एक गांव मे एक सासु मा और उसकी बहू रहती थी
सुबह तीन बार घंटी बजाकर ठाकुर जी को जगाना ... फिर गर्म जल से स्नान कराना ... सुंदर वस्त्र पहनाना ... चंदन का तिलक फूलो की माला ... और गजरा लगाकर श्रृंगार करना ... और फिर ठाकुर जी को दर्पण दिखाना ... दर्पण मे ठाकुर जी का हंस्ता हुआ मुख देखना .... बाद मे ठाकुर जी को राजभोग लगाना ...
बहू ने श्रद्धा से सब सीखा. और सासू मां से वादा किया,
मै सेवा मे कोई कमी नही आने दूंगी मां ... इसके बाद सासु मां चली गई ... अब बहू ने वैसा ही करना शुरू किया ... जैसा बताया गया था ... सुबह घंटी बजाई ... ठाकुर जी को उठाया ... स्नान कराया ... कपडे पहनाए ... श्रृंगार किया ... और फिर दर्पण सामने रखा ... लेकिन दर्पण मे ठाकुर जी का चेहरा वैसा ही था ... मुस्कान कही नही थी ... बहू का दिल धडकने लगा ... मुझसे कही कोई गलती तो नही हो गई ...उसने सब दोबारा किया ... फिर भी ठाकुर जी नही मुस्कुराए ... बहू का मन बेचैन था ... उसने फिर से ठाकुर जी को स्नान कराया ... वस्त्र पहनाए ... श्रृंगार किया ... और दर्पण सामने रखा ... पर इस बार भी ... वही शांत चेहरा ... मुस्कान अब भी नही थी ... शायद मुझसे फिर कुछ चूक हो गई ... उसने सोचा ... और फिर वो दोबारा सेवा मे जुट गई ...ठाकुर जी को फिर से स्नान कराया ... फिर से वस्त्र ... फिर से श्रृंगार ... फिर से दर्पण ... पर ठाकुर जी का मुख अब भी हंसता न दिखा ... यह सिलसिला चलता रहा … छठी बार ... सातवी ... आठवी ... और बारहवी बार तक बहू ने ठाकुर जी को नहलाया ... अब वो थक चुकी थी ... पर उसका भाव डगमगाया नही ... तेरहवी बार उसने फिर से जल गरम किया ... वस्त्र निकाले ... फूल सजाए ... उधर ठाकुर जी ने भी मुस्कराते हुए मन मे सोचा ... अगर मैने अब भी नही मुस्कराया ... तो ये बहू मुझे पूरा दिन नहलाती रहेगी ... बहू ने एक बार फिर सेवा पूरी की ... और जब उसने ठाकुर जी को दर्पण दिखाया ... तो चमत्कार हुआ ... दर्पण मे ठाकुर जी की मनमोहनी मंद-मंद मुस्कान दिखाई दी ...
उसने हाथ जोडकर ठाकुर जी का धन्यवाद किया ... आज मेरी सेवा स्वीकार हुई ... अब यह रोज का नियम बन गया ... हर दिन ठाकुर जी बहू को देख कर मुस्कुराते ... कुछ समय बाद ... जब सासु मां यात्रा से लौट आई ... जैसे ही उन्होने ठाकुर जी के दर्शन किए ... प्रभु क्षमा करना ... अगर मेरी बहू से आपकी सेवा मे कोई त्रुटि रह गई हो ...
तो अब मै स्वयं सेवा करूंगी ... पहले की तरह ... पूरे नियम और भाव से ... लेकिन तभी ठाकुर जी मुस्कराए ... और उनके होठो से मधुर वाणी निकली ... मैया तुम्हारी सेवा मे कोई कमी नही है ... लेकिन अब दर्पण दिखाने की सेवा तो ... मै तुम्हारी बहू से ही करवाऊंगा ... कम से कम इस बहाने मै रोज ... मुस्कुरा तो लेता हूं ... कहानी आपको अच्छी लगी हो ...