एक खरबूजा और इंसानियत की खुशबू...
ट्रेन से उतरते ही मैने घर फोन किया ... कि कुछ लाना तो नही है ... पत्नी ने कहा ... एक किलो खरबूजे लेते आना ... तभी मुझे सडक किनारे मीठे और ताज़ा खरबूजा बेचते हुए ... एक बीमार सी दिखने वाली बुढिया दिख गयी ... वैसे तो मै हमेशा फल ... चौरासी घंटे वाले मंदिर के पास की दुकान से ही लेता था ... पर आज मुझे लगा कि क्यों न ... बुढिया से ही खरीद लूं।
मैने उससे पूछा माई ... खरबूजा कैसे दिए ... बुढिया ने कहा ... बाबूजी चालीस रूपये किलो ... माई तीस रूपये दूंगा ... बेटा पैंतीस रूपये दे देना ... दो पैसे मै भी कमा लूंगी ... तीस रूपये लेने है तो बोलो ... बुझे चेहरे से बुढिया ने न मे गर्दन हिला दी ... मै बिना कुछ कहे चल पडा ... और फल की बडी दुकान पर आकर ... खरबूजे का भाव पूछा ... तो वह बोला पचास रूपये किलो है ... बाबूजी कितने दूं ... पांच साल से मै फल तुमसे ही ले रहा हूं।
ठीक भाव लगाओ ... तो उसने सामने लगे बोर्ड की ओर इशारा कर दिया ... बोर्ड पर लिखा था ... मोल भाव करने वाले माफ करे ... मुझको उसका यह व्यवहार बहुत बुरा लगा ... मै कुछ सोचकर वापस हुआ ... सोचते सोचते उस बुढिया के पास पहुच गया ... बुढिया ने कहा बाबूजी खरबूजा तो दे दूं ... पर भाव पैतीस रूपये से कम नही लगाउंगी।
मैने मुस्कराकर कहा माई ... एक नही दो किलो दे दो ... और भाव की चिंता मत करो ... बुढिया का चेहरा खुशी से दमकने लगा ... खरबूजा देते हुए बोली ... मेरे पास थैली नही है ... एक टाइम था जब मेरा पति जिन्दा था ... तब हमारी छोटी सी दुकान थी .... सब्जी फल सब बिकता था ... आदमी की बीमारी मे दुकान चली गयी ... और आदमी भी नही रहा।
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अब खाने के भी लाले पडे है ... किसी तरह पेट पाल रही हूं ... कोई औलाद भी नही है ... जिसकी ओर मदत के लिए देखू ... कहते-कहते वह रुआंसी हो गयी ... और उसकी आंखो मे आंसू आ गये ... मैने दो सौ रूपये का नोट दिया तो उसने कहा बाबूजी मेरे पास छुट्टे नही है, माई चिंता मत करो रख लो अब मै तुमसे ही फल खरीदूंगा ... और कल मै तुम्हे एक हजार रूपये दूंगा, धीरे धीरे चुका देना।
और परसो से बेचने के लिए ... मंडी से दूसरे फल भी ले आना ... वह कुछ कह पाती ... उसके पहले ही मै घर की ओर रवाना हो गया ... रास्ते भर सोचते गया ... न जाने क्यो हम हमेशा मुश्किल से पेट पालने वाले ... ठेला लगा कर सामान बेचने वालो से ही मोल भाव करते है ... और बडी दुकानो पर मुंह मांगे पैसे दे आते है ... शायद हमारी मानसिकता ही बिगड गयी है ...
शायद हम गुणवत्ता के स्थान पर ... हम चकाचौंध पर अधिक ध्यान देने लगे है ... अगले दिन मैने बुढिया को एक हजार रूपये देते हुए कहा ... माई लौटाने की चिंता मत करना ... जो फल खरीदूंगा ... उनकी कीमत से ही चुक जाएंगे ... जब मैने अपने दोस्तो को ये किस्सा बताया ... तो सबने उसी से फल खरीदना प्रारम्भ कर दिया ... लगभग तीन महीने मे उसने एक ठेला भी खरीद लिया।
वह अब बहुत खुश है ... उचित खान पान से अब उसका स्वास्थ्य भी ... पहले से बहुत अच्छा हो गया है ... दोस्तो जीवन मे किसी बेसहारा की मदद करके देखो यारो ... अपनी पूरी जिंदगी मे किये गए ... सभी कार्यो से ज्यादा संतोष मिलेगा ... हर इंसान एक मौका चाहता है ... एक सहारा अगर हम अपने आस-पास नज़र उठाकर देखे ... तो कई ज़रूरतमंद हाथो तक मदद पहुंचा सकते है ... और यही इंसानियत की असली परीक्षा है।
एक बार कमेंट मे जय श्री कृष्णा जरूर लिखना ♥️🚩
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