्होने आग लगाई, ये कैसी बात है, सखू ने कहा, बात जो ये कह रहे है, वो सत्य बात है, जिस समय आपने मुझे बांध रखा था, उस समय कोई स्त्री आई थी, वो एक नवयुवती थी। उसने मेरी सहायता की, उसने मुझे खोला, और मै भक्तो के साथ पंढरपुर चली गई थी, और वो यहा बंधी रही, और वह नाना प्रकार का, प्रतिकूल व्यवहार सहती रही, और मै वहा ध्यान मे बैठी रही, बाद मे मुझे पता चला, की मुझे जला दिया गया, और फिर रूक्मिणी जी ने मुझे दुबारा जीवन दान दिया।

और मुझे फिर गांव भेजा, कृष्णा नदी के समीप वह युवती फिर मिली, जिसने मुझे खोला था, वो घडा देकर चली गई, आप लोग जानते है, वो कौन सी युवती थी, सास ससुर और पती ने कहा, हमे तो पता नही, बोले जब चली गई, तब मुझे पता चला, वो मेरे पांडूरंगा ही थे। वो स्वयं श्री हरी ठाकुर जी थे, ये सुनते ही सास ससुर और पती, सभी सखुबाई के चरणो मे गिर पडे, देवी हमने आपको पहचाना नही, की हमारे घर मे परम भक्ता, और परम साध्वी थी, जिसके अधीन श्री हरी भगवान है, बेटी हमने तुम्हे बहुत सताया, हम पर कृपा करो।

एक महिला के सभी लोगो चरण स्पर्श कर रहे है,

सखुबाई ने दिया उपदेश 

सखुबाई ने सास ससुर और पती को, भक्ति का उपदेश दिया, और सभी को भगवत मार्ग पर चलने को प्रेरित किया, जब जब भक्त पर संकट आता है, तो भगवान स्वयं उसकी सहायता करने आते है, ये पर्सनल अवतार उस भक्त के लिए होता है, श्री हरी की नजर हर भक्त के ऊपर होती है। कभी निराश मत होना, चाहे कितना भी कष्ट आए, कितनी भी विपत्ति आए, श्री हरी पर अगर अटूट विश्वास है, तो वह तुम्हारी जरूर सहायता करेंगे, इस अमर कहानी का अभाव कैसा रहा, एक प्यारे से कमेंट मे जरूर लिखते जाना, और ऐसी ही भगवत मार्ग की कहानी सुनना पसंद करते हो, तो चैनल को सब्सक्राइब जरूर करना, जय श्री कृष्ण।

भगवान कृष्ण सिंघासन पर बैठे है,

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 Manash Khare,

यहाँ मैं आपके लिए लाता हूँ दिल को छू लेने वाली हिंदी कहानियाँ — कभी प्रेरणादायक, कभी इमोशनल, तो कभी ज़िंदगी की सच्ची झलकियों से भरी।हर एक कहानी का मकसद है आपको कुछ महसूस कराना, सीख देना, और कभी मुस्कुराने का मौका देना। मैं चाहता हूँ कि जब भी आप इस ब्लॉग पर आएं, आप कुछ ऐसा पढ़ें जो दिल को छू जाए और सोचने पर मजबूर कर दे।अगर आपको कहानियाँ पसंद हैं , तो यह ब्लॉग सिर्फ आपके लिए है। हर दिन नई कहानी, नया एहसास।जुड़े रहिए, पढ़ते रहिए।

🙏 "Prakrati Ke Fact" के साथ।



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